परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी भागीदारी को अनुमति देने संबंधी विधेयक लोकसभा में पेश
परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी भागीदारी को अनुमति देने संबंधी विधेयक लोकसभा में पेश
नयी दिल्ली, 15 दिसंबर (भाषा) परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी भागीदारी की अनुमति देने संबंधी विधेयक सोमवार को लोकसभा में पेश किया गया, जिस पर कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के सदस्यों ने आपत्ति जताई।
परमाणु ऊर्जा राज्य मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह द्वारा ‘भारत के रुपांतरण के लिए नाभिकीय ऊर्जा का संधारणीय दोहन और अभिवर्द्धन (शांति) विधेयक, 2025’ सदन में पेश किया, जिस पर विपक्षी सदस्यों ने शोरगुल किया।
विधेयक का उद्देश्य परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 और परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010 को निरस्त करना है।
सिंह ने कहा, ‘‘विधेयक का उद्देश्य परमाणु क्षति के लिए एक व्यावहारिक नागरिक दायित्व व्यवस्था बनाना और परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड को वैधानिक दर्जा प्रदान करना है।’’
कांग्रेस के मनीष तिवारी ने विधेयक पेश किये जाने का विरोध करते हुए कहा कि यह केंद्र सरकार को निजी अनुबंधों में लाइसेंसिंग, नियमन, अधिग्रहण और टैरिफ निर्धारण की असीम शक्तियां देता है।
उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र को अत्यधिक खतरनाक परमाणु क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति देना और जवाबदेही को सीमित करना, सांविधिक छूट प्रदान करना तथा न्यायिक उपायों को सीमित करना संविधान के अनुच्छेद 21 और 48ए का हनन करता है।
तिवारी ने कहा कि यह विधायिका, कार्यपालिका और नियामक तथा अर्द्ध- न्यायिक शक्तियों को केंद्र सरकार में केंद्रीकृत करता है।
इस पर सिंह ने कहा, ‘‘मैं यह उल्लेख करता चाहता हूं कि इस संबंध में जताई गईं ज्यादातर आपत्तियां (विधेयक के) गुण-दोष से संबंधित हैं जिन पर विधेयक पर चर्चा के दौरान विचार किया जा सकता है।’’
रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) के एन. के. प्रेमचंद्रन ने भी विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि यह राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के विरूद्ध है। उन्होंने कहा, ‘‘आप देख सकते हैं इस विधेयक का मूल मकसद परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोलना है।’’
उन्होंने कहा कि उनके निर्वाचन क्षेत्र में थोरियम का प्रचुर भंडार है, लेकिन दुर्भाग्य से सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों ने इसका दोहन एवं उपयोग नहीं किया है।
आरएसएपी सदस्य ने आरोप लगाया कि निजी कंपनियों द्वारा इसका (थोरियम) उपयोग करने के उद्देश्य से इस विधेयक को लाया गया है।
तृणमूल कांग्रेस के सौगत रॉय ने कहा कि इस कदम के जरिये क्रमिक रूप से ‘‘परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को निजी क्षेत्र को दिया जा रहा है।’’
उन्होंने कहा कि सरकार इस बारे में कुछ समय से बात कर रही थी और अब वह इस विधेयक के जरिये एक निजी कंपनी को बढ़ावा दे रही है।
इस बीच, संसदीय कार्य मंत्री किरेन रीजीजू ने कहा, ‘‘आज हम विधेयक को पारित नहीं कर रहे हैं, इस पर (आज) विचार करने का प्रस्ताव नहीं है। विधेयक को महज पेश भर किया जा रहा है।’’ उन्होंने कहा कि संबद्ध नियम के तहत इस विधेयक को पेश करने की सदन की विधायी क्षमता है।
वहीं, जितेंद्र सिंह ने कहा कि यदि यह मान भी लिया जाए कि इस विधेयक को लाने की सरकार की क्षमता नहीं है तो भी याद दिलाना चाहता हूं कि इसी सदन ने परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 की पहल की थी, जब पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे।
उन्होंने कहा कि मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहने के दौरान इसी सदन में, परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व विधेयक लाया गया था।
विपक्षी सदस्यों के शोरगुल के बीच, मंत्री ने कहा, ‘‘यदि (परमाणु क्षेत्र से संबंधित) विधेयक नेहरू जी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान और फिर डॉ मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहने के दौरान लाया जा सकता है तो उस समय सत्ता में रहे विभिन्न राजनीतिक दल इस विषय पर विधेयक लाने की शक्तियों को अचानक कैसे भूल गए।’’
इसके बाद, परमाणु ऊर्जा मंत्री ने विधेयक पेश किया।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने शुक्रवार को इस विधेयक को मंजूरी प्रदान की थी।
विधेयक के उद्देश्यों और कारण के अनुसार, इसका मकसद परमाणु ऊर्जा के संवर्धन एवं विकास का प्रावधान करना, परमाणु ऊर्जा उत्पादन तथा स्वास्थ्य देखभाल, खाद्य, जल, कृषि, उद्योग, अनुसंधान, पर्यावरण, परमाणु विज्ञान और प्रौद्योगिकी में नवाचार के लिए इसका अनुप्रयोग सुनिश्चित करना है। इसका उद्देश्य देश के लोगों के कल्याण के लिए, और इसके सुरक्षित उपयोग के लिए एक मजबूत नियामक ढांचा और इससे संबंधित मामलों के लिए प्रावधान करना भी है।
दो बार के स्थगन के बाद अपराह्न दो बजे की सदन की कार्यवाही फिर शुरू होने पर कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने निरसन और संशोधन विधेयक 2025 भी पेश किया।
यह विधेयक, उन 71 कानूनों को निरस्त करने के लिए प्रस्तुत किया गया, जिनकी उपयोगिता कानून की किताबों में समाप्त हो चुकी है।
इन 71 कानूनों में से 65 प्रमुख अधिनियमों के संशोधन हैं और छह प्रमुख कानून हैं।
विधेयक के उद्देश्य और कारणों के अनुसार, यह विधेयक समय-समय पर की जाने वाले उन उपायों में से एक है जिसके द्वारा ऐसे कानून, जो अब लागू नहीं हैं या अप्रचलित हो गए हैं या जिन्हें पृथक अधिनियमों के रूप में लागू करना अनावश्यक है।
भाषा सुभाष वैभव
वैभव

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