नवरात्रि के सप्तम दिन मां कालरात्रि की पूजा, ऋद्धि-सिद्धि की होगी प्राप्ति

नवरात्रि के सप्तम दिन मां कालरात्रि की पूजा, ऋद्धि-सिद्धि की होगी प्राप्ति

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  • Publish Date - September 27, 2017 / 05:22 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:23 PM IST

 

श्रीदुर्गा का सप्तम रूप श्री कालरात्रि है। ये काल का नाश करने वाली हैं, इसलिए कालरात्रि कहलाती है। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की भाँति काला है, बाल बिखरे हुए, गले में विद्युत की भाँति चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं जो ब्रह्माण्ड की तरह गोल हैं, जिनमें से बिजली की तरह चमकीली किरणें निकलती रहती हैं। इनकी नासिका से श्वास, निःश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालायें निकलती रहती है। इनका वाहन ‘गर्दभ’ (गधा) है। दाहिने ऊपर का हाथ वरद मुद्रा में सबको वरदान देती हैं, दाहिना नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बायीं ओर के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा और निचले हाथ में खड्ग है। मां का यह स्वरूप देखने में अत्यन्त भयानक है किन्तु सदैव शुभ फलदायक है, उसकी समस्त विघ्न बाधाओं और पापों का नाश हो जाता है और उसे अक्षय पुण्य लोक की प्राप्ति होती है। संसार में कालांे का नाश करने वाली देवी कालरात्री ही है। दुश्मनों का नाश करती है तथा मनोवांछित फल प्रदान कर उपासक को संतुष्ट करती है।

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कालरात्रि की पूजा विधि –

देवी का यह रूप ऋद्धि सिद्धि प्रदान करने वाला है। दुर्गा पूजा का सातवां दिन तांत्रिक क्रिया की साधना करने वाले भक्तों के लिए अति महत्वपूर्ण होता है। दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि का काफी महत्व बताया गया है। सप्तमी की पूजा सुबह में अन्य दिनों की तरह ही होती है परंतु रात्रि में विशेष विधान के साथ देवी की पूजा की जाती है. इस दिन अनेक प्रकार के मिष्ठान एवं कहीं कहीं तांत्रिक विधि से पूजा होने पर मदिरा भी देवी को अर्पित कि जाती है।

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सप्तमी की रात्रि सिद्धियों की रात भी कही जाती है। कुण्डलिनी जागरण हेतु जो साधक साधना में लगे होते हैं आज सहस्त्रसार चक्र का भेदन करते हैं। पूजा विधान में शास्त्रों में जैसा वर्णित हैं उसके अनुसार पहले कलश की पूजा करनी चाहिए फिर नवग्रह, दशदिक्पाल, देवी के परिवार में उपस्थित देवी देवता की पूजा करनी चाहिए फिर मां कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए। देवी की पूजा से पहले उनका ध्यान करना चाहिए।

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देवी कालरात्रि के मंत्र –

मंत्र-  या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

मंत्र- ॐ ह्रीं ऐं ज्वल-ज्वल कालरात्रि देव्यै नमः

भगवती कालरात्रि की कृपा से अग्नि भय, आकाश भय, भूत पिशाच स्मरण मात्र से ही भाग जाते हैं। कालरात्रि माता भक्तों को अभय प्रदान करती है। 

नवरात्री में दुर्गा सप्तशती पाठ किया जाता हैं।