रायपुर: छत्तीसगढ़ बीजेपी में एक बार फिर आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग जोर पकड़ने लगी है। राष्ट्रीय जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष नंदकुमार साय के घर आदिवासी नेताओं की गोपनीय बैठक में ये मुद्दा फिर उठा। बीजेपी के प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी के दूसरे दौरे से ठीक पहले आदिवासी नेताओँ की इस बैठक को अहम माना जा रहा है। ऐसे में सवाल है कि आदिवासी नेताओं की बैठक से बीजेपी में खलबली मचेगी? नए प्रदेश प्रभारी के कड़े निर्देश के बावजूद पार्टी नेताओं की गोपनीय बैठक के क्या हैं राजनीतिक मायने और क्या बीजेपी के भीतर बन रहे नए समीकरणों की ओर इशारा है?
ये हैं बीजेपी के पूर्व सांसद और राष्ट्रीय जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष नंदकुमार साय के इस बयान के बाद छत्तीसगढ़ बीजेपी में एक बार फिर आदिवासी नेतृत्व की मांग जोर पकड़ी है। नंद कुमार साय के घर आदिवासी नेताओं की गोपनीय बैठक हुई, जिसमें आदिवासी लीडरशीप के साथ मुख्यमंत्री के लिए किसी आदिवासी नेता को प्रोजेक्ट करने की मांग उठी है।
माना जा रहा है कि विधानसभा में हार के बाद संगठन की कमान आदिवासी नेता को सौंप कर हाईकमान ने इस तरह की मांग को खत्म करने की कोशिश की है। लेकिन पार्टी में एक बार फिर आदिवासी वर्ग को मौका देने की मांग उठने लगी है।
नंद कुमार साय का बयान सामने आने के बाद बीजेपी में हलचल तेज हो गई है। आदिवासी नेतृत्व की मांग पर बीजेपी नेता कुछ भी साफ-साफ बोलने से बचते दिखे, तो वहीं कांग्रेस ने तंज कसने में देरी नहीं की।
पिछले दो चुनावों के नतीजों को देखें तो बीजेपी की आदिवासी समाज के बीच पैठ कम हुई है। बस्तर और सरगुजा दोनों ही जगह से बीजेपी पूरी तरह गायब हो गई है। इस तरह की मांग करने वाले नेताओं को लगता है कि इस समाज के बीच पैठ बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री की मांग पर विचार करना चाहिए। वैसे बता दें कि राज्य बनने के बाद ज्यादातर समय आदिवासी नेता ही बीजेपी संगठन की कमान संभालते रहे हैं। रमन सिंह सरकार में उनको भागीदारी भी मिली लेकिन एक बार फिर मुख्यमंत्री की मांग बीजेपी के भीतर बन रहे नए समीकरणों की ओर इशारा कर रहे हैं।
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