पितृत्व निर्धारण के लिए नियमित रूप से डीएनए परीक्षण नहीं कराई जा सकती : इलाहाबाद उच्च न्यायालय

पितृत्व निर्धारण के लिए नियमित रूप से डीएनए परीक्षण नहीं कराई जा सकती : इलाहाबाद उच्च न्यायालय

पितृत्व निर्धारण के लिए नियमित रूप से डीएनए परीक्षण नहीं कराई जा सकती : इलाहाबाद उच्च न्यायालय
Modified Date: November 26, 2025 / 11:24 pm IST
Published Date: November 26, 2025 11:24 pm IST

प्रयागराज, 26 नवंबर (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि किसी बच्चे के पितृत्व निर्धारण के लिए ‘डीएनए’ परीक्षण का आदेश केवल इसलिए नियमित रूप से नहीं दिया जा सकता कि कानूनी कार्रवाई के दौरान किसी एक पक्ष ने पितृत्व को लेकर विवाद खड़ा कर दिया है।

न्यायमूर्ति चव्हान प्रकाश की एकल पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए रामराज पटेल द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि दिसंबर 2012 में उसकी पत्नी को जन्मी बेटी उसकी संतान नहीं है क्योंकि उसकी पत्नी मई 2011 से अपने मायके में रह रही है।

डीएनए परीक्षण एक वैज्ञानिक जांच प्रक्रिया है, जिसमें किसी व्यक्ति की आनुवंशिक सामग्री डीएनए (डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल) का विश्लेषण किया जाता है। डीएनए प्रत्येक व्यक्ति की पहचान का सबसे विशिष्ट और स्थायी आधार होता है तथा इस परीक्षण से पितृत्व या मातृत्व की पुष्टि होती है।

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याचिका में वाराणसी के अपर सत्र न्यायाधीश के उस निर्णय को चुनौती दी गई थी जिसमें विशेष मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा डीएनए परीक्षण का आदेश देने से इनकार किए जाने के विरुद्ध दायर अपील को खारिज कर दिया गया था।

याचिकाकर्ता का कहना था कि उसने अप्रैल 2008 में प्रतिवादी (पत्नी) से विवाह किया था और पत्नी सिर्फ एक सप्ताह ससुराल में रही। वह स्नातक है और एक इंटर कॉलेज में अध्यापिका के रूप में कार्यरत है, जबकि याचिकाकर्ता ने स्वयं को अनपढ़ ग्रामीण बताया और दावा किया कि उसकी पत्नी इसी कारण उसके साथ नहीं रहना चाहती।

अदालत ने 21 नवंबर को दिए अपने आदेश में कहा कि डीएनए परीक्षण का निर्देश केवल विशेष परिस्थितियों में ही दिया जा सकता है, खासकर तब जब यह साबित हो कि पति-पत्नी के साथ रहने की कोई संभावना नहीं बची है।

भाषा सं राजेंद्र खारी

खारी


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