नाम बदलने और पहचान छुपाने के कारण हम बच गए : हिंसा प्रभावित बांग्लादेश से लौटे संगीतकार ने कहा

नाम बदलने और पहचान छुपाने के कारण हम बच गए : हिंसा प्रभावित बांग्लादेश से लौटे संगीतकार ने कहा

नाम बदलने और पहचान छुपाने के कारण हम बच गए : हिंसा प्रभावित बांग्लादेश से लौटे संगीतकार ने कहा
Modified Date: December 23, 2025 / 09:06 pm IST
Published Date: December 23, 2025 9:06 pm IST

कोलकाता, 23 दिसंबर (भाषा) तबला वादक मैनाक विश्वास 48 घंटे की मशक्कत के बाद हिंसा प्रभावित बांग्लादेश से अपनी मातृभूमि सुरक्षित लौट सके जबकि ढाका में जिस सरोद कलाकार के साथ उन्हें प्रस्तुति देनी थी, वह भी भारत विरोधी भीड़ के चंगुल से भागने में सफल रहे।

प्रसिद्ध सरोद वादक शिराज अली खान शनिवार को हिंसक भीड़ के चंगुल से बच निकले और कोलकाता लौट आए। ढाका के धानमंडी इलाके में खान के संगीत कार्यक्रम को निशाना बनाया गया और उसमें तोड़फोड़ की गई, जिसके बाद उनका निर्धारित कार्यक्रम रद्द कर दिया गया।

खान की मां आयशा और विश्वास सहित उनकी टीम के बाकी सदस्य पड़ोसी देश में जारी अशांति के बीच फंस गए थे और सोमवार को ही लौट सके, हालांकि उनके मन में अभी भी चिंताएं और दर्दनाक यादें बाकी हैं।

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विश्वास ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मैं पहले भी कई बार बांग्लादेश जा चुका हूं, लेकिन मैंने कभी ऐसी स्थिति का सामना नहीं किया जहां स्थानीय लोगों के एक वर्ग के बीच तनाव और शत्रुता की भावना इतनी स्पष्ट रूप से महसूस की जा सके।’’

उन्होंने याद किया, ‘‘18-19 दिसंबर की मध्यरात्रि को हिंसा भड़कने के बाद से मैं ज्यादातर समय होटल के कमरे में ही बंद रहा और अपनी आवाजाही को होटल की लॉबी तक ही सीमित रखा। लेकिन, जब किसी अत्यावश्यक जरूरत के लिए मुझे बाहर निकलने के लिए मजबूर होना पड़ा, तो मैंने अपनी भारतीय पहचान छिपाने का पूरा ध्यान रखा और अपना नाम बदलकर ऐसा रख लिया जो मुस्लिम नाम जैसा लगे।’’

खान ने बताया कि होटल में पूर्वाभ्यास सत्र के दौरान ही उन्हें पता चला कि अगले दिन 19 दिसंबर को जहां उनका निर्धारित शास्त्रीय संगीत कार्यक्रम स्थल है, वहां उन्मादी भीड़ ने हमला कर दिया।

खान अगले ही दिन ढाका से रवाना हो गए, जबकि आयशा और बाकी टीम को कोलकाता जाने वाली उड़ान के लिए 22 दिसंबर तक बेसब्री से इंतजार करना पड़ा।

शनिवार रात शहर पहुंचने पर संगीतकार ने बताया कि ढाका हवाई अड्डे जाते समय उन्होंने अपनी भारतीय पहचान छुपा दी थी और यह फैसला मजबूरी में लिया गया क्योंकि उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उन्हें ऐसा करना पड़ेगा।

भाषा शफीक माधव

माधव


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