विवाहेतर संबंधों में महिला सिर्फ पीड़ित क्यों, दोषी क्यों नहीं-सुप्रीम कोर्ट

विवाहेतर संबंधों में महिला सिर्फ पीड़ित क्यों, दोषी क्यों नहीं-सुप्रीम कोर्ट

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  • Publish Date - December 9, 2017 / 06:34 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:21 PM IST

दिल्ली। एक सवाल अक्सर सामने आता रहा है कि जब विवाहेतर संबंधों की बात होती है तो भले ही सामाजिक रूप से उसमें शामिल महिला और पुरुष दोनों को दोषी माना जाता है, लेकिन कानूनन सिर्फ पुरुष को ही अपराधी क्यों ठहराया जाता है? किसी दूसरे व्यक्ति की पत्नी होने के बावजूद किसी पर पुरुष से शारीरिक संबंध बनाने वाली महिला की सहमति का मुद्दा दरकिनार करते हुए उसे पीड़ित और पुरुष को अपराधी क्यों ठहराया जाता है? ये सवाल उठा है देश की उच्चतम न्यायालय में, जिसके बाद भारतीय दंड संहिता के एक पुराने कानून की समीक्षा को लेकर नए सिरे से बहस शुरू हो गई है।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की तीन सदस्यीय पीठ ने धारा 497 को लेकर टिप्पणी की है और कहा है कि वो 157 साल पुराने इस कानून के कानूनी प्रावधानों की वैधता की समीक्षा करेगी। धारा 497 व्यभिचार एडल्टरी से संबंधित है, जिसके मुताबिक कोई भी व्यक्ति जान-बूझकर दूसरे व्यक्ति की पत्नी से उसके पति की सहमति के बिना शारीरिक रिश्ता कायम करता है और ये रिश्ता बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता है तो वह व्यक्ति एडल्टरी का गुनाह करता है। व्यभिचार के इस अपराध के लिए उस व्यक्ति को पांच साल की कैद या जुर्माना या दोनों का प्रावधान धारा 497 के तहत किया गया है, लेकिन इसी मामले में महिला शारीरिक संबंध की सहमति देने और बराबर की हिस्सेदार होने के बावजूद इस अपराध के उकसावे के लिए सज़ा की हकदार नहीं होगी।

सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि उसे इस तथ्य पर विचार करने की आवश्यकता है कि एक विवाहित महिला, एक विवाहित पुरुष के साथ शारीरिक संबंध बनाती है, जो उस महिला का पति नहीं है, तो वो भी एडल्टरी के इस अपराध में बराबर की शरीक होती है, ऐसे में उसे भी इस व्यभिचार के अपराध का दोषी क्यों नहीं माना जाना चाहिए और सज़ा क्यों नहीं मिलनी चाहिए? अदालत ने कहा कि वक्त आ गया है, जब समाज को ये महसूस होना चाहिए कि हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों के बराबर हैं, ऐसे में धारा 497 में इस तरह का प्रावधान मौजूदा समय के हिसाब से काफी पुरातन लगता है और इसीलिए इस पर नोटिस जारी किया जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने धारा 497 में शामिल एक और विषय पर ध्यान दिलाते हुए टिप्पणी की कि इसमें किसी दूसरे पुरुष से शारीरिक संबंध बनाने वाली महिला के पति की सहमति या मौन सहमति की बात कही गई है कि अगर ये सहमति न हो तभी इस अपराध में शामिल पुरुष दोषी होता है, ऐसे में अगर महिला का पति उसे सहमति दे भी देता है तो क्या ये अपराध नहीं होगा? क्या ऐसा करके महिला का पति अपनी पत्नी को उपभोग की वस्तु की श्रेणी में रखने का दोषी नहीं होगा? अदालत ने इस पर भी विचार करने की बात कही है।

केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने इस नोटिस का जवाब देने के लिए चार हफ्ते का वक्त दिया है, अब ये देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र सरकार इसका क्या जवाब देती है?

वेब डेस्क, IBC24