पन्ना प्रभारियों को चार्ज करने में जुटी बीजेपी, विधानसभा चुनाव में फेल हो गई थी रणनीति

पन्ना प्रभारियों को चार्ज करने में जुटी बीजेपी, विधानसभा चुनाव में फेल हो गई थी रणनीति

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  • Publish Date - February 16, 2019 / 10:30 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:38 PM IST

लोरमी । विधानसभा चुनाव में बूथ स्तर पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए बीजेपी ने अमित शाह का पन्ना प्रभारी फार्मूला अपनाया था। लेकिन ये फार्मूला जीत दिलाने की बजाए 5 राज्यों के चुनाव में एक बड़ी हार में तब्दील हो गया। ऐसे में लोकसभा चुनाव के पहले बीजेपी के फिर इस फार्मूले की चर्चा जोरों पर है। जहां बीजेपी के सांसद इस फार्मूले के भरोसे फिर से चुनाव लड़ने की बात कह रहे हैं। तो वहीं कांग्रेस बीजेपी के इस फार्मूले को लेकर तंज कसने में पीछे नहीं है।

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2018 के विधानसभा चुनाव में हर तरह के वादे औऱ मुद्दे हावी रहे। कांग्रेस जहां पिछली सरकार की नाकामयाबियों और अपनी चुनावी जनघोषणा पत्र को लेकर जनता के बीच गई तो वहीं बीजेपी अपने 15 साल के विकास और बूथ स्तर पर पार्टी की पकड़ को मजबूत आधार बताती रही। चुनाव के पहले बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पन्ना प्रभारी फार्मूले को लागू किया। एक-एक बूथ पर अपनी पकड़ मजबूत करनें के लिए पन्ना प्रभारियों की नियुक्ति की गई। जिसमें मतदाता सूची के हर पन्ने पर 60 मतदाताओं के पीछे एक प्रभारी तैनात किया गया था । जिनका काम सरकार की योजना को मतदाताओं को बताना और अपने पक्ष में वोटिंग कराना था। अमित शाह का ये फार्मूला 5 राज्यों के चुनाव में बुरी तरह फेल रहा। सरकार के खिलाफ नाराजगी इतनी थी कि छत्तीसगढ़ प्रदेश के अधिकांश बूथों में बीजेपी को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा। ना तो बीजेपी को उसके बड़े नेता जिता पाए और ना ही पन्ना प्रभारी । अब जबकि लोकसभा चुनाव सिर पर हैं तो बीजेपी इन्ही पन्ना प्रभारियों को फिर से चार्ज करने की तैयारियों में जुट गई है। बिलासपुर लोकसभा के सांसद लखन साहू ने तो दावा किया है कि बीजेपी की पहले से ही बूथ स्तर पर इकाई मौजूद है, जो चुनाव में सफलता दिलायेगी ।

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वहीं बीजेपी के फार्मूले को लेकर कांग्रेसी निश्चिंत हैं। कांग्रेस के पीसीसी सचिव आशीष सिंह ठाकुर की मानें तो बीजेपी 2013 के चुनाव को धोखे से जीती थी। जबकि 2018 में हर पन्ने के पीछे दो प्रभारी बनाए गए थे। ऐसे में विकास नही होने के चलते जनता बेहद परेशान थी जिसका असर विधानसभा चुनाव में देखने को मिला। बहरहाल लोकसभा चुनाव में अब कुछ ही महिनों को वक्त है। ऐसे में बूथ स्तर पर मतदाताओं को रिझाने के लिए भाजपा चाहे कांग्रेस दोनों ही पार्टियां अपना पूरा दम लगा रही हैं।