जनता मांगे हिसाब: विदिशा की जनता ने मांगा हिसाब

जनता मांगे हिसाब: विदिशा की जनता ने मांगा हिसाब

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  • Publish Date - May 16, 2018 / 11:47 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:21 PM IST

अब बात करते हैं मध्यप्रदेश एक और अहम विधानसभा सीट की…विदिशा इतिहास के पन्नों में दर्ज ऐतिहासिक और अतिप्राचीन नगरी है…..राजनीति दृष्टिकोण से भी ये शुरू से ही समृद्धशाली रही है…क्यों ये सीट कहलाती है VVIP..और क्या है यहां के चुनावी मुद्दे..जानेंगे..लेकिन एक नजर सीट की प्रोफाइल पर 

विदिशा विधानसभा

विदिशा जिले की अहम सीटों में से एक

बेतवा नगरी के नाम से भी मशहूर

ऐतिहासिक उदयगिरि भी शहर का हिस्सा 

कुल मतदाता- 2 लाख 3 हजार 18

पुरुष मतदाता- 1लाख 7 हजार 1 सौ 1

महिला मतदाता- 95,917

फिलहाल सीट पर बीजेपी का कब्जा

कल्याण सिंह ठाकुर हैं वर्तमान विधायक

विदिशा की सियासत 

विदिशा को भारतीय जनता पार्टी का गढ़ माना जाता है.. 2013 के विधानसभा चुनाव में यहां से शिवराज सिंह चौहान चुनाव जीते थे..लेकिन  शिवराज सिंह ने यहां से इस्तीफा दे दिया..और उसके बाद हुए उपचुनाव में बीजेपी के टिकट पर कल्याण सिंह ठाकुर चुनाव जीते और विधायक बने..विदिशा में हर बार बीजेपी और कांग्रेस में भी भिड़ंत होती रही है लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी भी तीसरे विकल्प के तौर पर  अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही है

 विदिशा राजनीतिक रूप से काफी चर्चित सीट मानी जाती है.. 1980 के बाद से ही ये सीट बीजेपी की मजबूत गढ़ रही है..  इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां अब तक हुए चुनाव में कांग्रेस केवल 2 बार ही जीत हासिल कर पाई है। विदिशा के सियासी इतिहास की बात की जाए तो 1957 में इस सीट पर पहला चुनाव हुआ..जिसमें कांग्रेस के विधायक चुने गए….इसके बाद 1962 के चुनाव में हिंदू महासभा से गोरेलाल चुनाव जीते और 1967 में भारतीय जनसंघ के एस सिंह विधायक बने..1972 में एक बार फिर कांग्रेस ने वापसी की और यहां से डाक्टर सूर्यप्रकाश सक्सेना यहां से चुनाव जीते.. 1977 में जनता पार्टी के नरसिंह दास गोयल के चुनाव जीतने के बाद 1980 से लेकर अब तक विदिशा में बीजेपी के ही उम्मीदवार जीतते आ रहे हैं.. 2013 के चुनाव में सीएम शिवराज सिंह चौहान विदिशा और बुधनी दोनों सीटों से चुनाव लड़ा और दोनों सीटों पर जीते भी.. लेकिन शिवराज सिंह ने विदिशा से विधायक के तौर पर इस्तीफा दे दिया और उसके बाद हुए उपचुनाव में बीजेपी के कल्याण सिंह ठाकुर ने चुनाव जीता….

विदिशा में एक बार फिर चुनावी तैयारियां जोर पकड़ रही है..और टिकट दावेदारों की लंबी कतार है..बीजेपी के संभावित दावेदारों की बात की जाए तो नगरपालिका अध्यक्ष मुकेश टंडन का नाम सबसे आगे है..इसके अलावा दांगी समाज से आने वाले और वर्तमान विधायक कल्याण सिंह ठाकुर का दावा भी मजबूत नजर आता है..इन दोनों के अलावा सुखप्रीत कौर भी टिकट की रेस में शामिल है..बीजेपी महिला मोर्चे की राष्ट्रीय सचिव सुखप्रीत पूर्व विधायक सरदार गुरूचरण सिंह की बेटी है। 

वहीं कांग्रेस के दावेदारों की बात करें तो शशांक भार्गव टिकट के प्रमुख दावेदार हैं..  राकेश कटारे, रणधीर सिंह दांगी  और आनंद प्रताप सिंह भी इस रेस में शामिल हैं…बीजेपी और कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी भी इस बार यहां चुनावी मैदान उतरने का मन चुकी है..दावेदारों की बात करें तो  रिटायर्ड इंजीनियर भगवतसिंह राजपूत के अलावा खुशाल सिंह और संतोष श्रीवास्तव टिकट के दावेदार हैं

विदिशा में जातिगत समीकरण भी बेहद खास है..सीट पर 40 हजार के करीब SC-STवर्ग के वोटर की संख्या है..इसके बाद जैन समाज के 12हजार…18हजार कुशवाह…15हजार ब्राह्मण और करीबन 5हजार मुस्लिम मतदाता है..। कुल मिलाकर यहां जाति समीकरण हावी है या शख्सियत..ये कहना थोड़ा मुश्किल है..लेकिन फिर भी सियासी पार्टियां हर बार उम्मीदवार तय करने में इसे नजरअंदाज करने की भूल नहीं करती

विदिशा के मुद्दे

विदिशा की जनता कई सालों से भारतीय जनता पार्टी पर अपना भरोसा जताती आई है..लेकिन इसका लाभ उनको उतना नहीं मिला..जिसके वो हकदार हैं…और इसका दर्द यहां के आम मतदाता की बातों में भी साफ महसूस किया जा सकता है …और आने वाले चुनाव में मतदाताओं की ये टीस चुनावी नतीजों पर भी अपना असर दिखा सकती है 

कहने को तो विदिशा सीएम शिवराज सिंह चौहान का विधानसभा क्षेत्र रहा है…लेकिन समस्याओं की मकड़जाल से आज भी इलाके की जनता नहीं निकल पाई है…लोग मूलभूत सुविधाओँ के अभाव में जिंदगी जी रहे हैं…नगरपालिका का वार्षिक बजट साढ़े 3 अरब की है..मगर विकास की वो तस्वीर नजर नहीं आती..जैसी दिखनी चाहिए..शहर में जहां तहां सड़कें खुदी नजर आती है…वार्डवासी पानी की किल्लत से दो चार हो रहे हैं…सबसे बड़ी समस्या ट्रैफिक की है..आए दिन शहर की गलियों और रोड में जाम की स्थिति बन जाती है…

.विधायक की निष्क्रियता भी यहां एक बड़ा मुद्दा है…यहां कोई ऐसा बड़ा उद्योग नहीं है जिससे लोगों को रोजगार मुहैया हो सके… नई कृषि मंडी बनकर तैयार है लेकिन विधायक के नकारेपन के कारण वहां व्यापारी जाने को तैयार नहीं है.. अंडरब्रिज जैसी सौगातें तो मिल गई लेकिन सालों बाद भी अधूरा है। ..किसानों को फसलों का दाम सही नहीं मिल रहा है..जिसके कारण वो भी बीजेपी विधआयक से नाराज हैं …वहीं इकलौता जिला अस्पताल भी रेफरल अस्पताल बन चुका है..अस्पताल में 3 दर्जन से अधिक विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है..जिससे मरीजों का बेहतर इलाज नहीं हो पाता है. 

वेब डेस्क, IBC24