नयी दिल्ली, 23 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने करीब दो दशक पहले दिसंबर 2002 में नौकरी से बर्खास्त कर दिए गये एक चौकीदार को बहाल करने का शुक्रवार को आदेश दिया।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि प्रबंधन को उसे कष्ट देने के लिए ‘‘निष्ठुर कोशिशें’’ नहीं करनी चाहिए थी।
न्यायालय ने इस बात का जिक्र किया कि श्रम अदालत ने अगस्त 2010 में जे.के. जडेजा की बर्खास्तगी को अवैध करार दिया था और कच्छ जिला पंचायत को उन्हें पिछले वेतन के बगैर सेवा की निरंतरता के साथ बहाल करने का निर्देश दिया था।
न्यायमूर्ति यू यू ललित और न्यायमूर्ति एस आर भट ने गुजरात उच्च न्यायालय की एक खंड पीठ के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें उन्हें बहाल करने के निर्देश को रद्द कर दिया गया था और करीब एक लाख रुपये का मुआवजा अदा करने का आदेश दिया गया था।
पीठ ने जिक्र किया कि प्रबंधन ने श्रम अदालत के फैसले को चुनौती दी थी लेकिन उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश की एक पीठ ने मई 2011 में उसके फैसले को बरकरार रखा तथा व्यक्ति को बहाल करने का निर्देश दिया था।
बाद में, प्रबंधन ने एक अपील दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया और इसके बाद उसने शीर्ष न्यायालय का रुख किया था।
शीर्ष न्यायालय ने कहा, ‘‘यदि प्रबंधन ने फैसला स्वीकार कर लिया होता तो वादी को 10 साल तक इंतजार नहीं करना पड़ता।’’
पीठ ने उच्च न्यायालय की खंडपीठ के आदेश को निरस्त करते हुए कहा कि वादी को आज से छह महीने के अंदर सेवा में बहाल किया जाए और सेवा की निरंतरता रखने के श्रम अदालत और एकल न्यायाधीश के निर्देश का क्रियान्वयन किया जाए।
उल्लेखनीय है कि जडेजा को प्रतिवादी सोसाइटी ने पांच अक्टूबर 1992 को चौकीदार नियुक्त किया था और वह गुजरात के बेराजा गांव स्थित शिराई बांध पर चौकीदार के रूप में तैनात थे।
भाषा सुभाष माधव
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