होली से जुड़ी अनोखी परंपरा, डंडे पर लगाया जाता है तेल और साबुन, इस प्रतियोगिता के बाद चढ़ाई जाती है बलि

Holi ki anokhi parampara एमपी में मनाई जाती है होली की अनोखी परंपरा, इस प्रतियोगिता के बाद बकरे की देते है बलि

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  • Publish Date - March 5, 2023 / 11:51 AM IST,
    Updated On - March 5, 2023 / 11:51 AM IST

Holi ki anokhi parampara: रंगो का त्योहार होली को मात्र कुछ ही दिन बाकि है। होली के लिए बाजार रंग, गुलाल और पिचकारियों से सज चुके है। देशभर में होली की जोरो-शोरो से तैयारियां चल रही है। हर जगह होली अलग-अलग तरीको और कई परंपराओं के साथ मनाई जाती है। ऐसी ही कुछ होली से जुड़ी अनोखी परंपराओं के बारे में आज हम आपको बताएंगे जिसे लोग आज भी मानते है।

हर साल होती है मेले का आयोजन

Holi ki anokhi parampara: आज हम आपको मध्य प्रदेश के खंडवा, बुरहानपुर, बेतूल, झाबुआ, अलीराजपुर और डिंडोरी में रहने वाले गोंड आदिवासी की परंपरा के बारे में बताते है। बता दें यहां के आदिवासी होली और रंगपंचमी के बाद मेघनाद को अपना इष्ट देव मानकर उनकी पूजा कर बकरे की बलि देते हैं। साथ ही हर साल रंग पंचमी से तेरस के बीच दो दिवसीय मेले का आयोजन भी किया जाता है।

ऐसी है परंपरा

Holi ki anokhi parampara: गोंड आदिवासियों लोगों की संख्या खंडवा के आदिवासी ब्लॉक खालवा में सबसे ज्यादा है। यहां सबसे ज्यादा लोग मेघनाथ की पूजा करते हैं। खास बात ये है कि मेघनाद के पर्व को बहुत ही खास तरीके से मनाते हैं। साथ ही मेले का भी आयोजन कर इस पर्व को खुशी से मनाया जाता है। इस दौरान झंडा दौड़ प्रतियोगिता और बैलगाड़ी दौड़ प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है।

डंडे से मारती है युवतियां

Holi ki anokhi parampara: इसमे पेड़ को तेल और साबुन लगाकर चिकना किया जाता है। इसके अलावा खंबे पर लाल कपड़े में नारियल, बतासे और नगद राशि बंधी जाती है। उसके बाद प्रतियोगिता में भाग लेने वाले युवा इस खंबे पर चढ़ते हैं और ऊपर बंधा झंडा तोड़ने का प्रयास करते हैं। वहीं युवतियां हरे बांस की लकड़ी लेकर युवाओं को ऊपर चढ़ने से रोकती है और उन्हें मारती हैं। वहीं ढोल बजाकर ग्रामीण युवाओं का उत्साह बढ़ाते हैं।

मेघबाब पर चढ़ाई जाती है बलि

Holi ki anokhi parampara: ऐसे में जो भी प्रतियोगिता जीतता है उसे इनाम दिया जाता है। उसके बाद यहां के विधायक और वन मंत्री विजय शाह भी इस मेले में जाकर मेघनाथ की पूजा करते हैं। बाद इसके मेघबाबा को मुर्गे या बकरे की बलि चढ़ाई जाती है। गोंड आदिवासियों का मानना है कि उनके पूर्वज भगवान मेघनाद को खुश करने और अपनी मान-मन्नतें पूरी होने पर बलि चढ़ाने के लिए पूजा की जाती हैं।

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