सुभाष चंद्र बोस की ‘आजाद हिंद’ सरकार की विरासत धूमिल हुई लेकिन अब भी अस्तित्व में

सुभाष चंद्र बोस की ‘आजाद हिंद’ सरकार की विरासत धूमिल हुई लेकिन अब भी अस्तित्व में

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  • Publish Date - October 21, 2021 / 08:15 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:57 PM IST

कोलकाता, 21 अक्टूबर (भाषा) शहर के कुश्तिया उपनगर में अपने घर में बैठे 77 वर्षीय शक्ति नारायण ‘जन गण मन’ का हिंदुस्तानी भाषा अनुवाद ‘शुभ सुख चैना की बरखा बरसे’ का एक पुराना ग्रामोफोन रिकॉर्ड सुन रहे हैं जो लगभग 78 साल पहले युद्धग्रस्त सिंगापुर में महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस द्वारा स्थापित ‘अर्जी हुकूमत-ए-आजाद-हिंद’ का राष्ट्र गान था।

नारायण उस समय महज एक साल के थे, जब उनके पिता और कई अन्य भारतीयों ने गुप्त रूप से ‘स्वतंत्र भारत की अनंतिम सरकार’ के रेडियो प्रसारण को ट्यून किया था। उस समय आजाद हिंद की छोटी सी सेना म्यांमा के दलदली जंगलों से कोहिमा और इंफाल की ओर बढ़ रही थी।

ऐसी लड़ाइयों की एक श्रृंखला के बाद अंतत: बड़े गठबंधन बलों ने इस फौज पर जीत हासिल की और आजाद हिंद सरकार गिर गयी, जो कि हालांकि किसी भारतीय स्वतंत्रता सेनानी द्वारा स्थापित एकमात्र अस्थायी सरकार नहीं थी, लेकिन पहली थी जिसके पास सेना और सभी सामान थे।

नेताजी भवन के निदेशक और अंतरराष्ट्रीय तथा तुलनात्मक राजनीति के प्रोफेसर सुमंत्र बोस ने कहा, ‘‘भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में नेताओं की फौज खड़ी हुई, जिसमें (महात्मा) गांधी सबसे आगे थे, जिन्हें खुद बोस ने ‘राष्ट्र पिता’ नाम दिया था। लेकिन उनमें से केवल सुभाष बोस जनता की नजरों में सैनिक-राजनेता के तौर पर उभरे।’’

बोस की आजाद हिंद फौज की वर्दी पहने उछलते घोड़े पर बैठी एक प्रतिमा कोलकाता के व्यस्त श्यामबाजार इलाके में पांच रास्तों वाले क्रॉसिंग पर खड़ी है जिसे कोलकाता नगर निगम ने 1960 के दशक में मूर्तिकार नागेश योगलेकर से बनवाया था।

बोस ने कम उम्र में ही घुड़सवारी सीख ली थी। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कारें चलाईं जब आजाद हिंद सरकार बनी थी। यह आयरिश और चेक की प्रांतीय सरकारों की तर्ज पर थी।

एक नया विमर्श तैयार हुआ और भारतीयों ने धोती-कुर्ता पहने तथा कंधे पर विशेष शैली में शॉल डाले एक तेजतर्रार राजनेता की उनकी पिछली छवि को भुला दिया। कोलकाता में सड़क के किनारे कैफे और कई घरों में, कवि नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर और देवी काली की तस्वीरों के साथ, सैन्य वर्दी में बोस के बड़े कलैंडर लटके देखे जा सकते हैं।

आईएनए के जवानों ने उन्हें ‘नेताजी’ नाम दिया। इससे पहले वह ‘सुभाष बाबू’ नाम से अधिक लोकप्रिय थे। 1920 और 30 के दशक में बोस को कांग्रेस नेता के तौर पर उनके कार्यकाल के दौरान इसी नाम से पुकारा जाता था।

नेताजी द्वारा बनाई गयी पार्टी ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ का असर अब पहले जैसा नहीं रहा, लेकिन उसका अस्तित्व बंगाल के कुछ हिस्सों में अब भी है। बोस दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और उन्हें इस पार्टी को छोड़ना पड़ा था, जिसने अपनी वेबसाइटों और मंचों पर उनके नाम का इस्तेमाल किया है।

भाजपा भी बंगाल में अपनी चिर-प्रतिद्वंद्वी तृणमूल कांग्रेस की तरह नेताजी की विरासत पर दावा करती रही है।

भाषा वैभव माधव

माधव