नागरिकता, संपर्क, खराब आधारभूत ढांचा, बेरोजगारी बराक घाटी में प्रमुख मुद्दे

नागरिकता, संपर्क, खराब आधारभूत ढांचा, बेरोजगारी बराक घाटी में प्रमुख मुद्दे

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  • Publish Date - April 23, 2024 / 04:08 PM IST,
    Updated On - April 23, 2024 / 04:08 PM IST

(दुर्बा घोष)

सिलचर/करीमगंज (असम), 23 अप्रैल (भाषा) असम की बराक घाटी में बांग्लादेश की सीमा से लगे दो लोकसभा क्षेत्रों – सिलचर (सुरक्षित) और करीमगंज से चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों द्वारा उठाये गए प्रमुख मुद्दों में नागरिकता, बेरोजगारी, खराब बुनियादी ढांचा और देश के बाकी हिस्सों के साथ उचित संपर्क की कमी शामिल हैं।

बराक घाटी की दो लोकसभा सीट पर बत्तीस उम्मीदवार मैदान में हैं, जहां आम चुनाव के दूसरे चरण में 26 अप्रैल को मतदान होगा। घाटी में स्थित इन दो सीट पर भाजपा ने पहली बार 1991 और फिर 1996 में जीत हासिल की थी, जब पार्टी के पास राज्य में व्यावहारिक रूप से कोई संगठनात्मक आधार नहीं था।

सिलचर में, मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार और असम के मंत्री परिमल शुक्लाबैद्य, कांग्रेस के सूर्यकांत सरकार और तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार एवं पड़ोसी करीमगंज से एआईयूडीएफ के पूर्व सांसद राधेश्याम विश्वास के बीच होने की संभावना है।

करीमगंज में भाजपा के मौजूदा सांसद कृपानाथ मल्ला, कांग्रेस उम्मीदवार हाफिज अहमद राशिद चौधरी और आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के सहाबुल इस्लाम चौधरी के बीच कड़ी टक्कर होने की उम्मीद है।

बांग्लादेश के साथ 129 किलोमीटर लंबी सीमा वाले दोनों निर्वाचन क्षेत्रों में, नागरिकता एक प्रमुख मुद्दा है, क्योंकि पड़ोसी देश से विस्थापित हिंदू बंगालियों की एक बड़ी आबादी है, जो समय के साथ घाटी में आकर बस गए हैं।

भाजपा के सिलचर उम्मीदवार परिमल शुक्लाबैद्य ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि नागरिकता की समस्या विभाजन के कारण पैदा हुई और 70 साल तक किसी भी राजनीतिक दल ने इसे हल करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। उन्होंने कहा कि वह भाजपा ही थी जिसने एक कानून बनाया जिससे पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से बराक घाटी आये लोगों को मदद मिलेगी।

भाजपा नेता ने कहा, ‘‘यह सच है कि कुछ लोगों को ऑनलाइन आवेदन करना मुश्किल हो रहा है और दस्तावेज़ जमा करने से संबंधित मुद्दे हैं, लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को मामले से अवगत कराया गया है। उन्होंने आश्वासन दिया है कि आचार संहिता हटने के बाद प्रक्रिया को सरल बनाया जाएगा।’’

वहीं कांग्रेस के सूर्यकांत सरकार ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि बराक घाटी के अधिकांश लोग शुरू में सीएए के पक्ष में थे क्योंकि विस्थापित लोगों का मानना था कि इससे उन्हें मदद मिलेगी क्योंकि नागरिकता के साथ उन्हें किसी अन्य दस्तावेज की आवश्यकता नहीं होगी।

सरकार ने आरोप लगाया, ‘‘सीएए में नियम अब एक जाल की तरह हैं क्योंकि जो कोई भी सीधे नागरिकता के लिए आवेदन करता है वह बांग्लादेशी के रूप में स्थापित होता है और अब तक बराक घाटी में केवल एक व्यक्ति ने आवेदन किया है और यदि कानून इतना अच्छा है जैसा कि भाजपा का दावा है, तो लोग इसके तहत आवेदन क्यों नहीं कर रहे हैं। लोगों को एहसास हो गया है कि उनके साथ धोखा हुआ है।’’

शेष असम और देश के साथ संपर्क भी घाटी में एक प्रमुख मुद्दा रहा है और दोनों निर्वाचन क्षेत्रों के भाजपा उम्मीदवारों का दावा है कि ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर के लगभग पूरा होने के साथ इसका लगभग समाधान हो गया है।

विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 में वादा किया था कि इसे जल्द ही पूरा किया जाएगा, लेकिन 10 साल बाद भी प्रगति ‘असंतोषजनक’ है और वर्तमान स्थिति के अनुसार, इसे पूरा होने में पांच से छह साल और लगेंगे।

तृणमूल कांग्रेस सिलचर के उम्मीदवार राधेश्याम विश्वास ने कहा, ‘‘हमें राज्य की राजधानी तक पहुंचने के लिए मेघालय से होकर जाना पड़ता है और सड़क की हालत दयनीय है। इससे बराक घाटी के लोगों के लिए बहुत सारी समस्याएं पैदा होती हैं और कई विकासात्मक और अन्य संबंधित कार्यों में देरी होती है।’’

भाजपा के करीमगंज उम्मीदवार कृपानाथ मल्ला ने दावा किया कि केंद्र में भाजपा शासन के पिछले 10 वर्षों के दौरान, विशेष रूप से बुनियादी ढांचे से संबंधित बहुत सारे विकास हुए हैं, लेकिन ‘यह एक सतत प्रक्रिया है और जब नरेन्द्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनेंगे तो बराक घाटी में और अधिक परियोजनाएं लागू की जाएंगी।’’

हालांकि, एआईयूडीएफ के उनके प्रतिद्वंद्वी सहाबुल इस्लाम चौधरी ने आरोप लगाया कि बराक घाटी में ढांचागत विकास असम के अन्य हिस्सों की तुलना में लगभग नगण्य है और राज्य सरकार द्वारा वादा किया गया मिनी सचिवालय भी अभी तक कार्यात्मक नहीं हुआ है।

बेरोजगारी का मुद्दा भी एक प्रमुख चिंता का विषय है जिसे उम्मीदवारों द्वारा रेखांकित किया जा रहा है क्योंकि कई युवाओं को नौकरियों के लिए दूसरे शहरों में पलायन करना पड़ता है।

हालांकि, शुक्लाबैद्य ने बताया कि सरकार अपनी जमीन पर या तो एक बड़ा उद्योग या छोटे उद्योगों का एक समूह सार्वजनिक–निजी साझेदारी (पीपीपी) आधार पर स्थापित करने की भी योजना बना रही है। उन्होंने कहा कि इससे बराक घाटी के उन युवाओं को रोजगार मिलेगा जिन्हें आमतौर पर रोजगार के लिए बाहर जाना पड़ता है।

भाषा अमित धीरज

धीरज