The Big Picture With RKM : कांग्रेस पर गिरा ‘अक्षय बम’, मतदान से पहले प्रत्याशी का नामांकन वापस लेना कितना सही?

कांग्रेस पर गिरा 'अक्षय बम', मतदान से पहले प्रत्याशी का नामांकन वापस लेना कितना सही? How right is it to withdraw the nomination of a candidate before voting?

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  • Publish Date - April 30, 2024 / 12:17 AM IST,
    Updated On - May 1, 2024 / 04:24 PM IST

रायपुरः The Big Picture With RKM देश में नई सरकार चुनने के लिए अब मतदान का दौर शुरू हो चुका है। दो चरण में मतदान हो गया है। अभी पांच चरणों में चुनाव होना बाकी है, जिसके लिए अब राजनीतिक दलों ने कमर कस ली है। इस बार के लोकसभा चुनाव में हर चरण के बाद राजनीतिक दलों की रणनीति बदलती दिख रही है। नेताओं के तेवर में भी बदलाव नजर आ रहा है। 2024 का चुनाव दल-बदल के लिए भी याद रखा जाएगा। कई नेताओं ने दूसरी पार्टियों का दामन थाम लिया। इसी बीच मध्यप्रदेश की इंदौर लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति बम ने अपना नामांकन वापस ले लिया और भाजपा में शामिल हो गए। मतदान से पहले इस तरह के प्रत्याशी का नामांकन वापस लेना सियासत के लिए कितना सही है? जानते हैं इस लेख में…

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The Big Picture With RKM अक्षय कांति बम ने कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में नामांकन वापसी के आखिरी दिन अपना पर्चा वापस लेकर जो बम फोड़ा है। यह राजनीति के हिसाब से ठीक परिपाटी नहीं है। इस बार के चुनाव में हमने कई जगहों पर ऐसा देखा। इससे पहले सूरत लोकसभा सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार निलेश कुम्भानी का नामांकन एक दिन पहले ही रिटर्निंग ऑफिसर ने रद्द कर दिया था। इसके बाद बाकी बचे 8 उम्मीदवारों से नाम वापसी करा ली गई थी। बाद में यह खबरें सामने आई कि सभी लोग बीजेपी के साथ मिले हुए थे और उन्होंने ये पूरा षड़यंत्र रचा। यह ठीक बात नहीं है। ऐसा ही मामला खजुराहो से भी देखने को मिला, जहां ठीक से हस्ताक्षर नहीं होने पर इंडी गठबंधन के उम्मीदवार का नामांकन रद्द हो गया। यह भी गलत बात है। यह राजनीति में नैतिकता का पतन है।

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सबसे पहले ये अरुणाचल प्रदेश से शुरू हुआ। वहां इस बार विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। अरुणाचल ने एक-दो नहीं बल्कि दस उम्मीद्वार निर्विरोध चुनकर आए। इनमें से छह भाजपा उम्मीदवारों के खिलाफ कोई दूसरी पार्टी का उम्मीद्वार खड़ा नहीं हुआ था। अरुणाचल में ऐसा होता ही रहा है। 2012 में उत्तर प्रदेश में भी ऐसा हुआ था। अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद डिंपल यादव निर्विरोध चुनकर संसद पहुंची थी। ये अलग बात होती है कि कोई सहानूभूति में कोई पार्टी ने विरोध में उम्मीदवार खड़ा ना करें। नार्थ ईस्ट से पीए संगमा के खिलाफ भी कोई विपक्षी उम्मीदवार नहीं था। इन सबमें एक सौहाद्र का भाव था, लेकिन इस बार जो उतार-चढ़ाव, दांव-पेंच हो रहे हैं, खासकर सूरत और इंदौर जैसी सीट जहां बीजेपी जीत सकती है। यह ठीक परिपाटी नहीं है। इस तरीके से चुनाव जीतना उचित नहीं है।

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फेक वीडियो पर सीएम को समन भेजना कितना सही?

केंद्रीय मंत्री अमित शाह के फेक वीडियो मामले में तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी को दिल्ली पुलिस का नोटिस मिला है। गूगल से सर्टिफाइड फैक्ट चेकर होने के नाते मुझे चुनाव से पहले ही इस बात की आशंका थी कि इस बार के लोकसभा चुनाव में फेक वीडियो इनका सामना हमें करना पड़ेगा। IBC की कोशिश है कि हम फेक वीडियो की सच्चाई बताएं। लेकिन अभी अमित शाह का फेक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें कहा जा रहा है कि हम आरक्षण को खत्म करेंगे। जबकि वे किसी दूसरी आरक्षण की बात कर रहे हैं। यह एकदम यह एक बहुत गंभीर विषय है। इस पर एफआईआर हुई है किसी प्रदेश के चीफ मिनिस्टर को बुला लिया जाए। दो मुख्यमंत्री पहले ही जेल में है। अगर वे इस चीज का अपराधी है तो इस पर सजा मिलनी चाहिए। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह पूरी जांच होने के बाद ऐसा किया गया है। ये बात सही है कि जो इस तरह के डीप फेक वीडियो बना है यह बहुत ही गलत बात है। इस तरीके के फेक वीडियो जल्दी वायरल हो जाते हैं, लेकिन वास्तविक वीडियो को वायल होने में बहुत समय लग जाता है। हम अपने दर्शकों से भी अपील करते हैं कि आपको इस तरह के वीडियो से बच के रहना चाहिए। किसी भी वीडियो पर आंख बंद कर विश्वास नहीं करना चाहिए।