कार्तिक मास में गोवर्धन पूजा का महत्त्व

कार्तिक मास में गोवर्धन पूजा का महत्त्व

कार्तिक मास में  गोवर्धन पूजा का महत्त्व
Modified Date: November 29, 2022 / 07:54 pm IST
Published Date: November 7, 2018 7:40 am IST

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन उत्सव मनाया जाता है। इस दिन बलि पूजा, अन्नकूट, मार्गपाली आदि उत्सव भी मनाये जाते हैं। अन्न कूट और गोवर्धन पूजा द्वापर में भगवान कृष्ण द्वारा प्रारंभ की गई। इस दिन गाय, बैल आदि पशुओं का स्नान कराकर मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती है। गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर षोडशोपचार से इसकी पूजा की जाती है और रात्रि में तेल का दीपक जलाकर उसकी परिक्रमा करते हैं।

कहावत प्रचलित है कि एक बार की गोपिकायें गोवर्धन पवर्त की तराई में छप्पन भोग बनाकर भगवान इंद्र की पूजा कर रही थीं, जब कृष्ण ने पूछा तो गोपिकाओं ने बताया कि इंद्र की कृपा से वर्षा होती है, इसलिए हम इंद्र की पूजा कर रही हैं। भगवान ने कहा कि वर्षा तो गोवर्धन पर्वत के कारण होती है। तब तो हमें इंद्र की जगह गोवर्धन पवर्त की पूजा करनी चाहिए और फिर सभी ग्वाल बालों के साथ कृष्ण ने गोवर्धन की पूजा प्रारंभ की। इंद्र नाराज होकर मूसलाधार बारिश करने लगे। भगवान कृष्ण के साथ सारे ग्वाल-बाल गोधर्वन पर्वत पहुॅचे और भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पवर्त को छत्ते की तरह अपनी कनिष्ठा उंगली में सात दिन तक धारण किया और इस तरह गोवर्धन की पूजा प्रारंभ हुई। तभी से गोवर्धन पूजन के पश्चात् अन्न कूट मनाया जाता है।

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