Pirul Lao-Paise Pao Campaign: जंगल की सूखी पत्तियां बेचने के लिए हो जाओ तैयार, 50 रुपए किलो में खरीदेगी सरकार…

Pirul Lao-Paise Pao Campaign: जंगल की सूखी पत्तियां बेचने के लिए हो जाओ तैयार, 50 रुपए किलो में खरीदेगी सरकार

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  • Publish Date - May 15, 2024 / 03:58 PM IST,
    Updated On - May 15, 2024 / 03:58 PM IST

Pirul Lao-Paise Pao Campaign: देहरादून। उत्तराखंड सरकार ने पर्वतीय जंगलों में लगी आग पर काबू पाने के लिए नई पहल की है। अब सरकार का मास्टर प्लान ये है कि चीड़ के पेड़ यानी (पिरूल का पेड़) से सूखकर गिरने वाली पत्तियों को 50 रुपए प्रति किलो के हिसाब से खरीदा जा रहा है। ग्रामीण जंगल में जाकर पत्तियां इकट्ठी करते हैं और सरकार को बेच रहे हैं।

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वैसे तो हर साल उत्तराखंड के जंगलों में आग लगना आम बात हो गया है, इस साल भी वनाग्नि के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। दरअसल वनों में आग लगने की मुख्य वजह पिरूल को माना जाता है। ऐसे में अब सरकार जंगलों में लगी आग को रोकने के लिए ‘पिरूल लाओ-पैसे पाओ’ मिशन पर कार्य कर रही है। उत्तराखंड सरकार ने पिरूल कलेक्शन का मूल्य तीन रुपए प्रति किलो से बढ़ाकर 50 रुपए पर KG करने जा रही है, जिससे लोग पिरूल इक्कठा कर रोजगार भी पा सकते हैं।

CM धामी ने X पर पोस्ट करते हुए लिखा-

पिरूल की सूखी पत्तियां वनाग्नि का सबसे बड़ा कारण होती हैं। वनाग्नि को रोकने के लिए सरकार ‘पिरूल लाओ-पैसे पाओ’ मिशन पर भी कार्य कर रही है। इस मिशन के तहत जंगल की आग को कम करने के उद्देश्य से पिरूल कलेक्शन सेंटर पर ₹50/किलो की दर से पिरूल खरीदा जायेगा। इस मिशन का संचालन पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड द्वारा किया जाएगा इसके लिए ₹50 करोड़ का कार्पस फंड पृथक रूप से रखा जाएगा।

 

हर साल 20 लाख टन से अधिक गिरता है पिरूल

लिहाजा, उत्तराखण्ड वन सम्पदा के क्षेत्र में समृद्ध तो है ही, साथ ही यहां चीड़ के वन भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। उत्तराखंड के 71 फीसदी वन क्षेत्रों में 3.43 लाख हैक्टेयर चीड़ के जंगलों की हिस्सेदारी है। राज्य में 500 से 2200 मीटर ऊॅचाई वाले क्षेत्रों में चीड़ के वृक्ष बहुतायत मात्रा में पाए जाते हैं, चीड़ के पेड़ों की पत्तियों को पिरूल नाम से जाना जाता है। चीड़ आछयादित वनों से ग्रीष्मकालीन सीजन में लगभग 20 लाख टन से अधिक पिरूल गिरता है। 20 से 25 सेमी लम्बे नुकीले सूखे पत्ते अत्यन्त ज्वलनशील होते हैं। जो तेजी से आग पकड़ लेते हैं, पर्वतीय क्षेत्रों में वनाग्नि के मुख्य कारणों में पिरूल भी प्रमुख कारण है, जिससे हर साल कई हेक्टेयर जंगल वनाग्नि की भेंट चढ़ जाते हैं।

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50 करोड़ का फंड अलग से रखा गया

Pirul Lao-Paise Pao Campaign: वनाग्नि को रोकने के लिए सरकार ‘पिरूल लाओ-पैसे पाओ’ मिशन पर भी कार्य कर रही है। इस मिशन के तहत जंगल की आग को कम करने के उद्देश्य से पिरूल कलेक्शन सेंटर पर ₹50/किलो की दर से पिरूल खरीदे जाएंगे। इस मिशन का संचालन पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड द्वारा किया जाएगा। इसके लिए ₹50 करोड़ का कार्पस फंड पृथक रूप से रखा जाएगा।

 

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