देखिए मैहर विधानसभा सीट के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड

देखिए मैहर विधानसभा सीट के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड

देखिए मैहर विधानसभा सीट के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड
Modified Date: November 29, 2022 / 08:50 pm IST
Published Date: June 22, 2018 2:56 pm IST

मैहर। विधायकजी के रिपोर्ट कार्ड में आज बारी है। मध्यप्रदेश की मैहर विधानसभा सीट की। त्रिकूट पर्वत के किनारे बसी मैहर विधानसभा में भी बेरोजगारी, जल संकट, जर्जर सडकों सहित इलाके के पिछडेपन जैसी समस्याओ से जनता को निजात नही मिल पा रही है। अब जब चुनावी साल है तो यहां सियासी सरगर्मी तेज हो चली है। नेताओं ने मां शारदा के साथ-साथ जनता के दरबार में भी हाजिरी लगानी शुरू कर दी है। क्षेत्र की समस्याओँ और मुद्दों को लेकर कांग्रेस और बीजेपी के दावेदारों में आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है।

पहाड़ों पर विराजी मां शारदा के दरबार में हमेशा ही भक्तों तांता लगा होता है। न केवल मध्यप्रदेश बल्कि पूरे देश में इस मंदिर से मैहर की पहचान है। सतना जिले में आने वाली मैहर विधानसभा मध्यप्रदेश की सियासत में काफी मायने रखती है। धर्मनगरी होने के साथ ये विंध्य क्षेत्र की अहम विधानसभा सीट है।

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2 लाख 28 हजार 566 मतदाता वाले मैहर विधानसभा सीट पर फिलहाल बीजेपी का कब्जा है और नारायण त्रिपाठी विधायक हैं। भले ही प्रदेश की सत्ता पर एक अरसे से भारतीय जनता पार्टी का कब्ज़ा हो। लेकिन मैहर की जनता पार्टी से ज्यादा चेहरे पर भरोसा कर विधायक बनाने का काम करती आ रही है। मैहर में विकास की गंगा बहाने का दावा कर रहे बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी की माने तो मैहर के विकास के लिए उन्होंने हर मुमकिन कोशिश हैऔर यही वजह है कि क्षेत्र में काफी विकास नजर आता है, जिसे जनता भी फर्क महसूस कर रही है।

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मैहर के लिए एक दौर ऐसा भी आया जहां सरकार से लेकर सियासत के तमाम दिग्गजों ने इसे मिनी स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित करने की भरपूर दावे किए, लेकिन दावों के उलट मैहर विकास की दौड़ में शामिल होने के बाद भी रफ़्तार नहीं पकड़ सका। जैसी इस धर्म नगरी को जरूरत थी। जाहिर है कांग्रेस नेता इन मुद्दों को लेकर चुनाव में जनता के बीच जाने की तैयारी कर चुकी है। मैहर के पिछड़ेपन की बड़ी वजह यहां जारी सियासी खींचतान भी है। कांग्रेस जहां विकास की धीमी रफ्तार के लिए बीजेपी विधायक को जिम्मेदार ठहराती है, तो दूसरी और विधायक नारायण त्रिपाठी कहते हैं कि मिनी स्मार्ट सिटी सहित विकास के कई कामों में मैहर नगर परिषद के अध्यक्ष रोड़े अटकाने का काम करते हैं।

अब जब साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने है। ऐसी सूरत में चाहे कांग्रेस हो या फिर बीजेपी दोनों ही दलों के नेता ना केवल खुद को जनता का सच्चा हमदर्द बताने की कोशिश कर रहे है, बल्कि एक-दूसरे पर आरोप लगा कर विकास का दुश्मन बता रहे है। जाहिर है चुनाव नतीजों के बाद ही साफ हो पाएगा कि जनता का सच्चा हमदर्द कौन है।

मैहर में वैसे तो मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही होता आ रहा है, लेकिन यहां की जनता ने बारी बारी से कांग्रेस और बीजेपी दोनों को मौका दिया है। पिछले तीन विधानसभा चुनावों के आंकड़ों पर नजर डाले तो वर्तमान विधायक नारायण त्रिपाठी अलग-अलग पार्टियों से जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं। जाहिर है कि मैहर की जनता लोक लुहावने वादों के आधार पर नहीं बल्कि व्यक्ति विशेष को देख कर वोट करती आ रही है। इस बार भी यहां दिलचस्प सियासी घमासान होना तय है।

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चुनाव की सुगबुगाहट के बीच मैहर में सियासत की शतरंज पर राजनीति की गोटियां बिछाई जाने लगी है और तरकश से तीर निकलने भी लगे है,और अपने दुश्मन को करारी शिकस्त देने की रणनीति भी तैयार होने लगी है। विंध्य क्षेत्र में मैहर सियासत का अहम गढ़ माना जाता है। यहां की राजनैतिक हलचलो का असर सतना जिले की दूसरी अन्य सीटों पर भी पड़ता है। लिहाजा इस सीट पर पूरे विंध्य की नजर टिकी रहती है। वैसे मैहर की सियासी इतिहास पर नजर डाली जाए तो मैहर की पॉलिटिक्स पर पार्टी से ज्यादा व्यक्ति विशेष का खासा असर रहा है। मैहर के चुनावी नतीजों की बात की जाए तो 1957, 1962 और 1967 में कांग्रेस के गोपाल शरण सिंह विधायक बने। उसके बाद 1972 में कांग्रेस के लालजी पटेल ने अपना परचम फहराया, लेकिन 1977 में जनता पार्टी के लहर में नारायण सिंह को जीत मिली। इसी तरह 1980 में विजय नारायण ने कांग्रेस का परचम लहराया। 1985 में लालजी पटेल निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैहर से विधान सभा पहुंचे तो वहीं 1990 में नारायण सिंह जनता दल से चुने गए। 1993 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के मथुरा प्रसाद पटेल को जनता ने अपना आशीर्वाद दिया। इसी क्रम में 1998 में कांग्रेस के वृंदावन बड़गैया ने अपना दम दिखाया। साल 2003 में नारायण त्रिपाठी मैहर में समाजवाद की सायकिल दौडाने में कामयाब हुए, लेकिन 2008 में बीजेपी के मोतीलाल तिवारी से उन्हें शिकस्त मिली। इसके बाद नारायण त्रिपाठी कांग्रेस में शामिल हो गए।

2013 के विधानसभा चुनाव में नारायण त्रिपाठी ने बीजेपी के रमेश प्रसाद को हराया। इस चुनाव में कांग्रेस को जहां 48306 वोट मिले, वहीं बीजेपी को 41331 वोट मिले। इस तरह जीत का अंतर रहा 6975 वोटों का। लेकिन इसके बाद मैहर के समीकरण बदले और कांग्रेस का हाथ छोड़ नारायण त्रिपाठी बीजेपी में शामिल हो गए। उसके बाद हुए उपचुनाव में नारायण त्रिपाठी चुनाव जीतकर विधान सभा पहुंचे।

इस सीट पर जातिगत समीकरण की बात की जाए तो यहां ब्राह्मण-ओबीसी, और ठाकुर मतदाता बड़ी ताकत हैं और इन्हीं के दम पर वर्तमान विधायक नारायण त्रिपाठी एक बार फिर आगामी चुनाव के लिए अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। वर्तमान विधायक को टिकट के लिए इस बार घर में ही चुनौती मिल रही है। उनके अलावा मोतीलाल तिवारी, कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आई शशि मिश्रा और सनद गौतम सहित कई दावेदार खुलकर ताल ठोंक रहे है। आलम ये है कि बीजेपी के इन दावेदारों ने नारायण त्रिपाठी को बाहरी का तमगा लगा कर चुनाव मैदान से दूर रखने की कवायद भी शुरू कर दी है। बीजेपी में जहां इस बार दावेदारों की लंबी फेहरिस्त है तो वहीं कांग्रेस नए और ऊर्जावान चेहरे की बदौलत ही प्रदेश में काबिज वर्तमान सत्ता और शिवराज सिंह चौहान को टक्कर देने की रणनीति बनाने में जुटी हुई है। बीजेपी की तरह कांग्रेस में भी टिकट दावेदारो की लंबी फ़ौज है। इनमें मैहर नगर परिषद के अध्यक्ष धर्मेश घई का नाम सबसे आगे है। वहीं श्रीकांत चतुर्वेदी, मनीष पटेल और कोदूलाल पटेल समेत लगभग एक दर्जन दावेदार ऐसे हैं, जो टिकिट के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। जाहिर है दोनों पार्टियों में ऐसे दावेदारों की कमी नहीं है जो मैहर के किले पर फतह का दावा कर रहे हैं।  देखना है अब टिकट के रूप में मां शारदा का आशीर्वाद किसे मिलता है।

मैहर को मां शारदा देवी की नगरी के साथ ही संगीत की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। सतना जिले में आने वाली मैहर विधानसभा मां शारदा के लिए जानी  जाती है। मां शारदा अपने दर पर आने वाले हर श्रद्धालु की झोली खुशियां से भरती हो, लेकिन उनकी इस नगरी मैहर के माथे से पिछड़ेपन का दाग नहीं धुल पाया है। बुनियादी सुविधाओं से लेकर बेरोज़गारी, जलसंकट और खस्ता हाल सडकों की समस्या यहां भी सर उठाए खड़ी है। बीजेपी के विधायक होते हुए भी ये इलाका विकास के मामले में काफी पीछे नजर आता है। जाहिर है कांग्रेस के पास इस बार मुद्दों की कमी नहीं है तो वहीं बीजेपी के सामने मैहर के सियासी किले को बचाए रखने की चुनौती है।

मैहर का नाम आते ही याद आती हैं मां शारदा की। मैहर की ख्याति आज आस्था के एक बड़े केंद्र के रूप में है। मां शारदा जिस पहाड़ी पर विराजती हैं। वहां से मैहर का नजारा बड़ा खूबसूरत दिखाई देता है लेकिन पहाड़ की ऊंचाई  से नजर आने वाली ये खूबसरती। हकीकत की जमीन पर उतरते ही गायब हो जाती है और यहां सुनाई देती हैं वो शिकायतें जिनको सुनने का वक्त शायद यहां के जनप्रतिनिधियों के पास नहीं है।

जी हां!  पिछले चुनाव में किये गए वादों पर कुछ पर तो अमल हुआ है और कुछ आज तक सिर्फ वादे ही बनकर रह गए है। मैहर में कई सीमेंट फैक्ट्रियां संचालित हैं, लेकिन यहां के युवाओं को रोज़गार नसीब नहीं हो रहा है, जिसके चलते वो नौकरी के लिए दूसरे शहरों का चक्कर लगाते हैं। वहीं कई इलाकों में पानी की गंभीर समस्या है। इसे लेकर लोगों में काफी नाराजगी है। जाहिर है आगामी चुनाव में मैहर की सियासत में विकास और जल संकट के साथ ही बेरोजगारी बड़ा मुद्दा बन सकती है। 

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विधायक नारायण त्रिपाठी के खुद का गांव भी बुनियादी सुविधाओं की बाट जोह रहा है। जिस लटागांव में विधायक त्रिपाठी का घर है वहां तीन साल पहले ही उप स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण कराया गया है, लेकिन वो आज भी ताला खुलने का इंतज़ार कर रहा है। इसके अलावा अनेक सरकारी इमारतें यहां खड़ी तो हैं लेकिन इनका कोई भी फायदा इलाके के मतदाताओं को नहीं मिल पा रहा है। करीब दो लाख से ज्यादा की आबादी वाली मैहर विधानसभा क्षेत्र ने सियासत के कई रंग दिखाए है। कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस के प्रत्याशियों ने यहां से जीत का सेहरा बांधा तो निर्दलीय उम्मीदवारों को भी वोटरों का भरपूर प्यार मिला। लेकिन इस बार जनता में विकास को लेकर दिख रही छटपटाहट बदलाव की ओर इशारा करती दिख रही है, लेकिन ऊंट किस करवट बैठेगा ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

वेब डेस्कIBC24


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