सभी पापों से मुक्ति दिलाता है ‘वरुथिनी एकादशी व्रत’, जानें कब और किस मुहूर्त में कैसे करें पूजा?

विष्णु जी की प्रतिमा के समक्ष रोली, अक्षत, पीला फूल, पीला चंदन, इत्र अर्पित करें, इसके पश्चात भोग के लिए पंचामृत, फल एवं दूध से बनी मिठाई चढ़ाएं।

सभी पापों से मुक्ति दिलाता है ‘वरुथिनी एकादशी व्रत’, जानें कब और किस मुहूर्त में कैसे करें पूजा?

April vrat tyohar

Modified Date: April 12, 2023 / 10:01 pm IST
Published Date: April 12, 2023 10:01 pm IST

Varuthani Ekadashi 2023: वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन वरुथिनी एकादशी की पूजा-व्रत करने का विधान है। यह व्रत करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा से सारे पाप कर्मों से मुक्ति मिलती है। वरुथिनी एकादशी अन्य एकादशी व्रतों से काफी भिन्न है। मान्यता है कि इस दिन व्रती व्यक्ति को जुआ, पान, धूम्रपान, शारीरिक संबंध, असत्य, क्रोध, हिंसा, चोरी, किसी के अपमान, परनिंदा आदि से बचना चाहिए, वरना उसे व्रत का कोई लाभ नहीं मिलेगा। एकादशी व्रत रखने वाले जातक को रात्रि जागरण कर भगवान विष्णु का कीर्तन भजन करना चाहिए। इस वर्ष 16 अप्रैल 2023, रविवार को वरुथिनी एकादशी का व्रत रखा जायेगा। आइये जानें वरुथिनी एकादशी व्रत का महात्म्य, पूजा विधि, मुहूर्त एवं पौराणिक कथा।

वरुथिनी एकादशी का महात्म्य

वरुथिनी एकादशी व्रत के दिन तिल-दान की विशेष परंपरा है। पुराणों में तिल-दान का बहुत महत्व बताया गया है। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार वरुथिनी एकादशी के दिन तिल-दान करने से मिलने वाला पुण्य-फल स्वर्ण दान के पुण्य से भी ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से जातक को दुनिया के तमाम सुख प्राप्त होते हैं। मानव जीवन का सुख भोगकर अंततः परमलोक की प्राप्ति होती है। ऐसी भी मान्यता है कि सूर्य ग्रहण के समय दान-धर्म करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, वही पुण्य वरुथिनी एकादशी का व्रत एवं पूजा करने से भी मिलता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत एवं पूजा करने से हाथी-दान के समान पुण्य भी मिलता है। इस व्रत के संदर्भ में भविष्योत्तर पुराण में उल्लेखित है।

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कांस्यं मांसं मसूरान्नं चणकं कोद्रवांस्तथा। शाकं मधु परान्नं च पुनर्भोजनमैथुने।। अर्थात

कांस्य पात्र, मांस तथा मसूर आदि का सेवन इस दिन नहीं करना चाहिए। इस एकादशी को व्रत रखते हुए जुआ और घोरनिद्रा आदि का त्याग करना चाहिए।

वरुथिनी एकादशी तिथि एवं शुभ मुहूर्त

एकादशी प्रारंभः 08।45 PM (15 अप्रैल 2023, शनिवार) से

एकादशी समाप्तः 06।16 PM (16 अप्रैल 2023, रविवार) तक

पारण का समयः 09।31 AM तक (17 अप्रैल 2023, सोमवार)

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पूजा विधि

Varuthani Ekadashi 2023: एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान कर स्वस्थ वस्त्र धारण करें। भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत एवं पूजा का संकल्प लें। अब एक छोटी चौकी पर लाल कपड़े का आसन बिछाएं। इस पर गंगाजल का छिड़काव करें। इसके पश्चात भगवान भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। धूप दीप प्रज्जवलित करें। निम्न दो मंत्रों में से एक या दोनों का जाप करें।

ॐ नमोः नारायणाय नमः।

ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय नमः

विष्णु जी की प्रतिमा के समक्ष रोली, अक्षत, पीला फूल, पीला चंदन, इत्र अर्पित करें, इसके पश्चात भोग के लिए पंचामृत, फल एवं दूध से बनी मिठाई चढ़ाएं। व्रत कथा सुने अथवा सुनाएं। इसके पश्चात विष्णुजी की स्तुति गान करें और अंत में विष्णजी की आरती उतारें, और भगवान के सामने चढ़ा प्रसाद वितरित करें।

वरुथिनी एकादशी व्रत-पूजा की कथा

Varuthani Ekadashi 2023: प्राचीन काल में नर्मदा तट पर परम तपस्वी, दानशील एवं अत्यंत बहादुर राजा मांधाता राज करता था। एक बार वह कठोर तपस्या में लीन था, तभी एक जंगली भालू ने उसका पैर चबा लिया और उसे घने जंगल में खींच ले गया। राजा ने तपस्या में व्यवधान नहीं आने दिया। अंततः राजा ने भगवान विष्णु का ध्यान किया। भक्त की पुकार सुनकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से भालू का सर काटकर राजा की रक्षा की, और कहा -हे वत्स् मथुरा में स्थापित मेरी वाराह मूर्ति है, वरुथिनी एकादशी को व्रत रखते हुए मेरी पूजा करोगे तो तुम अपना पैर पुनः प्राप्त कर सकोगे, क्योंकि भालू ने तुम्हारा जो पैर चबाया है, वह तुम्हारे पूर्व जन्म के पाप का परिणाम था। इस पाप से मुक्ति के लिए तुम्हें वरुथिनी एकादशी का व्रत पूजा करना होगा। इसके बाद से ही वरूथिनी एकादशी व्रत एवं पूजा कि परंपरा शुरु हुई।

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लेखक के बारे में

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