जनता मांगे हिसाब: महासमुंद की जनता ने मांगा हिसाब

जनता मांगे हिसाब: महासमुंद की जनता ने मांगा हिसाब

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  • Publish Date - April 26, 2018 / 11:18 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:57 PM IST

महासमुंद की भौगोलिक स्थिति

सफर की शरुआत करते हैं छत्तीसगढ़ की महासमुंद विधानसभा सीट से.. 2008 में परिसीमन से अछूता रहा ये विधानसभा क्षेत्र आदिवासी, साहू समाज और कुर्मी जाति बाहुल्य रहा है। 1977 के बाद से इस विधानसभा सीट से दो राज्य मंत्री और एक संसदीय सचिव भी नेतृत्व कर चुके हैं। महासमुंद के मौजूदा सियासी समीकरण की बात करें..लेकिन पहले आपको इसकी भौगोलिक स्थिति के बारे में बताते हैं..

महासमुंद जिले में आती है सीट

करीब 1 हजार 167 वर्ग किमी में फैला है क्षेत्र

जनसंख्या- करीब 2 लाख 98 हजार 496 

मतदाता कुल- 1 लाख 89 हजार 113

पुरुष मतदाता- 93 हजार 435 

महिला मतदाता- 95 हजार 670 

सीट पर जाति समीकरण अहम

ST मतदाता- 23 फीसदी

SC मतदाता- 15 फीसदी

कुर्मी जाति का भी दबदबा

फिलहाल सीट पर निर्दलीय विधायक

डॉ विमल चोपड़ा हैं वर्तमान विधायक  

महासमुंद विधानसभा क्षेत्र की सियासत

महासमुंद के सियासत की बात करें तो..कभी ये सीट कांग्रेस का मजबूत गढ़ हुआ करता था..महासमुंद विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व  विद्याचरण शुक्ल, अजीत जोगी, पवन दीवान और श्यामाचरण शुक्ल जैसे दिग्गज नेता कर चुके हैं..लेकिन पिछले कुछ चुनावों में यहां की जनता ने कांग्रेस के प्रत्य़ाशियों को नकार दिया है..फिलहाल सीट पर निर्दलीय चुनाव लड़े डॉक्टर विमल चोपड़ा विधायक हैं…महासमुंद में एक बार फिर टिकट के लिए दावेदारों की लंबी कतार है..हालांकि इस बार भाजपा और कांग्रेस के अलावा जेसीसीजे भी तीसरी पार्टी के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराएगी ।  

महासमुंद जिले की जनता ने 2013 के विधानसभा चुनाव में इतिहास रचते हुए निर्दलीय उम्मीदवार को अपना विधायक चुना। डॉ विमल चोपड़ा महासमुंद के वर्तमान विधायक हैं.. जो भाजपा से बागी होकर चुनाव मैदान में उतरे थे..इस बार कयास लगाया जा रहा है कि डॉ विमल चोपड़ा भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं…

महासमुंद के सियासी इतिहास की बात की जाए तो.. पहले ये कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था..विद्याचरण शुक्ल, अजीत जोगी, पवन दीवान और श्यामाचरण शुक्ल जैसे दिग्गज नेताओँ की राजनीतिक भूमि रही है।  कांग्रेस का मजबूत किला होने के बावजूद यहां जनता पार्टी, जनता दल, भाजपा और निर्दलीय प्रत्याशी ने सेंध लगाई है। 2003 और 2008 मे भाजपा के टिकट पर पूनम चन्द्राकर यहां से चुनाव जीता..

2008 में हुए परिसीमन से अछूती रही महासमुंद विधानसभा में जाति समीकरण भी चुनाव नतीजों को प्रभावित करते रहे हैं…यहां आदिवासी और साहू वोटर्स के साथ कुर्मी जाति के मतदाता को साधे बिना प्रत्याशियों का जीतना इतना आसान नहीं होता..

अब जब चुनाव नजदीक है..तो इस बार भी सियासी पार्टियों में दावेदारों की लंबी कतार है…भाजपा के संभावित उम्मीदवारों की बात करें तो कुर्मी जाति से पूर्व मंत्री पूनम चंद्राकर की दावेदारी सशक्त है..इसके अलावा मोती साहू और जिला कोषाध्यक्ष ऐतराम साहू भी टिकट की दौड़ में शामिल हैं। 

वहीं दूसरी ओर कांग्रेस की बात करें तो पिछला चुनाव हारने वाले अग्नि चंद्राकर टिकट की प्रबल दावेदार हैं..वहीं पूर्व जनपद अध्यक्ष रश्मि चंद्राकर और महिला कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष अनिता रावते भी टिकट के लिए दम लगा रही है। इसके अलावा साहू समाज से पूर्व नगर पालिका उपाध्यक्ष मनोजकांत साहू भी टिकट के दावेदार हैं। वहीं जेसीसीजी के चुनावी मैदान में उतरने से यहां मुकाबला त्रिकोणीय होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ से रमेश साहू और भागिरथी चंद्राकर को टिकट मिल सकता है

महासमुंद विधानसभा क्षेत्र के प्रमुख मुद्दे

पिछली बार महासमुंद की जनता ने भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों को दरकिनार करते हुए निर्दलीय उम्मीदवार को मौका दिया..लेकिन सियासी खींचतान के बीच आम आदमी की आवाज सुनने वाले शायद कोई भी नहीं है …यहां पानी,सड़क और बिजली की समस्या तो बड़े मुद्दे बन ही रहे हैं …राज्य और केंद्र सरकार की योजनाओं का फायदा भी लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है ..जाहिर है आने वाले चुनाव में नेताओं से पूछने के लिए मतदाताओं के पास सवालों की लंबी फेहरिस्त है 

रायपुर से अलग होकर अस्तित्व में आया महासमुंद पर्यटन की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है..यहां पर सिरपुर और खल्लारी देवी जैसे ऐतिहासिक धरोहर स्थित हैं..महासमुंद जिले के मुद्दों की बात करें तो यहां के लोग कई वर्षों से रेलवे लाइन के विस्तार की मांग करे रहे हैं.. वहीं बाइपास के नहीं होने से दुर्घटनाएं भी आम बात हो गई है.. जिसे लेकर क्षेत्र के लोगों में आक्रोश देखने को मिलता है…स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करें तो अस्पताल में डॉक्टरों की कमी के चलते मरीजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है..इसके अलावा स्वास्थ्य से जुड़ी मूलभूत सुविधाएं जैसे एक्स-रे मशीन की कमी, सोनोग्राफी ,अल्ट्रासांउड मशीनों के ऑपरेटर न होने से लोगों को रायपुर रिफर कर दिया जाता है। यातायात की सुविधा भी क्षेत्र में बेहाल है..शिक्षा व्यवस्था की बात की जाए तो स्कूलों में शिक्षकों की कमी के चलते छात्रों की शिक्षा व्यवस्था भी ठप नजर आती है…क्षेत्र में किसी तरह के उद्योग नहीं होने से युवा शहरों की ओर पलायन करने को मजबूर है।

महिला थाना नहीं होने के कारण महिलाओं की सुरक्षा व्यवस्था भी एक बड़ा सवाल है। ऐतिहासिक पर्यटन स्थल सिरपुर भी देखरेख के अभाव में उपेक्षित नजर आता है…सिरपुर में लंबे समय से संग्रहालय की मांग भी अब तक पूरी नहीं की जा सकी है…कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि संसाधनों के होने के बावजूद महासमुंद मूलभूत सुविधाओं की कमी से दो चार हो रहा है…अब देखना ये है कि चुनावी वादों के सहारे जनप्रतिनिधी अपनी चुनावी रोटी कितनी सेंक पाते हैं।

 

वेब डेस्क, IBC24