वह कभी अपने ‘विक्टोरिया क्रॉस’ के बारे में बात नहीं करते थे: लेफ्टिनेंट जनरल भगत की बेटी ने कहा

वह कभी अपने ‘विक्टोरिया क्रॉस’ के बारे में बात नहीं करते थे: लेफ्टिनेंट जनरल भगत की बेटी ने कहा

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  • Publish Date - May 23, 2024 / 07:52 PM IST,
    Updated On - May 23, 2024 / 07:52 PM IST

(कुणाल दत्त)

(तस्वीरों के साथ)

नयी दिल्ली, 23 मई (भाषा) महान सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल पीएस भगत अपने सैन्य साथियों के लिए ‘विक्टोरिया क्रॉस’ विजेता थे और अपने शानदार करियर के दौरान जिन सैनिकों की उन्होंने कमान संभाली थी उनके लिए वह ‘अपना साहिब’ थे, लेकिन अशाली वर्मा के लिए वह एक स्नेही पिता से भी अधिक थे जो मौज-मस्ती करना पसंद करते थे।

आज लेफ्टिनेंट जनरल भगत की 49वीं पुण्य तिथि है, जो द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान एक साहसिक कार्रवाई के लिए प्रतिष्ठित ‘विक्टोरिया क्रॉस’ जीतने वाले पहले भारतीय अधिकारी थे। उनके कमांडिंग ऑफिसर ने इसे उनके ‘निरंतर साहस की सबसे लंबी उपलब्धि’ के रूप में वर्णित किया था।

पीटीआई की वीडियो सेवा के साथ साक्षात्कार में वर्मा ने कहा कि वह एक अधिकारी, एक सज्जन व्यक्ति और कार्य को अंजाम देने में जी-जान लगा देने वाले व्यक्ति थे, लेकिन उन्होंने कभी भी घर पर अपनी सैन्य उपलब्धियों के बारे में घमंड नहीं किया।

वर्मा ने कहा, ‘उनके निधन के समय मैं सिर्फ 22 साल की थी, इसलिए वह मेरे पिता अधिक थे… मैं उनके सैन्य जीवन के बारे में बहुत कम जानती हूं। वास्तव में, वह कभी भी ‘विक्टोरिया क्रॉस’ के बारे में बात नहीं करते थे। उन्होंने मुझे कभी नहीं बताया कि उन्हें यह कैसे मिला। उन्होंने कहा कि उन्हें यह नहीं मिलना चाहिए था और जो लोग मारे गए उन्हें यह मिलना चाहिए था। उन्हें इसके बारे में बात करना पसंद नहीं था, वह नहीं मानते थे कि वह इसके लायक थे।’

उन्होंने कहा, ”अभिलेखों से हमें पता चला कि उन्होंने ‘विक्टोरिया क्रॉस’ कैसे जीता। और उन दिनों इस बारे में लिखा भी गया था।”

भगत का जन्म अक्टूबर 1918 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में हुआ था। 1941 में जब वह सेना में सेकंड लेफ्टिनेंट थे तब भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने उन्हें ‘विक्टोरिया क्रॉस’ से सम्मानित किया था। 23 मई, 1975 को इस बहादुर अधिकारी का निधन हो गया।

दिल्ली स्थित रक्षा विचार मंच ‘यूनाइटेड सर्विस इंस्टिट्यूशन ऑफ इंडिया’ (यूएसआई) के अनुसार, भगत को 15 जुलाई 1939 को ‘रॉयल बॉम्बे सैपर्स एंड माइनर्स’ में सेकंड लेफ्टिनेंट के रूप में ब्रिटिश भारतीय सेना में नियुक्त किया गया था और बाद में यूरोप में युद्ध शुरू होने के तुरंत बाद सितंबर में उन्हें पुणे में ‘21 फील्ड कंपनी ऑफ इंजीनियर्स’ में तैनात किया गया था।

बॉम्बे सैपर्स ने 2022 में यूएसआई में ‘लेफ्टिनेंट जनरल पीएस भगत, वार्षिक स्मारक व्याख्यान’ की शुरुआत की और हाल ही में दूसरा व्याख्यान दिल्ली में एक कार्यक्रम में हुआ जिसमें सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे, कई पूर्व सेना प्रमुखों, दिवंगत जनरल की बेटी और अन्य लोगों ने भाग लिया।

मानेकशॉ सेंटर की लॉबी में भगत और उनके असैन्य और सैन्य जीवन की अभिलेखीय छवियों वाले दो विशाल पोस्टर भी लगाए गए। इसके एक हिस्से में 10 जून, 1941 को युद्ध कार्यालय से पुन: प्रस्तुत किया गया एक लंबा नोट था, जिसमें उनके वीरतापूर्ण कार्य का वर्णन किया गया था जिसके लिए उन्हें ‘विक्टोरिया क्रॉस’ से सम्मानित किया गया था।

सेना प्रमुख ने कार्यक्रम के दौरान अपने संबोधन में कहा, ‘जनरल भगत ने दुश्मन की गोलाबारी के बीच बारूदी सुरंगों को साफ किया, तीन बार बारूदी विस्फोटों का सामना किया और उनके कान का पर्दा फट गया, फिर भी उन्होंने 96 घंटों तक लगातार अपने काम को अंजाम दिया। वह इसी से ‘विक्टोरिया क्रॉस’ पुरस्कार विजेता बने थे।’’

भाषा नेत्रपाल पवनेश

पवनेश