डॉ रमन के धान ला लेगे बालोद गाँव के मुखिया रे- राऊत नाचा

डॉ रमन के धान ला लेगे बालोद गाँव के मुखिया रे- राऊत नाचा

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  • Publish Date - October 23, 2017 / 08:42 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:08 PM IST

 

 लोक कलाओं व लोक परंपराओं के बीच छत्तीसगढ़ की अपनी एक अलग सांस्कृतिक छवि है. छत्तीसगढ़  की अपनी एक सांस्कृतिक विरासत है जिसे आज भी  धरोहर के रूप में लोग जानने के लिए उत्सुक हैं  यहाँ के नृत्य अब विश्व स्तर  पर पहचान बना रहे हैं  जिनमे पंथी ,राउत नाचा और सुवा कर्मा ददरिया ऐसे नृत्य है जिसके बारे में आज भी भारत के लोग जानना चाहते है की आखिर इनके पीछे की कहानी क्या है दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा से शुरू हुआ मातर  तिहार (राउत नाचाछत्तीसगढ़  के ग्रामीण अंचल का खास पर्व माना जाता है जिसे पुरे एक महीने तक मनाने की परम्परा है।  जिसे आम तौर पर यादव समुदाय के लोग ही मनातें हैं। अपने मालिकों के घर जा कर गाय के गले में कौड़ी के साथ कुछ खास चीजें बाँधी जाती है जिसे छत्तीसगढ़ी में सोहई बांधना कहते हैं   

  सामाजिक संदेश और कृष्ण भक्ति के दोहों के साथ राउत  दल अपनी नृत्य व शस्त्र कला का प्रदर्शन करते हैं।  रंग-बिरंगे कपड़े पर कौड़ियों से बनी हुई जैकेट और अलग-अलग तरह की चमकदार रंगीन टोपियां इस समूह नृत्य की खासियत होती है. इस वेश में तैयार होकर नर्तक दल अपने जजमान के घर जा कर कुछ दोहे गाते हैं और फिर  नृत्य के माध्यम से अपने प्रिय व्यक्ति का नाम लेकर बड़े उत्साह के साथ सामूहिक डांस करते है इस नृत्य की खासियत होती है की वे सब अपनी अपनी मस्ती अपने अपने अंदाज़ में होते है लेकिन इनमे एक रूपता हमेशा दिखाई पड़ती है.इस नृत्य के दौरान नर्तक दलों द्वारा आमतौर पर गुदरुम, ढोल, डफड़ा, टिमकी, मोहरी, मंजीरा, मृदंग, नगाड़ा, झुमका, डुगडुगी, झुनझुना, घुंघरु, झांझ जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल किया जाता है।.इस दौरान राउत दल कुछ इस तरह के दोहे बोलते हैं  जिनमे जजमान की तारीफ के साथ साथ कुछ छेड़छाड़ भी होता है.इन दिनों राउतों में खास प्रचलन में कुछ दोहे है जिनमे मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह और प्रधानमंत्री मोदी के किस्से ज्यादा चल रहे हैं –

                                                                         सब के लउठी रेंगी चेंगी, मोर लउठी ठुठवा रे। 

                                                                      डॉ रमन  के धान ला लेगे बालोद गाँव के मुखिया रे।।

 

  राउत नाचा के दौरान पहले कबीर के दोहे पढ़े जाते थे, अब निदा फाजली के दोहे में उपयोग में लाए जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ी भाषा के गीत तो होते ही हैं। बदलते परिवेश को भी राउत अपने नाचा के माध्यम से हसीं ठिठोली करते प्रस्तुती  करते हैं।  अंत में कलाकार लाठी चालन के साथ शौर्य का प्रदर्शन करते हैं।आमतौर पर छत्तीसगढ़ में ऐसी सांस्कृतिक गतिविधियाँ कम हैं जिनमें स्त्री और पुरुषों की भागीदारी एक साथ हो  संकोची प्रवृत्ति के होने के बावजूद  महिलाओं की भागीदारी को बराबर बनाए रखते हैं दिखाने के लिए  इन नर्तकों के साथ स्त्री वेश में कुछ पुरुष कलाकार भी स्वांग भरते नजर आते हैं, जिन्हें परी कहा जाता है। ये परियां इस नृत्य की मुख्य आकर्षण होती हैं.

                                                                 रंण  भेदी के मैदान मा संगी चले बरछी  कटार हो। 

                                                               सब के ममादाई लुगरा पहिने हमर ममादाई सलवार हो।।  

 इन दिनों छत्तीसगढ़ की इस धरोहर को राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिल रही है रंगझांझर ग्रुप के सुनील तिवारी  बताते है की वे अपने बड़े कार्यक्रमों के दौरान  जब छत्तीसगढ़ संस्कृति की अलग अलग झलक प्रस्तुत करते है तो बाहर के लोगो के लिए ये मुख्य आकर्षण होता है.फिल्म   फ्रेस्टिवल के दौरान जब उन्होंने निर्मात निर्देशक प्रकाश झा के लिए छत्तीसगढ़ी  ऐसे दोहे बोले तो सारा माहौल नाचने के लिए मजबूर हो गया था 

                                                                              प्रकाश झा हा रइपुर आ हे जागे हमर भाग रे। 

                                                                             अउ डॉ रमन ख़्वाही ओला मुनगा बड़ी के साग रे।।