क्या हम और भाषाओं को खोने का जोखिम उठा सकते हैं?

क्या हम और भाषाओं को खोने का जोखिम उठा सकते हैं?

क्या हम और भाषाओं को खोने का जोखिम उठा सकते हैं?
Modified Date: August 16, 2023 / 02:29 pm IST
Published Date: August 16, 2023 2:29 pm IST

( रिया एर्नुनसारी, 360इंफो, मेलबर्न )

मेलबर्न, 16 अगस्त (360 इंफो) भाषाएं हमारी पहचान, हमारे इतिहास, हमारे पारंपरिक ज्ञान और दुनिया के बारे में हमारे विचारों को बयां करती हैं। कुछ मामलों में भाषा ही हमें, हमारे पूर्वजों से जोड़ने का एकमात्र साधन हो सकती है।

जिस तरह जलवायु परिवर्तन हो रहा है उसके मद्देनजर भाषाओं के लिए भी अपने अस्तित्व को बनाए रखना जोखिम भरा हो गया है।

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संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, आज हमारे द्वारा बोली जानी वाली आधी भाषाएं इस सदी के अंत तक विलुप्त हो जाएंगी या फिर विलुप्त होने की कगार पर पहुंच जाएंगी। इसके पीछे बहुत से कारक हो सकते हैं लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कारक, जो उभरकर सामने आया है वह जलवायु परिवर्तन है।

पर्यावरणीय आपदाओं की वजह से समुदायों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है और नई जगह पर किसी दूसरी भाषा का प्रभुत्व होने की वजह से लोग अपनी भाषाएं अपनी ही भावी पीढ़ी को नहीं सिखा पाते, जो भाषाओं के विलुप्त होने का प्रमुख कारण है।

दुनिया के सबसे अधिक भाषाई रूप से विविध देशों में हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देश हैं और ये क्षेत्र विशेष रूप से पर्यावरणीय आपदाओं के प्रति संवेदनशील होने के लिए भी जाने जाते हैं।

(360इंफो डॉट ओआरजी) जितेंद्र मनीषा

मनीषा


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