ढाई अरब साल पुरानी अरावली पर्वतमाला आज सबसे बड़े खतरे का सामना कर रही : अजय माकन
ढाई अरब साल पुरानी अरावली पर्वतमाला आज सबसे बड़े खतरे का सामना कर रही : अजय माकन
नयी दिल्ली, आठ दिसंबर (भाषा) केवल 100 मीटर से ऊंची पहाड़ियों को ही अरावली पहाड़ियां कहे जाने की, उच्चतम न्यायालय की व्यवस्था के आलोक में कांग्रेस सदस्य अजय माकन ने सोमवार को राज्यसभा में कहा कि इस आधार पर ढाई अरब साल पुरानी अरावली पर्वतमाला आज इतिहास के एक अहम मोड़ पर खड़ी है और अपने अस्तित्व पर सबसे बड़े खतरे का सामना कर रही है।
शून्यकाल में यह मुद्दा उठाते हुए माकन ने कहा कि नयी प्रशासनिक परिभाषा के बाद पारिस्थितिकी की दृष्टि से महत्वपूर्ण अरावली के कई हिस्से अब संरक्षित नहीं रह जाएंगे और इससे दिल्ली सहित कई क्षेत्रों को कठोर मौसम और सूखे की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।
उन्होंने कहा कि न्यायालय की नयी प्रशासनिक व्यवस्था का आधार वह परिभाषा है कि केवल 100 मीटर से ऊंची पहाड़ियां ही अरावली पहाड़ियां कही जाएंगी।
उन्होंने कहा कि दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक और लगभग 700 किलोमीटर तक फैली अरावली पर्वतमाला थार रेगिस्तान से आने वाली रेत और धूल को रोकती है, यह भूजल पुनर्भरण में मदद करती है और दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) सहित कई राज्यों की समृद्ध जैव विविधता को भी बनाए रखती है।
माकन ने कहा कि नयी व्यवस्था के अनुसार, केवल 100 मीटर से ऊंची पहाड़ियां ही अरावली पहाड़ियां कही जाएगी। उन्होंने कहा कि अरावली के 100 मीटर से कम ऊंचाई वाले किसी भी क्षेत्र में खनन के लिए छूट दे दी गई है। ‘‘वैसे भी, अरावली क्षेत्र अपना 25 फीसदी भाग अवैध खनन के कारण गंवा चुका है।’’
उन्होंने कहा कि विकास के नाम पर पहाड़ियों का खनन, इसके दुष्प्रभाव और पारिस्थितिकी को इससे नुकसान का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने सरकार से मांग की कि कोई भी कदम बेहद सोच समझ कर उठाया जाए और नयी प्रशासनिक परिभाषा को तत्काल वापस लिया जाए।
भाषा मनीषा अविनाश
अविनाश

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