नयी दिल्ली, 14 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि चिकित्सा पेशे को उपभोक्ता संरक्षण कानून के दायरे में लाने वाले उसके 1995 के फैसले पर पुनर्विचार करने की जरूरत है।
न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि तीन न्यायाधीशों की पीठ के फैसले पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए और इस पर एक बड़ी पीठ द्वारा विचार किया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘‘हमारी राय में, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के इतिहास, उद्देश्य और योजना को ध्यान में रखते हुए और हमारे द्वारा ऊपर व्यक्त की गई राय को ध्यान में रखते हुए उक्त निर्णय पर दोबारा विचार किया जाना चाहिए कि न तो ‘पेशा’ को ‘व्यवसाय’ या ‘व्यापार’ माना जा सकता और न ही ‘पेशेवरों’ द्वारा प्रदान की गई सेवाओं को व्यवसायियों या व्यापारियों द्वारा प्रदान की गई सेवाओं के बराबर माना जा सकता है, ताकि उन्हें उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के दायरे में लाया जा सके।”
पीठ ने इस मामले को विचार के लिए भारत के प्रधान न्यायाधीश के पास भेज दिया।
उच्चतम न्यायालय ने 1995 में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बनाम वी पी शांता मामले में एक निर्णय दिया, जिसने चिकित्सा पेशे को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 2(1)(ओ) में परिभाषित सेवा के दायरे में ला दिया।
शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी एक फैसले को सुनाते समय आयी, जिसमें कहा गया कि वकील उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के दायरे में नहीं आते हैं और ‘सेवा में कमी’ के लिए उन पर उपभोक्ता अदालतों में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
भाषा अमित माधव
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