‘स्पर्म डोनर’ से 200 बच्चों का जन्म, घातक आनुवांशिक ‘म्यूटेशन’ के शिशुओं में जाने की आशंका
‘स्पर्म डोनर’ से 200 बच्चों का जन्म, घातक आनुवांशिक ‘म्यूटेशन’ के शिशुओं में जाने की आशंका
लीसेस्टर (ब्रिटेन), 15 दिसंबर (द कन्वरसेशन) कई देशों में लगभग 200 बच्चों का जन्म एक ऐसे व्यक्ति के शुक्राणु से होने का खुलासा हुआ है जिसमें कम उम्र में होने वाले कैंसर से जुड़ा दुर्लभ आनुवांशिक ‘म्यूटेशन’ (उत्परिवर्तन) पाया गया है। इसके परिणाम भयावह रहे हैं। कई बच्चों की पहले ही मौत हो चुकी है और यूरोप में कई परिवार अब ऐसे जोखिम का सामना कर रहे हैं जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी।
‘स्पर्म डोनर’ (शुक्राणु दाता) वह व्यक्ति होता है जो प्राकृतिक रूप से संतान उत्पन्न करने में असमर्थ लोगों की मदद के लिए चिकित्सा प्रक्रिया के तहत अपने शुक्राणु दान करता है।
इस मामले ने कई अहम सवाल खड़े कर दिए हैं। एक ही ‘डोनर’ का इतना व्यापक रूप से उपयोग कैसे हुआ? ऐसे गंभीर परिणाम वाले आनुवांशिक ‘म्यूटेशन’ की पहचान करने में मानक सुरक्षा उपाय क्यों विफल रहे? और परिवार बसाने के लिए बनाई गई व्यवस्था ने इस पैमाने की त्रासदी को कैसे होने दिया?
जब कोई व्यक्ति शुक्राणु या अंडाणु दान करता है, तो कुछ सामान्य वंशानुगत रोगों की जांच से गुजरना पड़ता है। यह प्रक्रिया हर देश में अलग-अलग होती है और इसकी अपनी सीमाएं भी हैं। जांच काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि ‘डोनर’ के परिवार के चिकित्सकीय इतिहास के बारे में कितनी सटीक जानकारी उपलब्ध है जबकि कई लोगों के पास अपने रिश्तेदारों से जुड़ी पूरी जानकारी नहीं होती।
कुछ बीमारियां वयस्क होने पर सामने आती हैं यानी कम उम्र का ‘डोनर’ पूरी तरह स्वस्थ दिखाई दे सकता है। इसके अलावा, आम तौर पर क्लिनिक बड़ी संख्या में मौजूद दुर्लभ आनुवांशिक प्रारूपों के बजाय स्थापित और अपेक्षाकृत अधिक प्रचलित रोगों पर ही मुख्य रूप से ध्यान देते हैं।
सामान्यतः ‘डोनर’ से उनके चिकित्सकीय पृष्ठभूमि और परिवार के स्वास्थ्य इतिहास से संबंधित विस्तृत प्रश्नावली भरवाई जाती है। यदि उपलब्ध जानकारी से किसी वंशानुगत जोखिम की आशंका होती है तो ‘डोनर’ की आगे और जांच की जा सकती है या अधिकतर मामलों में उसे अस्वीकार कर दिया जाता है।
हाल के वर्षों में कई क्लिनिक ने विस्तारित आनुवांशिक जांच करनी शुरू कर दी है।
हालांकि, यह प्रौद्योगिकी अभी विकास के चरण में है और सभी संभावित रोग-कारक आनुवांशिक प्रारूपों की पहचान करने में सक्षम नहीं है।
यह संदर्भ इस मामले में महत्वपूर्ण है। इस मामले में ‘डोनर’ के परिवार में इस बीमारी का कोई इतिहास नहीं था और उसमें इसके कोई लक्षण भी नहीं दिखे। कोई व्यक्ति स्वयं प्रभावित हुए बिना भी हानिकारक ‘म्यूटेशन’ का वाहक हो सकता है।
‘डोनर’ ने डेनमार्क के ‘यूरोपियन स्पर्म बैंक’ को शुक्राणु दान किए थे जिनका उपयोग कई यूरोपीय देशों में लगभग 200 बच्चों के जन्म के लिए किया गया, हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि वास्तविक संख्या इससे अधिक भी हो सकती है।
ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि ‘डोनर’ के शुक्राणु के व्यापक उपयोग को सीमित करने वाला कोई अंतरराष्ट्रीय कानून नहीं है। ब्रिटेन समेत कई देशों ने राष्ट्रीय स्तर पर तो इस संबंध में कानून बनाए हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसी कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई है।
हाल में सामने आए एक अन्य मामले से यह स्पष्ट हुआ कि स्थिति कितनी चरम हो सकती है। एक अन्य ‘डोनर’ के शुक्राणु से कई देशों में लगभग 1,000 बच्चों का जन्म होने का पता चला है। उस मामले में किसी स्वास्थ्य समस्या की जानकारी नहीं मिली लेकिन इससे यह पता चला कि यदि नजर नहीं रखी जाए तो एक ‘डोनर’ के शुक्राणु का उपयोग कितने व्यापक पैमाने पर किया जा सकता है।
मौजूदा मामले की चुनौतियां बेहद गंभीर हैं। परिवार शोक और अनिश्चितता से जूझ रहे हैं। कुछ ने अपने बच्चे खो दिए हैं। अन्य परिवारों को इस बात का बहुत अधिक खतरा है कि उनकी संतान 60 वर्ष की आयु से पहले कैंसर से प्रभावित हो सकती है।
‘डोनर’ के बारे में सार्वजनिक चर्चा बहुत कम हुई है, लेकिन इन नतीजों का पता लगने से उस पर काफी गहरा भावनात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
चूंकि यह ‘म्यूटेशन’ अत्यंत दुर्लभ है इसलिए अतिरिक्त नियमित जांच भी संभवतः इसका पता नहीं लगा पाती और इसे रोक नहीं पाती। सच्चाई यह है कि हर व्यक्ति में कुछ ऐसे आनुवांशिक प्रारूप होते हैं जो रोजमर्रा के जीवन में हानिकारक नहीं होते और उनका पता नहीं लग पाता।
पहले भी ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जिनमें ‘डोनर’ से शिशुओं में ‘सिस्टिक फाइब्रोसिस’ या ‘फ्रैजाइल एक्स सिंड्रोम’ जैसी वंशानुगत बीमारियां अनजाने में पहुंची हैं लेकिन उन मामलों में प्रभावित परिवारों की संख्या काफी कम थी। इस मामले में प्रभावित बच्चों की असाधारण रूप से बड़ी संख्या है।
इसी कारण केवल अधिक जांच की मांग करना पूर्ण समाधान नहीं है। अधिक गंभीर समस्या यह है कि सीमाओं के पार एक ही ‘डोनर’ के शुक्राणु के इस्तेमाल को लेकर कोई निगरानी नहीं है।
एक समन्वित वैश्विक दृष्टिकोण अब समय की मांग है और इससे भविष्य में इस तरह के मामलों को रोकने में मदद मिल सकती है।
(द कन्वरसेशन) सिम्मी नरेश
नरेश

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