जिसने दिखाई राह, उसी को लेकर घटती जा रही चाह!

जिसने दिखाई राह, उसी को लेकर घटती जा रही चाह!

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  • Publish Date - September 19, 2017 / 12:38 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:28 PM IST

 

रविवार की सुबह चित्रहार हो या शाम को फिल्म या फिर रामानंद सागर की रामायण, भारतीय दर्शकों के दिल के सबसे ज्यादा करीब अगर कोई हुआ करता था तो वो था दूरदर्शन। नाम भले ही दूरदर्शन लेकिन दशकों तक ये दर्शकों के “दिल के करीब” रहा। आज भी दूरदर्शन का नाम सुनते ही अतीत की कई बातें याद आती हैं तो वो पल मनोरंजन से भर जाता है। जब दूरदर्शन की शुरुआत हुई थी, उस समय का प्रसारण हफ्ते में सिर्फ तीन दिन आधा-आधा घंटे होता था. पहले इसका नाम ‘टेलीविजन इंडिया’ दिया गया था बाद में 1975 में इसका हिन्दी नामकरण ‘दूरदर्शन’ नाम से किया गया.

यूनेस्को ने भारत को दूरदर्शन शुरू करने के लिए $20,000 और 180 फिलिप्स टीवी सेट दिए थे साल 1965 में ऑल इंडिया रेडियो के हिस्से के रूप में नियमित ट्रांसमिशन शुरू हुआ, बाद में 5 मिनट का न्यूज बुलेटिन जोड़ा गया। इसके बाद 1982 में 25 अप्रैल को रंगीन प्रसारण से लेकर देश का सबसे बड़ा ब्रॉडकास्टिंग संस्था बनने तक, इस नायाब सफर में दूरदर्शन ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। अब दूरदर्शन के पास 35 चैनल, 67 टेलीविजन स्टूडियो, 1,411 ट्रांसमीटर और 15 हजार से ज्यादा कर्मचारी हैं।

अगर आज दूरदर्शन की तुलना इसी के पुराने दौर से करें तो महसूस करेंगे कि ये दर्शकों के दिल के उतना करीब नहीं रह गया है, जितना करीब ये कभी हुआ करता था। लोगों की बदलती पसंद, जीवन शैली में लगातार आ रहा बदलाव, अलग-अलग मनोरंजन और न्यूज चैनलों में दर्शकों को मिलने वाला मसाला और इन सबको मिलाकर बनी स्थिति का मुकाबला करने में दूरदर्शन पिछड़ता चला गया। दूरदर्शन की पहुंच घटने के साथ-साथ इसकी कमाई भी घटती चली गई। हालांकि अभी भी कुछ दर्शकों का मानना है कि दूरदर्शन समाचार खबरों की सच्चाई के सबसे करीब होते हैं, इतना ही नहीं सरकार की ओर से दूरदर्शन पर ही राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के देश के नाम संबोधन. स्वतंत्रता दिवस समारोह, गणतंत्र दिवस परेड आदि का प्रसारण होता है, जिसे दूसरे चैनल्स सौजन्य देकर चलाते हैं, लेकिन सौजन्य के बावजूद ज्यादा पहुंच और लोकप्रियता के कारण दूसरे चैनल्स दूरदर्शन से ज्यादा देखे जा रहे हैं।