अदालत ने धर्म और ‘रिलीजन’ के अर्थ संबंधी जनहित याचिका पर केंद्र, दिल्ली सरकार से जवाब मांगा |

अदालत ने धर्म और ‘रिलीजन’ के अर्थ संबंधी जनहित याचिका पर केंद्र, दिल्ली सरकार से जवाब मांगा

अदालत ने धर्म और ‘रिलीजन’ के अर्थ संबंधी जनहित याचिका पर केंद्र, दिल्ली सरकार से जवाब मांगा

:   Modified Date:  November 8, 2023 / 03:35 PM IST, Published Date : November 8, 2023/3:35 pm IST

नयी दिल्ली, आठ नवंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को उस जनहित याचिका पर केंद्र और दिल्ली सरकार से जवाब मांगा जिसमें अधिकारियों को ‘रिलीजन’ शब्द का ‘उचित अर्थ’ उपयोग करने और आधिकारिक दस्तावेज में इसका इस्तेमाल ‘धर्म’ के पर्यायवाची के रूप में न करने का निर्देश दिए जाने का आग्रह किया गया है।

मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर जवाब देने के लिए सरकारों को समय प्रदान किया।

याचिका में जनता को शिक्षित करने और धर्म-आधारित नफरत और घृणा भाषणों को नियंत्रित करने के लिए प्राथमिक तथा माध्यमिक विद्यालयों के पाठ्यक्रम में ‘धर्म’ तथा ‘रिलीजन’ पर एक अध्याय शामिल करने का निर्देश दिए जाने का भी आग्रह किया गया है।

इसमें कहा गया है, ‘‘अगर हम ‘रिलीजन’ को परिभाषित करने का प्रयास करें तो हम कह सकते हैं कि ‘रिलीजन’ एक परंपरा है, धर्म नहीं। ‘रिलीजन’ एक पंथ या आध्यात्मिक वंश है जिसे ‘संप्रदाय’ (समुदाय) कहा जाता है। इसलिए, ‘रिलीजन’ का अर्थ समुदाय है।’’

याचिका में आग्रह किया गया है कि जन्म प्रमाणपत्र, आधार कार्ड, स्कूल प्रमाणपत्र, राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, अधिवास प्रमाणपत्र, मृत्यु प्रमाणपत्र और बैंक खाते आदि जैसे दस्तावेजों में ‘रिलीजन’ का उपयोग ‘धर्म’ के पर्यायवाची के रूप में नहीं किया जाना चाहिए।

इसमें कहा गया है, ‘‘दैनिक जीवन में, हम कहते हैं कि यह व्यक्ति ‘वैष्णव धर्म’ या जैन धर्म का पालन करता है, या कोई बौद्ध धर्म या इस्लाम या ईसाई धर्म का पालन करता है, यह सही नहीं है। इसके बजाय, हमें यह कहना चाहिए कि यह व्यक्ति ‘वैष्णव संप्रदाय’ का पालन करता है या यह व्यक्ति ‘शिव संप्रदाय’ का पालन करता है या ‘बौद्ध संप्रदाय’ का पालन करता है। यह व्यक्ति इस्लाम या ईसाई संप्रदाय का पालन करता है।’’

याचिका के अनुसार, ‘रिलीजन’ के लिए कई युद्ध और युद्ध जैसी स्थितियां हुई हैं। ‘रिलीजन’ जनसमूह पर कार्य करता है। ‘रिलीजन’ में लोग किसी न किसी के रास्ते पर चलते हैं। दूसरी ओर, धर्म ज्ञान का मार्ग है।

इसमें कहा गया है, ‘‘रिलीजन पूरे इतिहास में सबसे शक्तिशाली विभाजनकारी ताकतों में से एक रहा है’ जबकि ‘धर्म’ अलग है क्योंकि यह एकजुट करता है।’’

याचिका के अनुसार, ‘‘धर्म में कभी भी विभाजन नहीं हो सकता। प्रत्येक व्याख्या मान्य एवं स्वागत योग्य है। कोई भी प्राधिकार इतना महान नहीं है कि उस पर सवाल न उठाया जाए, इतना पवित्र नहीं कि उसे छुआ न जाए। स्वतंत्र इच्छा के माध्यम से असीमित व्याख्यात्मक स्वतंत्रता ही धर्म का सार है, क्योंकि धर्म स्वयं सत्य की तरह ही असीमित है। कोई भी कभी भी इसका एकमात्र मुखपत्र नहीं बन सकता।”

मामले में अगली सुनवाई 16 जनवरी को होगी।

भाषा

नेत्रपाल पवनेश

पवनेश

 

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