लोनार झील का बढ़ता जलस्तर चिंता का विषय, आईआईटी मुंबई की मदद से की गई जांच

लोनार झील का बढ़ता जलस्तर चिंता का विषय, आईआईटी मुंबई की मदद से की गई जांच

लोनार झील का बढ़ता जलस्तर चिंता का विषय, आईआईटी मुंबई की मदद से की गई जांच
Modified Date: December 21, 2025 / 09:53 am IST
Published Date: December 21, 2025 9:53 am IST

(चार्ल्स साल्वे)

नागपुर, 21 दिसंबर (भाषा) महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में स्थित विश्व प्रसिद्ध लोनार झील का जलस्तर पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ने के कारण उसके आस पास स्थित प्राचीन मंदिर जलमग्न हो गए हैं।

इस घटना ने झील के संरक्षण और प्राचीन विरासत को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं, जिसके बाद जिला प्रशासन ने कारणों का पता लगाने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मुंबई के विशेषज्ञों की मदद ली है।

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करीब 50,000 साल पहले उल्कापिंड के टकराने से बनी यह झील दुनिया की सबसे बड़ी ‘बेसाल्टिक प्रभाव क्रेटर’ झील है।

बेसाल्टिक प्रभाव क्रेटर झील पृथ्वी की बेसाल्ट (बेसाल्टिक चट्टानों) वाली सतह पर किसी उल्कापिंड या क्षुद्रग्रह के टकराने से बने गड्ढे में बनती है।

‘रामसर साइट’ (अंतरराष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमियों) के रूप में मान्यता प्राप्त यह स्थान अपने खारे-क्षारीय पानी और अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए जाना जाता है।

‘रामसर साइट’ रामसर सम्मेलन के तहत अंतरराष्ट्रीय महत्त्व की एक आर्द्रभूमि होती है, जिसे वर्ष 1971 में यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) द्वारा स्थापित एक अंतर-सरकारी पर्यावरण संधि ‘आर्द्रभूमि पर सम्मेलन’ के रूप में भी जाना जाता है और इसका नाम ईरान के रामसर शहर के नाम पर रखा गया है, जहां उस वर्ष सम्मेलन पर हस्ताक्षर किये गए थे।

यहां करीब 1,200 साल पुराने कई मंदिर स्थित हैं, जिनमें से प्रसिद्ध कमलजा देवी मंदिर सहित कई अन्य संरचनाएं बढ़ते जलस्तर के कारण पानी में डूब गई हैं।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई), नागपुर सर्कल के अधीक्षक पुरातत्वविद् अरुण मलिक ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि झील के निचले घेरे में 15 मंदिर हैं, जो एएसआई के दायरे में आते हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘पिछले पांच-छह वर्षों से जलस्तर लगातार बढ़ रहा है, जिससे प्राचीन मंदिरों को खतरा पैदा हो गया है।’’

उन्होंने बताया कि शोध में यह बात सामने आई है कि आसपास संरक्षित वन क्षेत्र विकसित होने और वृक्षारोपण बढ़ने से सूक्ष्म पर्यावरण में बदलाव आया है, जिससे क्षेत्र में जल धारण क्षमता बढ़ी हो सकती है।

मलिक के अनुसार, एएसआई कमलजा मंदिर के चारों ओर एक सुरक्षा दीवार (एप्रन वॉल) और चबूतरा बनाने की योजना बना रहा है, ताकि जलस्तर बढ़ने पर भी मंदिर सुरक्षित रहे और श्रद्धालु वहां तक पहुंच सकें।

बुलढाणा के जिलाधिकारी किरण पाटिल ने बताया कि झील में पानी की निकासी का कोई मार्ग नहीं है, जबकि गोमुख मंदिर जैसे प्राकृतिक झरनों से पानी का प्रवाह लगातार बना हुआ है।

उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में बारिश के स्वरूप में बदलाव आया है और इस साल लोनार में अत्यधिक भारी बारिश देखी गई। आईआईटी मुंबई के विशेषज्ञों ने नमूने लिए हैं और वे यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि यह प्राकृतिक बदलाव किस वजह से हो रहा है और इसका पर्यावरणीय प्रभाव क्या होगा।

स्थानीय शोधकर्ताओं और पर्यावरणविदों ने भी इस पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि इस अद्वितीय ‘क्रेटर’ का संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है।

जिलाधिकारी ने स्पष्ट किया कि वर्तमान में ‘क्रेटर’ के भीतर कोई मानवीय हस्तक्षेप नहीं है और पूरी गतिविधि पर सीसीटीवी के जरिए नजर रखी जा रही है।

भाषा सुमित सुरभि

सुरभि


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