Metabolic Syndrome: कॉरपोरेट कर्मचारियों पर मंडरा रहा इस कैंसर का खतरा! चौंका देने वाला खुलासा, कहीं आपको भी तो नहीं
Metabolic Syndrome: कॉरपोरेट कर्मचारियों पर मंडरा रहा इस कैंसर का खतरा! चौंका देने वाला खुलासा, कहीं आपको भी तो नहीं
Metabolic Syndrome
Metabolic Syndrome: आजकल के बीजी लाइफस्टाइल और वर्क लोड के चलते कॉरपोरेट युवाओं में मेंटल स्ट्रेस होना आम बात हो गई है। लेकिन, आगे हम जो आपको बताने जा रहे हैं उसे सुनकर आपका भी दिमाग हिल जाएहा। हाल ही में हुए एक स्टडी में खुलासा हुआ कि नौकरीपेशा लोगों में कैंसर का खतरा भी मंडरा रहा है। नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अध्ययन में एक तिहाई कर्मचारी मेटाबोलिक सिंड्रोम से ग्रस्त मिले हैं।
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मेटाबोलिक सिंड्रोम क्या होता है ?
मेटाबॉलिक सिंड्रोम कोई बीमारी नहीं बल्कि स्थिति है। इसमें शरीर में रोग के कारक बढ़ जाते हैं। हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, मोटापा और अनियंत्रित कोलेस्ट्रॉल इन चारों के संयुक्त रूप को मेटाबॉलिक सिंड्रोम कहते हैं। मेटाबॉलिक सिंड्रोम की कंडीशन होने पर हाई बीपी की समस्या, हाई शुगर, और कमर पर एक्सट्रा फैट जम जाता है। मेटाबोलिक सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है जो 45 वर्ष से कम आयु वाले लोगों में मिलने पर उनके 65 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते कैंसर का जोखिम दोगुना बढ़ाती है।
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ICMR ने स्टडी में किया खुलासा
ICMR के अधीन राष्ट्रीय पोषण संस्थान ने तीन बड़ी IT कंपनियों में काम कर रहे युवाओं पर यह अध्ययन किया है, जिसमें लगभग सभी कर्मचारियों की आयु 30 वर्ष से कम थी। जांच में पता चला कि हर दूसरा कर्मचारी या तो अत्यधिक वजन वाला है या फिर पूरी तरह से मोटापा ग्रस्त है। स्टडी में 44.2 % कर्मचारी अधिक वजन वाले मिले, जबकि 16.85% मोटापा ग्रस्त थे। वहीं, 3.89 फीसदी मधुमेह ग्रस्त और 64.93 फीसदी में कोलेस्ट्रॉल का स्तर काफी बढ़ा हुआ पाया गया। 10 में से छह कर्मचारियों में कोलेस्ट्रॉल का स्तर बहुत मिला, जो भविष्य में दिल से जुड़ी बीमारियों के उभरने की ओर संकेत करता है।
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क्यों बढ़ रहा कैंसर का खतरा?
स्टडी के मुताबिक, आईटी और बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग जैसे क्षेत्रों में सबसे ज्यादा नौकरीपेशा युवा हैं। लेकिन, यहां कार्यस्थलों का भोजन और वातावरण उन्हें मोटापा व अस्वस्थ्य माहौल दे रहा है। व्यावसायिक स्वास्थ्य पर बीमारियों और पोषण संबंधी विकारों का प्रभाव शीर्षक से प्रकाशित मेडिकल जर्नल एमडीपीआई में इस अध्ययन को शामिल किया है।

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