Sankatmochan Hanuman Ashtak :”भक्ति से ओतप्रोत एवं अत्यंत शक्तिशाली है यह हनुमानाष्टकम”, नित्य जाप करने से कभी नहीं होंगे किसी दुर्घटना के शिकार
'This Hanumanashtakam is full of devotion and is extremely powerful', by chanting it daily you will never be a victim of any accident
Sankatmochan hanumanashtak
Sankatmochan Hanuman Ashtak : संकटमोचन हनुमान अष्टकम की रचना रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास ने की थी। हनुमान जयंती पर हनुमान अष्टकम का पाठ करना सबसे अधिक लाभकारी होता है।
Sankatmochan Hanuman Ashtak : संकटमोचन हनुमान अष्टक का पाठ करने से कई तरह के लाभ मिलते हैं, जैसे कि:
– मान्यता है कि संकटमोचन हनुमान अष्टक का पाठ करने से भगवान हनुमान की कृपा बनी रहती है।
– अगर कोई व्यक्ति पूरी श्रद्धा के साथ हनुमान अष्टक का पाठ करता है, तो उसे शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।
– इस पाठ से मन शांत होता है और चिंताएं दूर होती हैं।
– हनुमान जी सही मार्ग दर्शाते हैं।
– अगर आपको हमेशा कोई न कोई चिंता सताती रहती है, तो आपको इस अष्टक का पाठ अवश्य करना चाहिए।
– अगर आपके जीवन में बिना वजह कोई परेशानी चल रही है, तो हनुमान अष्टक का पाठ आपके लिए लाभकारी हो सकता है।
– अगर आप प्रतिदिन सात बार संकट मोचन का पाठ करते हैं और ऐसा लगातार 21 दिन तक करते हैं, तो आपके जीवन में आ रहा बड़ा से बड़ा संकट टल सकता है।
संकटमोचन हनुमान अष्टक को संत तुलसीदास ने लिखा था. प्रार्थना में भगवान हनुमान की स्तुति में आठ शब्द शामिल हैं, जिन्हें अष्टक या अष्टकम कहा जाता है ।
Sankatmochan Hanuman Ashtak : आईये हम पढ़तें हैं संकटमोचन हनुमानाष्टक
॥ हनुमानाष्टक ॥
बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों ।
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो ।
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥ १ ॥
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महामुनि साप दियो तब,
चाहिए कौन बिचार बिचारो ।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो ॥ २ ॥
Sankatmochan Hanuman Ashtak
अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो ।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु,
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो ।
हेरी थके तट सिन्धु सबै तब,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥ ३ ॥
रावण त्रास दई सिय को सब,
राक्षसी सों कही सोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाए महा रजनीचर मारो ।
चाहत सीय असोक सों आगि सु,
दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥ ४ ॥
Sankatmochan Hanuman Ashtak
बान लग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तजे सुत रावन मारो ।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ।
आनि सजीवन हाथ दई तब,
लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥ ५ ॥
रावन युद्ध अजान कियो तब,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो ।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो I
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥ ६ ॥
Sankatmochan Hanuman Ashtak
बंधु समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो ।
देबिहिं पूजि भलि विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो ।
जाय सहाय भयो तब ही,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥ ७ ॥
काज किये बड़ देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसे नहिं जात है टारो ।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होय हमारो ॥ ८ ॥
Sankatmochan Hanuman Ashtak
॥ दोहा ॥
लाल देह लाली लसे,
अरु धरि लाल लंगूर ।
वज्र देह दानव दलन,
जय जय जय कपि सूर ॥
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