देखिए क्या कहता है ग्वालियर के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड

देखिए क्या कहता है ग्वालियर के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड

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  • Publish Date - May 25, 2018 / 03:12 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:50 PM IST

ग्वालियर विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड तैयार करने आज हम पहुंचे हैं ग्वालियर विधानसभा। यहां के विधायक हैं जयभान सिंह पवैया, जो शिवराज सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री भी हैं। पवैया की पहचान एक हिंदूवादी चेहरे के रूप में रही है और समय-समय पर वो धार्मिक यात्राओं और आयोजनों के जरिए जनता के बीच जाते हैं। लेकिन उनके इन कार्यक्रमों को कांग्रेस महज चुनावी हथकंडा बताती है। कांग्रेस का कहना है कि बीते 5 सालों में मंत्रीजी ने कुछ नहीं किया। इसलिए उन्हें ऐसे आयोजन कराने की जरूरत पड़ रही है।

ग्वालियर का किला जितना खूबसूरत नजर आता है उतना ही वैभवशाली इसका इतिहास रहा है। अपनी विशालता और मजबूती के चलते आज भी पूरे देश में अपनी अलग पहचान बनाए हुए है। किले में मौजूद तानसेन की समाधि में उनकी स्वर लहरें आज भी गूंजती है। बीजेपी विधायक जयभान सिंह पवैया इन्हीं विरासतों को सहेजने की पुरजोर कोशिश भी करते नजर आते हैं। यही वजह है कि उन्होंने तानसेन समारोह को अंतर्राष्ट्रीय दर्जा देने का प्रयास किया। इसके पीछे उनका तर्क है कि विकास केवल बिजली, सड़क और पानी से नहीं होता है, बल्कि अपनी विरासतों को सहेजने से भी होता है।

मंत्री जयभान सिंह पवैया भले ही अपने विधानसभा क्षेत्र में इन आयोजनों के जरिए विरासत को सहेजने की बात करते हैं, लेकिन कांग्रेस के नेता मानते हैं कि चुनावी साल है और विधायकजी के पास अपने कामों को बताने के लिए कुछ भी नहीं है। इसलिए वो ऐसे धार्मिक आयोजनों के जरिए ही वोटरों को लुभाने का प्रयास कर रहे हैं।

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चुनावी साल है तो ग्वालियर में आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। सियासतदान और पार्टियां भी अपनी-अपनी सहूलियतों के इस हिसाब से इन मुद्दों को भुनाने की कोशिश में लग गए हैं।अब देखना है मतदाता के मन के खेत में किसका रोपा ज्यादा अच्छी से लगता है।

ग्वालियर विधानसभा के विधायक पवैया के मंत्री बनने के बाद भी लोगों की दुश्वारियां कम नहीं हुई है, जिन्हें लेकर कांग्रेस इस बार चुनावी जंग में बीजेपी को घेरने की रणनीति बना रही है। मुद्दों की बात की जाए तो यहां की जनता आज भी गंदा पानी पीने को मजबूर है। सीवरेज की समस्या और रोजगार के मुद्दे पर भी बीजेपी यहां घिरी नजर आती है। लेकिन बीजेपी पांच साल के कामों के जरिये लोगों को फिर से रिझाने की कोशिश में जुटी है।

ग्वालियर के चंदन नगर इलाके में जाएं तो यहां आज भी लोग पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसते हैं।  अगर कभी-कभार पानी आ भी जाता है तो वो इतना गंदा होता है कि उसका इस्तेमाल करने से पहले लोगों को सौ बार सोचना पड़ता है। मजबूर है क्षेत्र की जनता, उनका ये दर्द गुस्से के रूप में उनकी जुबान से निकलता है।

ग्वालियर में केवल पानी ही नहीं बल्कि सड़क और सीवर जैसी दुश्वारियां भी लोगों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। बुनियादी सुविधाओं के अलावा क्षेत्र में रोजगार की कमी भी एक बड़ी समस्या है। 90 के दशक में ग्वालियर विधानसभा में लगभग एक दर्जन से ज्यादा फैक्ट्रियां थी। लेकिन कुछ घाटे तो कुछ सरकार की नीतियों की वजह से बंद हो गयी। जिसके बाद से इस विधानसभा में बेरोजगारी बढ़ती चली गयी है। महिलाएं जहां घरों में बीड़ी बना रही है, तो मिल के मजदूर  नौकरी की तलाश में इधर से उधर घूम रहे है।

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रोजगार, सड़क, पानी और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को लेकर विपक्ष विधायक जयभान सिंह पवैया को घेरने की तैयारी कर रहे है। पूर्व विधायक प्रद्धुमन सिंह तोमर के मुताबिक बीते पांच सालों में उन्होंने कोई काम नहीं किया, बल्कि जो काम उनके कार्यकाल में हुए थे। उन्हीं कामों को विधायक अपना बता रहे हैं। अपने ऊपर लगे आरोपों पर मौजूदा विधायक जयभान सिंह पवैया का कहना है कि उनकी विधानसभा में वो काम हुए है, जो बीते 15 सालों में नहीं हुए है। बहरहाल मौजूदा विधायक जयभान सिंह पवैया के दावें और उनकी विधानसभा में किए गए कामों की हकीकत तस्वीरों में साफ देंखी जा सकती है।

यूं तो ग्वालियर में सिंधिया परिवार का दबदबा रहा है लेकिन जय भान सिंह पवैया ने बीते कुछ चुनावों में यहां अपना प्रभाव छोड़ा और ग्वालियर की सियासत में बीजेपी का झंडा बुलंद किया। महल और सामंतवाद के खिलाफ सबसे प्रखर रूप में पहचान रखने वाले जयभान सिंह पवैया की जीत ने ये मान्यता भी बदली कि ग्वालियर में चुनाव जीतने के लिए महल के बैकग्राउंड की जरूरत नहीं।

कभी देश की सबसे बड़ी कॉटन मिल रही जेसी मिल आज धूल फांक रही है, लेकिन यहां बनने वाला कॉटन अंग्रेजों के जमाने में न केवल देश बल्कि पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान रखता था। इस मिल में कभी 5 हजार से ज्यादा मजदूर काम करते थे। लिहाजा क्षेत्र में लेबर यूनियन का दबदबा हुआ करता था। जेसी मिल के बंद होने तक ग्वालियर की सियासत में श्रमिक नेताओं का ही दबदबा रहा। अगर ग्वालियर के सियासी इतिहास की बात की जाए तो रामचंद्र सरवटे, तारा सिंह वियोगी और बाबू रघुवीर सिंह जैसे श्रमिक नेता यहां से विधायक रहे लेकिन  मिल के बंद होने के बाद ग्वालियर की सियासत ने भी करवट ली। इसके बाद लंबे समय तक सीट पर सिंधिया राज परिवार का खासा असर रहा है।

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2003 में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सिंधिया राजघराने के करीबी और स्वर्गीय माधवराव सिंधिया के चहेते बालेंदु शुक्ला को शिकस्त दी। 2008 में कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के सबसे खास माने जाने वाले प्रद्धुमन सिंह तोमर को मैदान में उतारा। जिन्होंने बीजेपी के जयभान सिंह पवैया को हराया। इसके बाद 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने पुराने ही उम्मीदवारों पर दांव लगाया। इस चुनाव में जयभान सिंह पवैया ने प्रद्धुमन सिंह तोमर को 15 हजार से ज्यादा वोटो से हराकर वापस सीट को बीजेपी की झोली में डाल दिया।

ग्वालियर में जातिगत समीकरण भी काफी अहम है और पार्टियां उम्मीदवार तय करते वक्त इस बात का ध्यान रखती हैं। इस विधानसभा में करीब 50 हजार क्षत्रिय और करीब 24 हजार ब्राह्मण मतदाता हैं। इसके अलावा मुस्लिम 16 से 17 हजार, कुशवाह 15 हजार, कोली के करीब 20 हजार वोटर हैं। बाकी दूसरी जातियों की बात करें तो मांझी-बाथम  करीब 15 हजार, किरार 8 हजार, लोधी 6 से 7 हजार, प्रजापति 8 हजार और 9 से 10 हजार के करीब जाधव मतदाता भी हैं। इस तरह यहां की सियासत में मुद्दों के साथ साथ जाति समीकरण भी पार्टी और प्रत्याशियों की किस्मत तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं

भले ही सीट पर फिलहाल बीजेपी का कब्जा हो और आने वाले चुनाव में वर्तमान विधायक टिकट के संभावित उम्मीदवार हैं। लेकिन ऐसा भी नहीं कि सिंधिया परिवार का ये अजेय किला जमींदोज ही हो गया हो। आज भी सिंधिया के कई समर्थक पवैया के खिलाफ ताल ठोंककर उन्हें चुनौती देने के लिए मैदान में है।

ग्वालियर में अगर बीजेपी ने कांग्रेस के किले में सेंध लगाई है तो उसमें जयभान सिंह पवैया की भूमिका सबसे अहम रही है। कपड़ा पहनने और बात करने के मामले में वो प्रदेश के सबसे स्टाइलिश नेता माने जाते है। विपक्षी पार्टी का कोई नेता उन्हें मेकअप मंत्री के नाम से पुकारता है, तो कोई घमंडी नेता बोलता है। लेकिन पवैया पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने विरोधियों का सामना करते हैं। वैसे कभी सरकारी नौकरी छोड़कर संघ में सक्रिय होने वाले पवैया लंबे समय तक विश्व हिंदू परिषद से जुड़े रहे। 1997 में वो बजरंग दल के प्रदेश अध्यक्ष और फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष भी चुने गए।

जयभान सिंह पवैया फिलहाल ग्वालियर विधानसभा सीट से विधायक हैं लेकिन वो ग्वालियर से सांसद भी रह चुके हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में वो गुना संसदीय सीट से ज्योतिरादित्य को चुनौती दी थी लेकिन हार गए थे। अब जब चुनाव नजदीक है तो बीजेपी से उनकी दावेदारी मजबूत नजर आ रही है। लेकिन पवैया की सियासी राह इतनी भी आसान नहीं होगी। पार्टी के कद्दावर नेता केंद्रीय मंत्री और मप्र बीजेपी चुनाव प्रचार अभियान समिति के संयोजक नरेंद्र तोमर से उनकी दूरियां जगजाहिर है। बावजूद इसके वर्तमान विधायक को भरोसा है कि वो पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे।

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वहीं दूसरी और कांग्रेस ने ग्वालियर पर कब्जा जमाने के लिए सियासी बिसात बिछाना शुरू कर दी है। सीट से एक बार फिर सबसे अहम दावेदार प्रद्धुमन सिंह तोमर ही माने जा रहे हैं। वे एक बार जयभान सिंह पवैया का चुनाव में पटखानी दें भी चुके हैं। हार के बाद न केवल वो इलाके में सक्रिय है बल्कि जन समस्याओं को लेकर अनेक छोटे बड़े आंदोलन भी करते रहे है। इस कांग्रेस के दूसरे दावेदार सुनील शर्मा भी सिंधिया खेमे के है और जिला कांग्रेस के उपाध्यक्ष है। लेकिन अभी तक उन्होंने कोई चुनाव नहीं लड़ा है।

ग्वालियर में इस बार तीसरी सियासी ताकत के तौर पर आम आदमी पार्टी भी किस्मत आजमाने को तैयार है। वो पुराने विधायकों पर निशाना लगाकर अपनी राह बनाने की जुगत में है। लेकिन अभी तक वो तय नहीं कर पाई है कि क्षेत्र में उनका प्रत्याशी कौन होगा। वो क्षत्रियों की लड़ाई में किसी पिछड़े पर दांव लगाने की रणनीति बना रही है।

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बहरहाल अभी सब राजनीतिक दल गोटियां बिछाने में लगे है। पवैया जल्दी से इलाके में कुछ और बड़े काम कराकर अपनी राह आसान करना चाहते है, तो कांग्रेस क्षेत्र की मूलभूत समस्याओं के साथ उनकी बदमिज़ाजी के मुद्देबाजी को लेकर चुनाव में उतरने की रणनीति बनाने में मशगूल है। कोई भी दल गुटबाजी से अछूता नहीं है और इस पर काबू पाना दोनों के लिए ही बड़ी चुनौती है। इसके बावजूद यह तय है कि मुकाबला रोचक होने वाला है।

वेब डेस्क, IBC24