राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव : राज्यपाल ने सीएम भूपेश बघेल को दिया धन्यवाद, कहा- नृत्य और संगीत आदिवासियों के जीवन का अभिन्न अंग

राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव : राज्यपाल ने सीएम भूपेश बघेल को दिया धन्यवाद, कहा- नृत्य और संगीत आदिवासियों के जीवन का अभिन्न अंग

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  • Publish Date - December 28, 2019 / 04:50 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:09 PM IST

रायपुर। राज्यपाल अनुसुईया उइके और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल शनिवार को साईंस कॉलेज मैदान में चल रहे राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में शामिल हुए। इस अवसर पर राज्यपाल ने देश-विदेश से आए लोक कलाकारों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देते हुए कहा कि आदिवासियों की संस्कृति बहुत समृद्ध रही है। हर प्रदेश की संस्कृति वहां की भौगोलिक स्थिति के अनुसार अलग-अलग है। यहां कई आदिवासी नृत्य देखने को मिले हैं, जो पहले देखने को नहीं मिले थे। इस राष्ट्रीय महोत्सव के दौरान अनेकता में एकता की भावना दिखाई दे रही है, जिससे भाईचारे की भावना बढ़ती है और एक दूसरे की संस्कृति को जानने का अवसर मिला है। उन्होंने इस सुंदर और भव्य राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के आयोजन के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को धन्यवाद दिया।

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राज्यपाल ने कहा कि भारत के अधिकांश प्रदेशों में आदिवासी निवास करते हैं। आदिवासियों की लोक संस्कृति बहुत समृद्ध रही है। भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप विभिन्न प्रदेशों में आदिवासियों के अलग-अलग गीत एवं नृत्य हैं। आदिवासियों की अधिकांश लोक नृत्य प्रकृति पूजा, फसलों और उनके तीज-त्यौहारों पर आधारित होते हैं। आदिवासी महिलाओं में गोदना गुदवाने की पुरानी परंपरा को आज टैटू के रूप में युवा पीढ़ी में प्रचलित देखा जा सकता है। देश और विदेश में प्रचलित लोकप्रिय ‘‘बैले’’ डांस प्राचीन आदिवासी संस्कृति की ही विश्व को देन है।

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उन्होंने कहा कि नृत्य-संगीत भारतीय जनजातियों की उत्कृष्ट कला है। यह प्रकृति और संस्कृति के बीच एक सेतु का कार्य करता है। अपने पसंद का नृत्य एवं गीत सुनकर थका हुआ व्यक्ति भी आनंदित होकर पुनः तरोताजा अनुभव करने लगता है। इसलिए जीवन में नृत्य एवं गीत का महत्वपूर्ण स्थान है। अत्यन्त प्राचीन काल से चली आ रही वैज्ञानिक जीवन पद्धति आज भी मूल रूप से आदिवासियों में विद्यमान हैं। उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज प्रकृति और संस्कृति के बीच सेतु का काम करता है। राज्यपाल ने कहा कि आदिवासी समाज प्रकृति का पुजारी होता है और उनकी जीवनशैली प्रकृति के समान सहज और सरल होती है। इस महोत्सव में नई पीढ़ी के आदिवासियों से कहना चाहूंगी कि वो अपने पुराने नृत्य एवं गीत को भावी पीढ़ी को हस्तांतरित एवं संरक्षित करने के लिए सतत् प्रयत्न करें और नृत्य और गीत को समय-समय पर व्यवहार में लाते रहें, अन्यथा ये विलुप्त हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि इस तरह के आयोजन होते रहना चाहिए, जिससे आदिवासी लोक कलाकारों की कला-संस्कृति को देखने और समझने का अवसर मिलता रहे।

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