Parshuram Jayanti 2021 Date: परशुराम जयंती हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण त्योहार है। इस साल परशुराम जयंती 14 मई 2021 को मनाई जाएगी। हिन्दू पंचांग के अनुसार, प्रति वर्ष वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन परशुराम जयंती मनाई जाती है। यह पावन दिन भगवान परशुराम का जन्मोत्सव है। हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान परशुराम जगत के पालनहार विष्णुजी के छठे अवतार हैं। इस दिन विधि-विधान से भगवान परशुराम जी की पूजा की जाती है।
परशुराम जयंती का पूजा मुहूर्त
तृतीया तिथि प्रारंभ: – 14 मई 2021 (सुबह 05:38)
तृतीया तिथि समाप्त: – 15 मई 2021 (सुबह 07:59)
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भगवान परशुराम के जीवन से जुड़ी पौराणिक कथा
भगवान परशुराम का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था। वे ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र थे। ऋषि जमदग्नि सप्त ऋषियों में से एक थे। कहा जाता है कि भगवान परशुराम का जन्म छह उच्च ग्रहों के योग में हुआ था, जिस कारण वे अति तेजस्वी, ओजस्वी और पराक्रमी थे। एकबार अपने पिता की आज्ञा पर उन्होंने अपनी माता का सिर काट दिया था, और बाद में मां को पुनः जीवित करने के लिए उन्होंने पिता से वरदान भी मांग लिया था।
हैहय वंश के राजा सहस्त्रार्जुन ने अपने बल और घमंड के कारण लगातार ब्राह्राणों और ऋषियों पर अत्याचार कर रहा था। प्राचीन कथा और कहानियों के अनुसार एक बार सहस्त्रार्जुन अपनी सेना सहित भगवान परशुराम के पिता जमदग्रि मुनि के आश्रम में पहुंचा। जमदग्रि मुनि ने सेना का स्वागत और खान पान की व्यवस्था अपने आश्रम में की।
मुनि ने आश्रम की चमत्कारी कामधेनु गाय के दूध से समस्त सैनिकों की भूख शांत की। कामधेनु गाय के चमत्कार से प्रभावित होकर उसके मन में लालच पैदा हो गई। इसके बाद जमदग्रि मुनि से कामधेनु गाय को उसने बलपूर्वक छीन लिया। जब यह बात परशुराम को पता चली तो उन्होंने सहस्त्रार्जुन का वध कर दिया।
सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने बदला लेने के लिए परशुराम के पिता का वध कर दिया और पिता के वियोग में भगवान परशुराम की माता चिता पर सती हो गयीं। पिता के शरीर पर 21 घाव को देखकर परशुराम ने प्रतिज्ञा ली कि वह इस धरती से समस्त क्षत्रिय वंश का संहार कर देंगे। इसके बाद पूरे 21 बार उन्होंने पृथ्वी से क्षत्रियों का विनाश कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की।
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भगवान परशुराम को क्रोध भी अधिक आता था। उनते क्रोध से स्वयं गणपति महाराज भी नहीं बच पाए थे। एकबार जब परशुराम भगवान शिव के दर्शन करने के लिए कैलाश पहुंचे, तो गणेश जी ने उन्हें उनसे मिलने नहीं दिया। इस बात से क्रोधित होकर उन्होंने अपने फरसे से भगवान गणेश का एक दांत तोड़ डाला। इस कारण से भगवान गणेश एकदंत कहलाने लगे।
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