आईआईटी, मुंबई मानवीय आधार पर दलित लड़के को सीट उपलब्ध कराये : शीर्ष अदालत

आईआईटी, मुंबई मानवीय आधार पर दलित लड़के को सीट उपलब्ध कराये : शीर्ष अदालत

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  • Publish Date - November 22, 2021 / 10:12 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:34 PM IST

नयी दिल्ली, 22 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने आईआईटी, मुंबई को मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की सलाह देते हुए 48 घंटे के भीतर उस युवा दलित अभ्यर्थी को सीट आवंटित करने का सोमवार को निर्देश दिया, जो अपने क्रेडिट कार्ड के काम न करने की वजह से फीस जमा करने से चूक गया था।

शीर्ष अदालत ने अपनी पूर्ण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए आईआईटी, मुंबई को निर्देश दिया कि वह इलाहाबाद के दलित लड़के को अतिरिक्त सीट आवंटित करे, क्योंकि यदि उसे लौटा दिया जाता है, तो यह न्याय का मजाक होगा।

न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना की पीठ ने कहा, ‘‘इस अदालत के सामने एक युवा दलित छात्र है, जो आईआईटी, मुंबई में आवंटित बहुमूल्य सीट खोने के कगार पर है। अपीलकर्ता की मुश्किल तो देखिए कि उसे इलाहाबाद, जहां वर्तमान में वह अध्ययन कर रहा है, से खड़गपुर और मुम्बई और अंततः राष्ट्रीय राजधानी के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, यह उस युवा दलित छात्र के साथ न्याय का घोर मजाक होगा, जिसे आखिरकार इस अदालत का रुख करना पड़ा है।’’

पीठ ने कहा कि आईआईटी प्रवेश परीक्षा में अनुसूचित जाति श्रेणी में अखिल भारतीय स्तर पर 864 वां रैंक हासिल करने वाले याचिकाकर्ता प्रिंस जयबीर सिंह को इस शैक्षणिक वर्ष में प्रवेश नहीं दिया जाता है तो वह आगे की प्रवेश परीक्षाओं में शामिल होने के लिए पात्र नहीं होंगे, क्योंकि उन्होंने लगातार दो प्रयासों में परीक्षा दी थी।

पीठ ने कहा, ‘‘इसलिए, हमारा विचार है कि अदालत के समक्ष पेश तथ्यों के मद्देनजर यह संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत्त अधिकार क्षेत्र का अंतरिम चरण में इस्तेमाल के लिए उपयुक्त और उचित मामला है। हम तदनुसार पहले और दूसरे प्रतिवादी (आईआईटी, मुंबई) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देते हैं कि अपीलकर्ता को आईआईटी, मुंबई में सीट आवंटित की जाएगी। यह किसी भी अन्य छात्रों को परेशान किए बिना किया जाएगा, जिन्हें पहले ही प्रवेश दिया जा चुका है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘संबंधित पक्ष इस आदेश की प्रमाणित प्रति पर कार्रवाई करेंगे और इन निर्देशों को 48 घंटे की अवधि के भीतर यानी 24 नवंबर तक लागू करेंगे।’’

सुनवाई के दौरान, पीठ को संयुक्त सीट आवंटन प्राधिकरण (जोसा) और आईआईटी, मुंबई की ओर से पेश अधिवक्ता सोनल जैन ने सूचित किया कि देश भर के किसी भी आईआईटी में सीटें उपलब्ध नहीं हैं, क्योंकि प्रवेश प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और शीर्ष अदालत सिंह को सीट आवंटित करने के लिए अनुच्छेद 142 के तहत आदेश पारित कर सकती है।’’

बेंच ने कहा, ‘बच्चे की पृष्ठभूमि देखिए। क्रेडिट कार्ड खराब होने के बाद उसे अपनी बहन से पैसे उधार लेने पड़े। इस तरह पत्थरदिल न बनें। हम अनुच्छेद 142 के तहत आदेश पारित कर सकते हैं, लेकिन यह आईआईटी के लिए अनुकूल नहीं हो सकता है। आप मानवीय दृष्टिकोण अपना सकते हैं और संभावनाओं का पता लगा सकते हैं। इसे अध्यक्ष को समझाइए।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि छात्रों द्वारा बेहतर विकल्पों में अपने करियर को आगे बढ़ाने के लिए विभिन्न संस्थानों में प्रवेश लेने के बाद कई सीटें खाली हो जाती हैं और आईआईटी को इस छात्र को ऐसी एक सीट आवंटित करनी चाहिए।

पीठ ने कहा, “इस छात्र के लिए कुछ करना होगा। यह प्राथमिक सामान्य ज्ञान है, कौन सा छात्र आईआईटी, मुंबई में नहीं जाना चाहेगा और बतौर शुल्क 50,000 रुपये का भुगतान नहीं करेगा। जाहिर है कि उसे कुछ आर्थिक दिक्कतें हैं। उसे अपनी बहन से पैसे उधार लेने पड़े हैं। ये छात्र साल दर साल इस परीक्षा के लिए पढ़ाई करते हैं। उनकी पृष्ठभूमि देखें।”

जैन ने कहा कि सात अन्य छात्र हैं, जो सीटें आवंटित होने के बावजूद अपनी फीस नहीं दे सके और अदालत को इस तथ्य पर भी विचार करना चाहिए।

पीठ ने कहा कि भविष्य में ऐसी किसी भी स्थिति से बचने के लिए आईआईटी के पास एक मजबूत प्रणाली होनी चाहिए, क्योंकि देश के ग्रामीण हिस्सों के छात्र भी इस परीक्षा में सफल होने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं।

इसने कहा, ‘‘साधारण व्यक्ति के पास एक से अधिक क्रेडिट कार्ड नहीं होते हैं। भुगतान करने के लिए उनके पास सीमित विकल्प होते हैं, अन्यथा, आपके पास केवल महानगरों के छात्र होंगे, न कि देश के ग्रामीण हिस्सों से।’’

शीर्ष अदालत ने गत 18 नवंबर को लड़के के लिए सहायता का हाथ बंटाया था और कहा था कि अदालत को कभी-कभी कानून से ऊपर उठना चाहिए क्योंकि कौन जानता है कि आज से 10-20 साल के बाद वही व्यक्ति हमारे देश का नियंता हो जाए।’’

भाषा

सुरेश दिलीप

दिलीप