Guna Lok Sabha Elections 2019 : गुना में कांग्रेस का किला भेद पाएगी भाजपा, या फिर हाथ के साथ आएगी सत्ता ? | Guna Lok Sabha Elections 2019 : Guna Lok sabha Constituency : BJP VS Congress

Guna Lok Sabha Elections 2019 : गुना में कांग्रेस का किला भेद पाएगी भाजपा, या फिर हाथ के साथ आएगी सत्ता ?

Guna Lok Sabha Elections 2019 : गुना में कांग्रेस का किला भेद पाएगी भाजपा, या फिर हाथ के साथ आएगी सत्ता ?

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:39 PM IST, Published Date : May 9, 2019/10:04 am IST

मध्य प्रदेश की गुना सीट कांग्रेस के लिए बेहद खास है क्योंकि इस सीट पर कांग्रेस और सिंधिया परिवार का वर्चस्व रहा है। इस सीट पर सिंधिया परिवार के सदस्य ही जीतते रहे हैं। अब तक के चुनाव में ज्यादातर इस सीट से ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया, माधवराव सिंधिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया ही जीतते आए हैं। पिछले चार लोकसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया को ही जीत मिली है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी इस लोकसभा सीट पर जीतने में नाकाम रही। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी के प्रत्याशी जयभान सिंह को 120792 वोटों से शिकस्त दी थी। इस बार बीजेपी ने यहां से नए उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। पार्टी के प्रत्याशी डॉ केपी यादव ज्योतिरादित्य सिंधिया को टक्कर दे रहे हैं।

गुना लोकसभा के 8 विधानसभा सीटें

गुना लोकसभा सीट के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं। यहां पर शिवपुरी, बमोरी, चंदेरी, पिछोर, गुना, मुंगावली, कोलारस, अशोक नगर विधानसभा सीटें हैं। यहां की 8 विधानसभा सीटों में से 4 पर बीजेपी और 4 पर कांग्रेस का कब्जा है

गुना लोकसभा सीट का सियासी सफर

इस लोकसभा सीट पर पहली बार लोकसभा चुनाव 1957 में कराए गए। इस चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर विजयाराजे सिंधिया विजयी हुईं। उन्होंने हिंदू महासभा के वीजी देशपांडे को हराया था। अगले चुनाव में कांग्रेस ने यहां से रामसहाय पांडे को मैदान में उतारा। जबकि हिंदू महासभा की तरफ से एक बार फिर वीजी देशपांडे उम्मीदवार बनाए गए। लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली। कांग्रेस के रामसहाय पांडे चुनाव जीतने में कामयाब रहे।

1967 में इस सीट पर उपचुनाव कराए गए। उपचुनाव में कांग्रेस को यहां से पहली बार हार का सामना करना पड़ा। स्वतंत्रता पार्टी के जे बी कृपलानी को जीत मिली। इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में स्वतंत्रता पार्टी की ओर कांग्रेस की पूर्व नेता विजयाराजे सिंधिया लड़ीं। उन्होंने कांग्रेस के डीके जाधव को यहां पर शिकस्त दी। हालांकि शुरुआत के दो चुनाव में कांग्रेस यहां से चुनाव जीतने में सफल रही, लेकिन अगले तीन चुनाव में उसे गुना लोकसभा सीट पर हार का सामना करना पड़ा। साल 1971 में विजयाराजे के बेटे माधवराव सिंधिया जनसंघ के टिकट पर पहली बार चुनावी मैदान में उतरे और जीत हासिल की।

2001 में उनके निधन के बाद 2002 में हुए उपचुनाव में उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया यहां से लड़े। गुना की जनता ने उन्हें निराश नहीं किया। अपने पहले ही चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने शानदार जीत हासिल की। इसके बाद से हुए हर चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया यहां से जीतते आ रहे हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के आगे हर लहर टकरा कर यहां से वापस चली गई। यहां तक कि 2014 में मोदी लहर में जब कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को हार का सामना करना पड़ा था तब भी ज्योतिरादित्य सिंधिया यहां पर जीत हासिल करने में कामयाब हुए थे।

गुना का जातीय समीकरण

गुना शहर में मुख्यतः हिन्दू, मुस्लिम तथा जैन समुदाय के लोग रहते हैं। खेती यहां का मुख्य कार्य है। आजादी से पहले गुना ग्वालियर राजघराने का हिस्सा था, जिस पर सिंधिया वंश का अधिकार था। 2011 की जनगणना के मुताबिक गुना की जनसंख्या 2493675 है। यहां की 76.66 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र और 23.34 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है। गुना में 18.11 फीसदी लोग अनुसूचित जाती और 13.94 फीसदी लोग अनुसूचित जनजाति के हैं। चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक 2014 में गुना में कुल 1605619 मतदाता थे जिसमें से 748291 महिला मतदाता और 857328 पुरुष मतदाता थे। 2014 के चुनाव में इस सीट पर 60.83 फीसदी मतदान हुआ था।

गुना के प्रमुख चुनावी मुद्दे

गुना, शिवपुरी, अशोक नगर में उद्योगों की कमी की वजह से लोग पलायन करने को मजबूर हैं। बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है। भ्रष्टाचार के कारण आदिवासियों को योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा। 10 साल से चली आ रही मांग के बावजूद गुना में रिंग रोड और स्टेडियम नहीं बन सका। संध नदी से रेत का अवैध खनन बेरोकटोक जारी है। दुष्कर्म, लूट आदि की वारदातें बढ़ गई हैं।

2009 का जनादेश 

2009 के लोकसभा चुनाव में माधवराव सिंधिया ने 413,297 मतों से जीत दर्ज की थी। भाजपा के नरोत्तम मिश्र को 163,560 वोट मिले थे जबिक बीएसपी के लोकपाल लोधी को 29,164 वोट हासिल किए थे। 

2014 का जनादेश

2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी के जयभान सिंह पवैया को हराया था। इस चुनाव में सिंधिया को 517036(52.94 फीसदी) वोट मिले थे और पवैया को 396244(40.57 फीसदी) वोट मिले थे। दोनों के बीच हार जीत का अंतर 120792 वोटों का था। वहीं बसपा के लखन सिंह 2.81 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे।

इससे पहले 2009 के चुनाव में भी ज्योतिरादित्य सिंधिया को जीत मिली थी। उन्होंने इस बार बीजेपी के दिग्गज नेता नरोत्तम मिश्रा को हराया था। सिंधिया को 413297(63.6 फीसदी) वोट मिले थे तो नरोत्तम मिश्रा को 163560(25.17 फीसदी) वोट मिले थे। सिंधिया ने 249737 वोटों से जीत हासिल की थी। वहीं बसपा 4.49 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रही थी।