धार्मिक स्वतंत्रता में दूसरों का धर्मांतरण कराने का अधिकार शामिल नहीं: केंद्र ने न्यायालय में कहा

धार्मिक स्वतंत्रता में दूसरों का धर्मांतरण कराने का अधिकार शामिल नहीं: केंद्र ने न्यायालय में कहा

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  • Publish Date - November 28, 2022 / 07:49 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:20 PM IST

नयी दिल्ली, 28 नवंबर (भाषा) केंद्र ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय में कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार में दूसरे लोगों को धर्म विशेष में धर्मांतरित कराने का अधिकार शामिल नहीं है। केंद्र ने यह भी कहा कि यह निश्चित रूप से किसी व्यक्ति को धोखाधड़ी, धोखे, जबरदस्ती या प्रलोभन के जरिए धर्मांतरित करने का अधिकार नहीं देता है।

केंद्र सरकार ने कहा कि उसे ‘खतरे का संज्ञान’ है और इस तरह की प्रथाओं पर काबू पाने वाले कानून समाज के कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक हैं। इन वर्गों में महिलाएं और आर्थिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़े लोग शामिल हैं।

अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की एक याचिका के जवाब में संक्षिप्त हलफनामे के जरिए केंद्र ने अपना रुख बताया। याचिका मे ‘धमकी’ एवं ‘उपहार और मौद्रिक लाभ’ के जरिए छलपूर्वक धर्मांतरण को नियंत्रित करने के लिए कड़े कदम उठाने का निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया गया है।

गृह मंत्रालय के उप सचिव के जरिए दायर हलफनामे में जोर दिया गया है कि इस याचिका में मांगी गई राहत को भारत सरकार ‘पूरी गंभीरता से’ विचार करेगी और उसे इस ‘रिट याचिका में उठाए गए मुद्दे की गंभीरता का संज्ञान है।’’

न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि वह धर्मांतरण के खिलाफ नहीं, बल्कि जबरन धर्मांतरण के खिलाफ है। इसके साथ ही पीठ ने केंद्र से, राज्यों से जानकारी लेकर इस मुद्दे पर विस्तृत हलफनामा दायर करने को कहा।

पीठ ने कहा, “आप संबंधित राज्यों से आवश्यक जानकारी एकत्र करने के बाद एक विस्तृत हलफनामा दाखिल करें… … हम धर्मांतरण के खिलाफ नहीं हैं। लेकिन कोई जबरन धर्मांतरण नहीं हो सकता है।”

पीठ ने याचिका पर सुनवाई को पांच दिसंबर तक के लिए टाल दिया। पीठ ने इस याचिका को सुनवाई योग्य होने के संबध में दी गई याचिका पर भी सुनवाई टाल दी।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायालय से कहा कि जबरन धर्मांतरण एक ‘गंभीर खतरा’ और ‘राष्ट्रीय मुद्दा’ है एवं केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कुछ राज्यों द्वारा उठाए गए प्रासंगिक कदमों का उल्लेख किया है।

हलफनामे में कहा गया है कि लोक व्यवस्था राज्य का विषय है और विभिन्न राज्यों – ओडिशा, मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक और हरियाणा – ने जबरन धर्मांतरण पर नियंत्रण के लिए कानून पारित किए हैं।

वकील अश्विनी कुमार दुबे के जरिए दायर याचिका में अनुरोध किया गया है कि विधि आयोग को एक रिपोर्ट तैयार करने के साथ-साथ जबरन धर्मांतरण को नियंत्रित करने के लिए एक विधेयक तैयार करने का निर्देश दिया जाए।

भाषा अविनाश मनीषा

मनीषा