अपराध के संबंध में नाबालिग का कबूलनामा लेना असंवैधानिक : उच्च न्यायालय

अपराध के संबंध में नाबालिग का कबूलनामा लेना असंवैधानिक : उच्च न्यायालय

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  • Publish Date - September 23, 2022 / 08:13 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:40 PM IST

नयी दिल्ली, 23 सितंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी किशोर से उसके कथित अपराध के बारे में कबूलनामा मांगा जाना ‘असंवैधानिक’ है, क्योंकि ऐसा करने से सुनवाई के प्रारम्भिक चरण में ही यह पूर्वधारणा बन जाती है कि बच्चे ने अपराध किया है।

अदालत ने, साथ ही, यह भी कहा कि (उम्र विवाद वाले) किशोर का कबूलनामा हासिल करना किशोर न्याय अधिनियम के तहत तैयार किए जाने वाले प्रारंभिक मूल्यांकन की रिपोर्ट के दायरे से बाहर है।

न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता और न्यायमूर्ति अनीश दयाल की पीठ ने इस विषय पर एक मनोवैज्ञानिक द्वारा तैयार की गई प्रारंभिक मूल्यांकन रिपोर्ट का अवलोकन किया और कहा कि रिपोर्ट के खंड-तीन के तहत इस बात का स्पष्ट संज्ञान लिया जा सकता है कि किस तरह एक बच्चे से यह कबूल करने की मांग की गयी है कि अपराध कैसे किया गया और इसके क्या कारण थे।

पीठ ने अपने 19 सितंबर के आदेश में कहा, ‘‘बच्चे से कबूलनामा मांगने का यह तरीका असंवैधानिक है और जेजे अधिनियम की धारा 15 के तहत तैयार की जाने वाली प्रारंभिक मूल्यांकन रिपोर्ट के दायरे से बाहर है।’’

जेजे अधिनियम की धारा 15 में प्रावधान है कि यदि 16 से 18 वर्ष की आयु के बच्चे ने जघन्य अपराध किया है, तो किशोर न्याय बोर्ड घटना को अंजाम देने की दृष्टि से बच्चे के परिपक्वता स्तर, उसके मानसिक और शारीरिक की क्षमता के आकलन के लिए प्रारंभिक आकलन कर सकता है।

पीठ ने यह भी कहा कि अधिनियम के तहत, परिवीक्षा अधिकारी को एक प्रपत्र भरना होता है, जो आरोपी बच्चों के लिए सामाजिक जांच रिपोर्ट (एसआईआर) तैयार करने से संबंधित है।

इसने कहा कि बच्चे की कथित भूमिका और अपराध करने के कारण के बारे में दो प्रश्न ‘‘गलत थे क्योंकि पूर्व-परीक्षण चरण में ही यह पूर्वधारणा बना ली गयी है कि बच्चे ने अपराध किया है।’’

भाषा सुरेश माधव

माधव