इंदौर। बीते कुछ सालों से देश के शहरों, स्टेशनों और सार्वजनिक स्थानों के नाम बदने की बहस जारी है। इस तहर किसी शहर या स्थान का प्रचलित नाम बदलकर उसके प्राचीन या कम प्रचलित नाम को उसकी पहचान बना देने का क्या ओचित्य है ? इस बात की परवाह किए बैगर नीति निर्माता इस तरह की बहस को ज्यादा तवज्जो दे रहे है।
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अब देश के सबसे साफ शहर और मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर का नाम बदलकर इंदूर करने की बहस जोर पकड़ती जा रही है। इस नए विवाद के जन्मदाता शहर के एक पार्षद है, उन्होंने नगर निगम में इस संबंध में प्रस्ताव पेश किया कि प्राचीन इंद्रेश्वर महादेव मंदिर के कारण इस व्यापारिक शहर का नाम इंदूर रखा गया था। लेकिन ब्रिटिश काल में अंग्रेजों द्वारा गलत उच्चारण करने के कारण इसे इंदौर कहा जाने लगा। अंत में इसे बदलकर इंदौर ही कर दिया गया। उन्होंने बताया कि रियासती काल के कई होलकर दस्तावेजों में इसे इंदूर के नाम से ही संबोधित किया गया है।
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पार्षदों के सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे नगर निगम के सभापति अजय सिंह नरूका ने बताया कि शहर के वार्ड क्रमांक 70 के पार्षद सुधीर देगडे द्वारा प्रस्तावित प्रस्ताव को सभा ने देखा है, और उनसे इस संबंध में अधिक तथ्य पेश करने को कहा गया है। लेकिन हमारा सवाल यह है कि क्या किसी जगह के प्रचलित नाम को सिर्फ इसलिए बदल देना चाहिए की पहले उसका नाम कुछ और था और इस नाम बदलने की कवायद से आम लोगों को क्या फायदा होने वाला है।
अमन वर्मा, IBC24