P. V. Narasimha Rao Birthday : राजनीति छोड़ने का मन बना चुके पीवी नरसिम्हाराव ऐसे बने देश के नौवें प्रधानमंत्री, विरोध के बाद भी पूरा किया अपना कार्यकाल

P. V. Narasimha Rao Birthday : नरसिम्हाराव का जन्म तेलुगु नियोगी ब्राह्मण परिवार में आज के तेलंगाना के करीमनगर जिले के वंगारा गांव में 28

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  • Publish Date - June 28, 2023 / 12:41 PM IST,
    Updated On - June 28, 2023 / 12:41 PM IST

नई दिल्ली : P. V. Narasimha Rao Birthday : पीवी नरसिम्हाराव देश के ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो अचानक ही अनायास ही प्रधानमंत्री पद हासिल कर बैठे। यहां तक कि उन्होंने खुद भी यह महत्वाकांक्षा या चाहत नहीं रखी थी कि वे देश के प्रधानमंत्री बनें। लेकिन ऐसा हुआ और ऐसी परिस्थितियों में हुआ जब वे खुद दिल्ली छोड़ आंध्रप्रदेश में अपने गांव जाने की तैयारी कर चुके थे। तो फिर ऐसा क्या हो गया कि उन्हें देश का प्रधानमंत्री बनना पड़ा। क्या इसकी वजह से केवल उस समय के हालात थे या फिर किसी का दबाव या देश को बचाने की जरूरत? 28 जून को उनकी जयंती पर यही कहानी जानने की कोशिश करेंगे।

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17 भाषाओं के ज्ञाता थे पीवी नरसिम्हाराव

P. V. Narasimha Rao Birthday : पामुलापति वेंकट नरसिम्हाराव का जन्म तेलुगु नियोगी ब्राह्मण परिवार में आज के तेलंगाना के करीमनगर जिले के वंगारा गांव में 28 जून 1921 को हुआ था। 1930 के दशक के अंत में उन्होंने हैदराबाद राज्य में वंदेमातरम आंदोलन में हिस्सा लिया और उसके बाद वे एक सक्रिय स्वतंत्रता सेनानी बने और फिर आजादी की बाद कांग्रेस से जुड़कर पूरी तरह से राजनीति में आ गए थे। एक स्वतंत्रता सेनानी के अलावा वे वकील, 17 भाषाओं के ज्ञाता, अर्थशास्त्री, विदेश नीति में दक्ष और कुशल राजनेता थे।

इंदिरा, राजीव और सोनिया गांधी के थे विस्वस्त

आजादी के बाद पीवी नरसिम्हाराव 1977 तक प्रमुख तौर पर आंध्रप्रदेश की राजनीति तक सीमित रहे। 1969 में उन्होंने कांग्रेस के विभाजन इंदिरा गांधी का समर्थन किया। 1970 के दशक के शुरू में वे आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए पिछड़ी जाति के लोगों के लिए आरक्षण दे कर चर्चा में आए थे। इसके बाद वे इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री, गृह मंत्री रहे थे। 1991 में देश के पहले दक्षिण भारतीय प्रधानमंत्री बनने का गौरव हासिल करने वाले वे राजनेता बने।

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कर ली थी गांव जाने की तैयारी

P. V. Narasimha Rao Birthday : 1991 के चुनाव के पहले तक वे 69 साल के हो चुके थे। खुद राजीव गांधी भी कांग्रेस के लिए युवाओं को मौका देने लगे थे। ऐसे में नरसिम्हा राव ने फैसला किया के अब उनका राजनीति से दूर जाने का समय आ गया है। अप्रैल 1991 में खबरें चलने लगी थीं कि वे आंध्रप्रदेश में अपने गांव जाने की तैयारी करने लगे हैं। उनकी प्रधानमंत्री बनने की कभी कोई महत्वाकांक्षा नहीं दिखाई दी।

ऐसे बने थे प्रधानमंत्री

पीवी नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री बनने की पीछे की सबसे बड़ी वजह पूर्व प्रधानमंत्री और उस समय कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राजीव गांधी की असमय मौत ही बताई जाती है लेकिन इतना ही कारण नहीं था। दरअसल मई 1991 में देश में आम चुनाव चल रहे थे। भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला चल भी रहा था कि 21 मई को राजीव गांधी चेन्नई के पास श्रीपेराम्बदूर में एक आम सभा को सम्बोधित करने पहुंचे लेकिन मंच पर पहुंचने से पहले ही एक आत्मघाती हमले में उनकी मौत हो गई।

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बदली हवा और नेतृत्व का संकट

P. V. Narasimha Rao Birthday : इस घटना ने देश और चुनाव दोनों की ही तस्वीर बदल दी। कांग्रेस चुनाव पूर्व अनुमानों में जहां पिछड़ सी रही थी। उस हादसे के बाद चली सहानुभूति के लहर के कारण लोकसभा में 232 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन के उभरी। पार्टी को बहुमत नहीं मिला लेकिन फिर भी सरकार बनाने में वही सक्षम थी। लेकिन कांग्रेस के सामने नेतृत्व का संकट खड़ा हो गया। राजीव गांधी के बच्चे राजनीति के लिहाज से छोटे थे, पत्नी सोनिया गांधी भी राजनीति के लिए तैयार नहीं थी सो उन्होंने असमर्थता जता दी।

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विरोध के बाद भी पूरा किया पांच साल का कार्यकाल

P. V. Narasimha Rao Birthday : कांग्रेस में वैसे तो कई दिग्गज प्रधानमंत्री पद के लिए महत्वाकांक्षा पाले थे लेकिन उनका केवल क्षेत्रीय वर्चस्व ही था। ऐसे में वरिष्ठता के आधार पर सर्वानुमति पीवी नरसिम्हा राव के नाम पर ही बनी और वे पार्टी और देशहित में दिल्ली रुक गए और देश के नौवें प्रधानमंत्री बन गए। प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने अपनी अल्पमत के साथ ही पार्टी के अंदर चल रहे गतिरोधों को भी संभाला। लेकिन इसकी वजह से उनके विरोधी बढ़ते गए। अर्जुन सिंह और शरद पवार जैसे नेताओं ने कांग्रेस छोड़ दी थी लेकिन फिर भी उन्होंने अपनी अल्पमत सरकार के पांच साल पूरे किए।

एक एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर की सूची में शामिल माने जाने वाले पीवी नरसिम्हा राव का प्रधानमंत्री का कार्यकाल कई बदलावों के गवाह रहा। 1991 में अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को वित्तमंत्री बनाकर देश में निजीकरण की लहर लाना हो या बाबर मस्जिद ढांचा ढहाए जाने का विवाद उनके नाम विवाद के अलावा कुछ उपलब्धियां ऐसी भी रहीं जिनका जिक्र कम होता है। पंजाब में आतंकवाद का खात्मा, भारत का गिरवी रखा सोना छुड़वाकर विदेशी मुद्रा भंडार में इजाफा, परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत ऐसे ही कुछ काम है।

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