नेता प्रतिपक्ष पद की खींचतान के बीच, सातव के पाला बदलने से महायुति का संख्याबल मजबूत

नेता प्रतिपक्ष पद की खींचतान के बीच, सातव के पाला बदलने से महायुति का संख्याबल मजबूत

नेता प्रतिपक्ष पद की खींचतान के बीच, सातव के पाला बदलने से महायुति का संख्याबल मजबूत
Modified Date: December 19, 2025 / 05:30 pm IST
Published Date: December 19, 2025 5:30 pm IST

मुंबई, 19 दिसंबर (भाषा) नेता प्रतिपक्ष पद की खींचतान के बीच विपक्ष ने शुक्रवार को दावा किया कि कांग्रेस की विधान परिषद सदस्य प्रज्ञा सातव के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होने के बाद सत्तारूढ़ महायुति ने महाराष्ट्र विधानमंडल में संख्याबल पर पकड़ मजबूत करने सहित एक साथ कई चीजों पर निशाना साधा है।

दिवंगत राजीव सातव की पत्नी प्रज्ञा सातव बृहस्पतिवार को भाजपा में शामिल हुईं। इस मौके पर भाजपा की महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष रवींद्र चव्हाण और राज्य के राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले भी मौजूद थे।

स्थानीय निकाय चुनावों से पहले प्रज्ञा सातव का पाला बदलना कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। कार्यकाल के पांच वर्ष शेष रहते हुए सातव द्वारा विधान परिषद सदस्य पद से इस्तीफा दिए जाने के बाद 78 सदस्यीय महाराष्ट्र विधान परिषद में कांग्रेस की सदस्य संख्या घटकर छह रह गई है, जिससे नेता प्रतिपक्ष पद पर पार्टी के दावे को गंभीर नुकसान पहुंचा है।

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नियमों के अनुसार, किसी दल को नेता प्रतिपक्ष पद का दावा करने के लिए सदन की कुल सदस्य संख्या का कम से कम 10 प्रतिशत, यानी आठ सदस्य होना आवश्यक है।

हालांकि, सत्तारूढ़ गठबंधन का कहना है कि वह केवल संविधान और कानून के प्रावधानों का पालन कर रहा है। विधान परिषद में भाजपा के 22 सदस्य हैं, अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के आठ और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के सात सदस्य हैं, जिससे सत्ता संतुलन स्पष्ट रूप से महायुति के पक्ष में है।

वहीं विपक्षी महा विकास आघाडी में शरद पवार के नेतृत्व वाली राकांपा (एसपी) के तीन सदस्य हैं, जबकि कांग्रेस और उद्धव ठाकरे की शिवसेना (उबाठा) के छह-छह सदस्य हैं।

एक कांग्रेस नेता ने दावा किया, “नेता प्रतिपक्ष को कुछ विशेष सुविधाएं मिलती हैं, जैसे कार्यालय, सरकारी कर्मचारी और कुछ सरकारी जानकारियों तक पहुंच, और यह सब राज्य के खर्च पर होता है। मौजूदा सरकार ऐसे विपक्षी नेता को ये अधिकार देने के खिलाफ है, जो सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल कर सरकार को घेर सके।”

सातव के बाहर जाने का असर विधानसभा में भी दिख रहा है, जहां महा विकास आघाड़ी के पास अब नेता प्रतिपक्ष पद का दावा करने लायक आवश्यक संख्या नहीं बची है।

सत्तारूढ़ गठबंधन के नेताओं का कहना है कि चूंकि किसी भी विपक्षी दल के पास 10 प्रतिशत की अनिवार्य संख्या नहीं है, इसलिए वे नेता प्रतिपक्ष (एलओपी) पद का दावा नहीं कर सकते। इसी कारण पिछले वर्ष देवेंद्र फडणवीस सरकार के गठन के बाद अब तक विधानसभा के तीन सत्र बिना नेता प्रतिपक्ष के ही हो चुके हैं।

शिवसेना (उबाठा) के नेता भास्कर जाधव ने सरकार पर प्रक्रिया को राजनीतिक ढाल के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाया।

जाधव ने कहा, “ऐसा कोई नियम नहीं है कि नेता प्रतिपक्ष पद के लिए विधायकों की एक तय संख्या जरूरी हो। मेरे दावे के समर्थन में विधानसभा सचिवालय का पत्र मौजूद है। निर्धारित प्रक्रिया यह है कि विपक्षी दल एक नाम तय करता है और अध्यक्ष उसकी घोषणा करते हैं। सरकार अध्यक्ष की आड़ में राजनीति कर रही है।”

विपक्षी नेताओं ने यह भी कहा कि दिल्ली की 70 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को केवल तीन विधायक होने के बावजूद विपक्ष के रूप में मान्यता दी गई थी। उनका आरोप है कि महाराष्ट्र में नियमों की चुनिंदा व्याख्या की जा रही है।

भाषा खारी मनीषा

मनीषा


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