मानवता एवं सच्चाई को लिंग या जाति के आधार पर बांटा नहीं जा सकता: कोविंद

मानवता एवं सच्चाई को लिंग या जाति के आधार पर बांटा नहीं जा सकता: कोविंद

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  • Publish Date - February 20, 2022 / 05:59 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:52 PM IST

पुरी (ओडिशा), 20 फरवरी (भाषा) राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने रविवार को कहा कि मानवता और सच्चाई सर्वोच्च हैं तथा उन्हें जाति, लिंग या धर्म के आधार पर विभाजित नहीं किया जा सकता है क्योंकि भारतीय संस्कृति में हमेशा जरूरतमंदों की सेवा को शीर्ष प्राथमिकता दी गई है।

कोविंद ने यह भी कहा कि भारत में विभिन्न धार्मिक परंपराएं और पद्धतियां प्रचलन में हैं लेकिन एकमात्र मान्यता है पूरी मानतवा को एक परिवार समझकर सभी के कल्याण के लिए काम करना।

राष्ट्रपति ने यहां गौड़ीय मठ एवं मिशन के संस्थापक श्रीमद भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद के 150वें जयंती समारोह का उद्घाटन करते हुए कहा, ‘‘जरूरतमंदों की सेवा करने को हमारी संस्कृति में शीर्ष स्थान प्रदान किया गया है। मानवता एवं सच्चाई सर्वोच्च हैं जिन्हें विभाजित नहीं किया जा सकता। आखिरी लक्ष्य समाज का कल्याण है।’’

चिकित्सकों, नर्सों एवं स्वास्थ्यकर्मियों की प्रशंसा करते हुए कोविंद ने कहा कि उन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान सेवा के इसी जज्बे को प्रदर्शित किया जबकि उनमें से कई इस वायरस से संक्रमित भी हो गये थे।

कोविड-19 मुक्त विश्व के लिए प्रार्थना करते हुए राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘ हमारे कोविड योद्धाओं ने अपनी जान कुर्बान कर दी लेकिन उनके सहकर्मियों का समर्पण अटूट बना रहा। पूरा देश हमेशा ऐसे योद्धाओं का ऋणी रहेगा।’’

सोलहवीं सदी के भक्ति संत श्री चैतन्य महाप्रभु का संदर्भ देते हुए कोविंद ने कहा कि भारत में ईश्वर की ‘भक्तिभाव’ से पूजा-अर्चना करना हमेशा अहम रहा है।

उन्होंने कहा, ‘‘ ‘महाप्रभु’ शब्द श्री चैतन्य के समाज के प्रति उनके महान उपदेशों के कारण जोड़ा गया।’’

उन्होंने कहा कि उनके असाधारण समर्पण से प्रभावित होकर बड़ी संख्या में लोगों ने भक्ति मार्ग को चुना।

इन सम्मानीय संत का हवाला देते हुए राष्ट्रपति ने कहा , ‘‘ व्यक्ति को अहं की भावना से बिल्कुल परे वृक्ष से भी अधिक सहिष्णु होना चाहिए एवं दूसरों का सम्मान करना चाहिए।’’

उन्होंने कहा कि ‘भक्ति मार्ग’ के संत उस दौर में धर्म, जाति , लिंग या रीति-रिवाजों पर आधारित भेदभाव से बिल्कुल ऊपर थे और उन्होंने भारत की सांस्कृतिक विविधता में एकता को मजबूत करने का प्रयास किया।

उन्होंने कहा, ‘‘ भक्ति समुदाय के संतों ने एक दूसरे का विरोध नहीं किया बल्कि वे अक्सर दूसरे की लेखनी से प्रेरित होते थे।’’

भाषा राजकुमार नरेश

नरेश