भू-राजनीतिक चुनौतियों के बीच सीओपी30 ‘ग्लोबल साउथ’ की प्राथमिकताओं को बरकरार रखे हुए है: विशेषज्ञ
भू-राजनीतिक चुनौतियों के बीच सीओपी30 ‘ग्लोबल साउथ’ की प्राथमिकताओं को बरकरार रखे हुए है: विशेषज्ञ
नयी दिल्ली, पांच दिसंबर (भाषा) भारत के पूर्व वार्ताकारों सहित जलवायु विशेषज्ञों ने शुक्रवार को कहा कि बेलेम में हुए सीओपी30 के परिणामों से विकासशील देशों को कुछ महत्वपूर्ण लाभ हुए हैं जबकि जीवाश्म ईंधन की ओर रुख करने और इसके लिए वित्तपोषण पर प्रगति सीमित रही।
पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने यहां एक चर्चा को संबोधित करते हुए कहा कि जीवाश्म ईंधन से स्वच्छ ऊर्जा की ओर रुख करना जलवायु कार्रवाई के लिए बेहद जरूरी है, लेकिन दुबई में हुए सीओपी28 में व्यक्त की गई प्रतिबद्धता बेलेम के परिणामों में स्पष्ट रूप से प्रदर्शित नहीं हुई।
उन्होंने कहा कि भारत इस परिवर्तन का समर्थन करता है लेकिन इसका खर्च कौन वहन करेगा, यह प्रश्न अभी भी अनसुलझा है।
श्याम सरन ने कहा, “यह कोई ऐसा बदलाव नहीं है, जिसके लिए आपको कीमत नहीं चुकानी पड़ेगी। इसके लिए संसाधनों की आवश्यकता होती है। जब यूक्रेन संकट ने ऊर्जा संकट को जन्म दिया तो जलवायु कार्रवाई के कई समर्थक तुरंत जीवाश्म ईंधन के विकल्प की ओर लौट गए। भारत में भी हम इन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।”
सरन ने कहा कि भारत पर उत्सर्जन में कटौती का ‘भारी दबाव’ है, हालांकि देश ने नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा दक्षता के क्षेत्र में अच्छी प्रगति की है।
उन्होंने कहा, “भारत के पास दूसरे देशों को बताने के लिए बहुत कुछ हैं, लेकिन मौजूदा उत्सर्जन पर अत्यधिक ध्यान इनके प्रभाव को ढक देता है और धारणा को विकृत कर देता हैं।”
सीओपी30 के विशेष दूत (दक्षिण एशिया) और ऊर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) अरुणाभ घोष ने कहा कि भारत को सीओपी की मेजबानी की दिशा में काम करना चाहिए, जो जो ‘क्या’ किया जाना चाहिए इस पर नहीं, बल्कि समाधान ‘कैसे’ लागू किए जा सकते हैं, इस पर केंद्रित हो।
उन्होंने सीओपी30 की अध्यक्षता के लिए ब्राजील की प्रशंसा की क्योंकि उन्होंने ऐसे समय में इस मंच को बचाए रखा, जब वैश्विक प्लास्टिक संधि वार्ता और अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन में चर्चाओं सहित अन्य बहुपक्षीय प्रक्रियाएं ‘अमेरिका के दबाव में पूरी तरह से ध्वस्त हो गईं’।
वर्ष 2013 से 2021 के बीच भारत के मुख्य जलवायु वार्ताकार के रूप में कार्य करने वाले पूर्व अतिरिक्त सचिव रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सीओपी से अपेक्षाएं यथार्थवादी होनी चाहिए।
उन्होंने कहा, “ये बैठकें किसी क्रांतिकारी बदलाव के लिए नहीं होतीं। इनकी सफलता का आकलन इसी आधार पर होना चाहिए कि क्या चर्चा हुई और अंततः क्या हासिल हुआ।”
भाषा जितेंद्र पवनेश
पवनेश

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