नयी दिल्ली, 18 दिसंबर (भाषा) उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा से जुड़े एक मामले में अदालत ने शुक्रवार को यह कहते हुए एक व्यक्ति को जमानत दे दी कि उसे घटना के 55 दिन बाद गिरफ्तार किया गया, जबकि दंगे के एक अन्य मामले में वह पहले से ही जेल में बंद था।
आरोप लगाया गया था कि उसने घटना में अपनी संलिपत्तता के बारे में जेल में रहने के दौरान बयान दिया था।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने राशिद नाम के इस व्यक्ति को 20 हजार रुपये के जमानत बॉन्ड और इतनी ही राशि के मुचलके पर जमानत दे दी।
मामला फरवरी में हुई हिंसा के दौरान दिल्ली के गोकलपुरी में एक दुकान में तोड़फोड़ और इसमें आग लगाने से जुड़ा है।
अदालत ने कहा कि पुलिस ने दो गवाहों के बयान के आधार पर जमानत याचिका का विरोध किया, लेकिन उनके बयानों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि उन्होंने खासकर सह-आरोपी शाहनवाज का नाम लिया था और राशिद की भूमिका के बारे में कुछ नहीं कहा।
इसने यह भी कहा कि पुलिस मामले में जिस सीसीटीवी फुटेज की बात कर रही है, वह 24 फरवरी की है, जबकि घटना 25 फरवरी को हुई थी।
अदालत ने कहा कि मामले में पुलिस के दो गवाहों की विश्वसनीयता पर गंभीर संदेह है क्योंकि उन्होंने आरोपी का नाम लेने के लिए सात अप्रैल तक का इंतजार किया।
इसने राशिद को जमानत प्रदान करते हुए निर्देश दिया कि वह सबूतों से छेड़छाड़ न करे और न ही गवाहों का प्रभावित करे तथा अपने मोबाइल फोन पर ‘आरोग्य सेतु’ ऐप डाउनलोड करे।
उत्तर-पूर्वी दिल्ली में फरवरी में हुए दंगों में 53 लोग मारे गए थे और लगभग 200 अन्य घायल हुए थे।
भाषा नेत्रपाल उमा
उमा
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