साइरस पलोनजी मिस्त्री एक व्यापारी है जो 28 दिसंबर 2012 को टाटा समूह ( एक भारतीय व्यापार संगठन) के अध्यक्ष बने थे जिसके बाद टाटा ग्रुप ने 24 अक्टूबर 2016 को साइरस मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटा दिया था वह समूह के छठे अध्यक्ष हैं और दोराबजी टाटा के बाद, टाटा नाम नहीं पड़ने तक दूसरे हैं। दिसंबर 2019 को NCLAT ने टाटा सन्स के चेयरमैन पद से साइरस मिस्त्री के हटाने को अवैध ठहराते हुए उसी पद पर फिर से बहाल करने का आदेश दिया था
जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा या जे आर डी टाटा जेआरडी टाटा वायुयान उद्योग और अन्य उद्योगो के अग्रणी थे। १० फरवरी १९२९ को टाटा ने भारत में जारी किया गया पहला पायलट लाइसेंस प्राप्त किया। सन् १९३२ में उन्होंने भारत की पहली वाणिज्यिक एयरलाइन, टाटा एयरलाइंस की स्थापना की जो बाद में वर्ष १९४६ में भारत की राष्ट्रीय एयरलाइन , एयर इंडिया बनी। बाद में उन्हें भारतीय नागर विमानन के पिता के रूप में जाना जाने लगा। सन् १९२५ में वे एक अवैतनिक प्रशिक्षु के रूप में टाटा एंड संस में शामिल हो गए।वर्ष १९३८ में उन्हें भारत के सबसे बड़े औद्योगिक समूह टाटा एंड संस का अध्यक्ष चुना गया। दशकों तक उन्होंने स्टील, इंजीनियरिंग, ऊर्जा, रसायन और आतिथ्य के क्षेत्र में कार्यरत विशाल टाटा समूह की कंपनियों का निर्देशन किया। वह अपने व्यापारिक क्षेत्र में सफलता और उच्च नैतिक मानकों के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। उनकी अध्यक्षता में टाटा समूह की संपत्ति $ १००० लाख से बढ़कर 5 अरब अमरीकी डालर हो गयी। उन्होंने अपने नेतृत्व में 14 उद्यमों के साथ शुरूआत की थी ,जो २६ जुलाई १९८८ को उनके पद छोड़ने के समय,बढ़कर ९५ उद्यमों का एक विशाल समूह बन गया।उन्होंने वर्ष १९६८ में टाटा कंप्यूटर सेंटर (अब टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज) और सन् १९७९ में टाटा स्टील की स्थापना की।
अंग्रेज़ अत्यंत बर्बरता से १८५७ की क्रान्ति को कुचलने में सफल हुए थे। २९ साल की आयु तक जमशेदजी अपने पिताजी के साथ ही काम करते रहे। १८६८ में उन्होंने 21000 रुपयों के साथ अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया। सबसे पहले उन्होंने एक दिवालिया तेल कारखाना ख़रीदा और उसे एक रुई के कारखाने में तब्दील कर दिया तथा उसका नाम बदल कर रखा - एलेक्जेंडर मिल (Alexender Mill)। दो साल बाद उन्होंने इसे खासे मुनाफ़े के साथ बेच दिया। इस पैसे के साथ उन्होंने नागपुर में १८७४ में एक रुई का कारखाना लगाया। महारानी विक्टोरिया ने उन्हीं दिनों भारत की रानी का खिताब हासिल किया था और जमशेदजी ने भी वक़्त को समझते हुए कारखाने का नाम इम्प्रेस्स मिल (Empress Mill) (Empress का मतलब ‘महारानी’) रखा।
नटराजन चंद्रशेखरन एक भारतीय व्यवसायी हैं, और जो हाल ही में टाटा संस के चेयरमैन थे। वह टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) के सीओओ और कार्यकारी निदेशक थे, तथा जहां २०० ९ में, वे CEO बने। वह टाटा मोटर्स और Tata Global Beverages (TGB) के अध्यक्ष भी थे। वह टाटा समूह का नेतृत्व करने वाले पहले गैर-पारसी और पेशेवर कार्यकारी बने। १८ दिसंबर २०१ ९ को, NCLAT ने एन चंद्रशेखरन की नियुक्ति को गैरकानूनी ठहराया और साइरस मिस्त्री को टाटा समूह के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में बहाल किया।
• रतन टाटा से कौन नही परिचित है, अमेरिका से पढ़ाई करके भारत वापस आये तो इन्होनें IBM की जॉब थी लेकिन JRD टाटा इस बात से खुश नहीं थे उन्होंने साल 1962 में रतन टाटा को टाटा ग्रुप की कंपनी में काम करने की पेशकश की और इस तरह रतन टाटा का टाटा ग्रुप में आगमन हुआ।देश के इस सबसे बड़े टाटा ग्रुप से जुड़ने के बाद उन्होंने शुरू के दिनों में टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर काम किया। साल 1971 में इन्हे नेशनल रेडियो एंड इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी का डायरेक्टर इंचार्ज बनाया गया उस समय तक कंपनी घाटे में चल रही थी और बाजार में कंपनी की हिस्सेदार सिर्फ २% था और घटा 40 % था कुछ साल बाद रतन टाटा ने कंपनी को मुनाफे में पहुचाया और बाजार में कमपनी की हिस्सेदारी 20 % तक बढ़ा दी। 100 कंपनीयो के साथ टाटा ग्रुप विश्व में पांचवी सबसे बड़ी कंपनी है। टाटा चाय से लेकर 5 स्टार होटल तक, सूई से लेकर स्टील तक, नैनों कार से लेकर हवाई जहाज तकसब बेचते हैं।
जमशेद जी टाटा के बाद दोराब जी टाटा अनुभवी पिता के निर्देशन में आपने भारतीय उद्योग और व्यापार का व्यापक अनुभव प्राप्त किया। पिता की मृत्यु के बाद आप उनके अधूरे स्वप्नों को पूरा करने में जुट गए। 1904 में अपने पिता जमशेदजी टाटा की मृत्यु के बाद अपने पिता के सपनों को साकार करने का बीड़ा उठाया। लोहे की खानों का ज्यादातर सर्वेक्षण उन्हीं के निर्देशन में पूरा हुआ। वे टाटा समूह के पहले चैयरमैन बने और 1908 से 1932 तक चैयरमैन बने रहे। साकची को एक आदर्श शहर के रूप में विकसित करने में उनकी मुख्य भूमिका रही है जो बाद में जमशेदपुर के नाम से जाना गया। 1910 में उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा नाईटहुड से सम्मानित किया गया था।
सर नौरोजी सकलतवाला 1899 में बॉम्बे में स्वदेशी मिल्स में एक क्लर्क के रूप में टाटा समूह में शामिल हुए। बीस वर्षों के भीतर, वह फर्म का प्रमुख बन गया। उन्होंने दूसरे अध्यक्ष दोराबजी टाटा के साथ मिलकर काम किया।[5] 1932 में जब दोराबजी की मृत्यु हुई, तो वे टाटा समूह के अध्यक्ष बने और मंदी के वर्षों के दौरान कंपनी को मजबूत करने का कार्य उनके पास था।उनका जन्म बॉम्बे में एक पारसी परिवार में हुआ था, जो बापूजी सकलतवाला और वीरबाईजी टाटा के पुत्र थे। उनके मामा जमशेदजी टाटा थे, जो टाटा समूह के संस्थापक थे।
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