केंद्र ने अरावली पर्वतमाला की परिभाषा के जरिये खनन को बढ़ावा देने के आरोप को खारिज किया
केंद्र ने अरावली पर्वतमाला की परिभाषा के जरिये खनन को बढ़ावा देने के आरोप को खारिज किया
नयी दिल्ली, 21 दिसंबर (भाषा) केंद्र सरकार ने रविवार को उन खबरों को खारिज कर दिया जिनमें कहा गया था कि बड़े पैमाने पर खनन की अनुमति देने के लिए अरावली पर्वतमाला की परिभाषा में बदलाव किया गया है।
सरकार ने अरावली पर्वतीय क्षेत्र में नए खनन पट्टों पर उच्चतम न्यायालय द्वारा लगाए गए प्रतिबंध का हवाला देते हुए यह बात कही।
इसमें कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा अनुमोदित एक प्रारूप पर्वतीय प्रणाली की मजबूत सुरक्षा प्रदान करता है और एक व्यापक प्रबंधन योजना को अंतिम रूप दिए जाने तक नए खनन पट्टों पर रोक लगाता है।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने सुंदरबन बाघ अभयारण्य में संवाददाताओं को बताया कि उच्चतम न्यायालय द्वारा अनुमोदित परिभाषा से अरावली क्षेत्र का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा संरक्षित क्षेत्र के अंतर्गत आ जाएगा।
सरकार ने ‘100 मीटर’ के मापदंड को लेकर चल रहे विवाद के बीच जारी स्पष्टीकरण में कहा कि उच्चतम न्यायालय के निर्देशों पर अरावली पहाड़ियों और पर्वत श्रृंखला की परिभाषा को सभी राज्यों में मानकीकृत किया गया है ताकि अस्पष्टता को दूर किया जा सके और दुरुपयोग को रोका जा सके। विशेष रूप से वे प्रथाएं जिनके कारण पहाड़ियों के आधार के बेहद करीब खनन जारी रखना संभव हुआ।
पर्यावरण मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि उच्चतम न्यायालय ने अरावली में अवैध खनन से संबंधित काफी समय से लंबित मामलों की सुनवाई करते हुए मई 2024 में एक ‘समान परिभाषा’ की सिफारिश करने के लिए एक समिति का गठन किया था।
पर्यावरण मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में गठित इस समिति में राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और दिल्ली के प्रतिनिधियों के साथ-साथ तकनीकी निकायों के प्रतिनिधि भी शामिल हैं। समिति ने पाया कि केवल राजस्थान में ही एक औपचारिक रूप से स्थापित परिभाषा है, जिसका वह 2006 से पालन कर रहा है।
इस परिभाषा के अनुसार, स्थानीय भू-भाग से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली भू-आकृतियों को पहाड़ियां माना जाता है और ऐसी पहाड़ियों को घेरने वाली सबसे निचली सीमा रेखा के भीतर खनन निषिद्ध है, चाहे उस रेखा के भीतर की भू-आकृतियों की ऊँचाई या ढलान कुछ भी हो।
सूत्रों ने बताया कि चारों राज्य इस लंबे समय से चली आ रही राजस्थान की परिभाषा को अपनाने पर सहमत हो गए हैं, साथ ही इसे वस्तुनिष्ठ और पारदर्शी बनाने के लिए अतिरिक्त सुरक्षा उपायों को भी शामिल किया गया है।
इन उपायों में एक-दूसरे से 500 मीटर की दूरी पर स्थित पहाड़ियों को एक ही पर्वत श्रृंखला मानना, किसी भी खनन निर्णय से पहले भारतीय सर्वेक्षण विभाग के मानचित्रों पर पहाड़ियों और पर्वत श्रृंखलाओं का अनिवार्य मानचित्रण और खनन निषिद्ध मुख्य और संरक्षित क्षेत्रों की स्पष्ट पहचान करना शामिल है।
सरकार ने 100 मीटर से नीचे के क्षेत्रों में खनन की अनुमति दिए जाने के दावों को खारिज कर दिया और कहा कि यह प्रतिबंध संपूर्ण पहाड़ी प्रणालियों और उनके भीतर स्थित भू-आकृतियों पर लागू होता है, न कि केवल पहाड़ी के शिखर या ढलान पर।
सरकार की ओर से कहा गया कि यह निष्कर्ष निकालना ‘गलत है’ कि 100 मीटर से नीचे की सभी भू-आकृतियां खनन के लिए खुली हैं।
उच्चतम न्यायालय ने 20 नवंबर 2025 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत गठित एक समिति की अरावली पहाड़ियों और पर्वत श्रृंखलाओं की परिभाषा संबंधी सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था।
भाषा रवि कांत रवि कांत संतोष
संतोष

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