जमानत मामले में कारण के महत्व को कम नहीं आंका जा सकता : न्यायालय |

जमानत मामले में कारण के महत्व को कम नहीं आंका जा सकता : न्यायालय

जमानत मामले में कारण के महत्व को कम नहीं आंका जा सकता : न्यायालय

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:46 PM IST, Published Date : May 20, 2022/9:25 pm IST

नयी दिल्ली, 20 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि जमानत देने या अस्वीकार करने के कारणों को बताने के महत्व को कभी भी “कमतर” नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच है जो यह सुनिश्चित करता है कि विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग “विवेकपूर्ण तरीके” से किया गया है।

यह टिप्पणी उस फैसले में आई जिसके द्वारा प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी व न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने हत्या के एक मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा एक व्यक्ति को दी गई नियमित जमानत को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि “जमानत देने या इनकार करने के लिए, ‘अपराध की प्रकृति’ की बहुत बड़ी प्रासंगिकता है।”

न्यायमूर्ति मुरारी ने पीठ के लिये निर्णय लिखते हुए कहा, “निश्चित रूप से अदालतों के लिये जमानत देने या अस्वीकृति करने के लिए एक आवेदन के आकलन कोई निर्धारित फॉर्मूला नहीं है, लेकिन यह निर्धारित करने के लिए कि क्या कोई मामला जमानत देने के लिए उपयुक्त है, इसमें कई कारकों का संतुलन शामिल है, जिनमें से अपराध की प्रकृति, सजा की गंभीरता और अभियुक्तों की संलिप्तता के बारे में प्रथम दृष्टया दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है।”

जमानत के क्षेत्राधिकार को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि आमतौर पर शीर्ष अदालत इस तरह के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करती है।

आदेश में कहा गया, “हालांकि, यह उच्च न्यायालय के लिए समान रूप से आवश्यक है कि वह अपने विवेक का प्रयोग उचित तरीके से, सतर्कतापूर्वक और इस अदालत द्वारा निर्णयों की श्रेणी में निर्धारित बुनियादी सिद्धांतों के कड़ाई से अनुपालन में करे।”

न्यायालय के 25 पन्नों के फैसले में किसी आरोपी को जमानत देते या अस्वीकार करते समय अदालतों द्वारा कारण बताए जाने के महत्व के बारे में विस्तार से बताया गया है और कहा गया है कि यह आश्वासन देता है कि “बाहरी विचारों की अनदेखी” करते हुए प्रासंगिक कारकों को माना गया है।

आदेश में कहा गया, “जमानत देने या अस्वीकार करने के लिए तर्क देने के महत्व को कभी भी कम करके नहीं आंका जा सकता है। प्रथम दृष्टया कारणों को इंगित करने की आवश्यकता है, विशेष रूप से जमानत देने या अस्वीकार करने के मामलों में जहां आरोपी पर गंभीर अपराध का आरोप लगाया जाता है। किसी विशेष मामले में ठोस तर्क एक आश्वासन है कि निर्णय लेने वाले ने सभी प्रासंगिक आधारों पर विचार करने के बाद और बाहरी विचारों की अनदेखी करके विवेक का प्रयोग किया है।”

कारणों को दर्ज करने का कर्तव्य एक महत्वपूर्ण सुरक्षा है जो यह सुनिश्चित करता है कि अदालत को जो विवेकाधीन अधिकार सौंपा गया है, उसका प्रयोग उचित तरीके से किया जाए।

भाषा

प्रशांत नरेश

नरेश

 

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