जिया के कार्यकाल में भारत-बांग्लादेश के संबंध जटिल, अक्सर तनावपूर्ण रहे : पूर्व भारतीय राजनयिक
जिया के कार्यकाल में भारत-बांग्लादेश के संबंध जटिल, अक्सर तनावपूर्ण रहे : पूर्व भारतीय राजनयिक
नयी दिल्ली, 30 दिसंबर (भाषा) भारत के दो पूर्व राजनयिकों ने कहा कि बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया का राजनीतिक उत्थान, उथल-पुथल भरे सैन्य शासन के बाद लोकतंत्र की पुन: स्थापना के प्रति देश की ‘‘दृढ़ता’’ का प्रतीक था और साथ ही उन्होंने बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) को भी मजबूती दी, जो उनके पति की मृत्यु के बाद पूरी तरह बिखरने के ‘‘गंभीर खतरे’’ का सामना कर रही थी।
उन्होंने यह भी कहा कि खालिदा जिया के कार्यकाल के दौरान भारत-बांग्लादेश संबंध ‘‘जटिल’’ और ‘‘अक्सर तनावपूर्ण’’ रहे, जिसका कारण पूर्वोत्तर भारत में उग्रवादियों को कथित समर्थन और उन्हें बांग्लादेश में पनाह मिलना बताया गया।
जिया का 80 वर्ष की आयु में मंगलवार को ढाका में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। वह बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं और दशकों तक देश की राजनीति पर उनका वर्चस्व रहा।
भारत की पूर्व उच्चायुक्त वीणा सिकरी ने कहा कि जिया के दूसरे कार्यकाल (2001-2006) के दौरान पाकिस्तान का प्रभाव काफी अधिक था और यह भारत के लिए ‘‘बेहद कठिन समय’’ था। उन्होंने बताया कि इस दौरान द्विपक्षीय सहयोग से जुड़े कई मुद्दों पर चर्चा हुई।
सिकरी ने 2003-2006 के बीच ढाका में सेवा दी थी।
सिकरी ने 1992 में जिया की भारत यात्रा और नवंबर 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ढाका यात्रा को भी याद किया। मार्च 2006 में जिया ने सिंह के आमंत्रण पर भारत की राजकीय यात्रा की थी, जिसमें दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों के सभी पहलुओं पर व्यापक चर्चा की थी।
पूर्व राजनयिक वेणु राजामोनी ने कहा कि जिया के शासन में भारत-बांग्लादेश संबंध ‘‘जटिल और अक्सर तनावपूर्ण’’ रहे।
उन्होंने कहा कि शेख हसीना की अवामी लीग के विपरीत जिया की बीएनपी सरकारों का रुख नयी दिल्ली के प्रति सतर्क और लेन-देन पर आधारित था।
जिया के पहले कार्यकाल में व्यापार और गंगा जल बंटवारे जैसे मुद्दों पर कुछ प्रगति हुई लेकिन सीमा विवाद, उग्रवादियों को कथित संरक्षण और प्रवासन जैसे मुद्दों पर तनाव बना रहा। दूसरे कार्यकाल में खासकर जमात-ए-इस्लामी से गठबंधन के बाद संबंध और खराब हुए। भारत ने बांग्लादेशी सरजमीं से काम कर रहे भारत विरोधी तत्वों को लेकर गंभीर चिंताएं जतायी थीं।
हालांकि, दोनों राजनयिकों ने माना कि सैन्य शासन के बाद लोकतंत्र की बहाली में खालिदा जिया की भूमिका अहम रही। 1982 में जनरल एच.एम. इरशाद के तख्तापलट के बाद उन्होंने लोकतंत्र बहाली का आंदोलन शुरू किया और बीएनपी को एकजुट रखा।
उनकी विरासत पर सिकरी ने कहा कि जिया और शेख हसीना दोनों ने इरशाद की तानाशाही के शांतिपूर्ण अंत में बड़ी भूमिका निभाई।
आगे बीएनपी की राह पर टिप्पणी करते हुए राजामोनी ने कहा कि पार्टी का भविष्य अब उनके बेटे तारिक रहमान पर निर्भर है, जो 17 साल के निर्वासन के बाद हाल ही में लौटे हैं।
खालिदा जिया का जन्म 15 अगस्त 1946 को अविभाजित भारत के दिनाजपुर जिले में हुआ था। उनके पिता विभाजन के बाद जलपाईगुड़ी से पूर्वी पाकिस्तान चले गए थे। जलपाईगुड़ी में उनका परिवार चाय का व्यवसाय करता था।
भाषा गोला नरेश
नरेश

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