धरती पर जीवन बचाने में कितनी कामयाब होगी सीओपी26 की वार्ता

धरती पर जीवन बचाने में कितनी कामयाब होगी सीओपी26 की वार्ता

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  • Publish Date - November 13, 2021 / 12:39 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:45 PM IST

( टिम फ्लैनेरी, प्रोफेसरियल फेलो, मेलबर्न सस्टेनेबल सोसाइटी इंस्टीट्यूट, मेलबर्न विश्वविद्यालय )

मेलबर्न, 13 नवंबर (द कन्वरसेशन) जलवायु से जुड़े विषयों पर काम करने वाले एक विशेषज्ञ के अनुसार ग्लासगो में सीओपी26 में घोषणाएं इतनी तेजी से हुईं कि अगली घोषणा के होने से पहले हर विषय पर चर्चा के लिए उचित समय ही नहीं मिला।

मेलबर्न विश्वविद्यालय में मेलबर्न सस्टेनेबल सोसाइटी इंस्टीट्यूट में ‘प्रोफेसरियल फेलो’ टिम फ्लैनेरी ने कहा कि उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के कई जलवायु परिवर्तन सम्मेलनों में भाग लिया है, लेकिन यह पखवाड़ा अलग लगा। जिन देशों ने पिछले वर्षों में सख्त कार्रवाई को लेकर कड़ी लड़ाई लड़ी, उन्होंने नयी प्रतिबद्धताओं के साथ कदम बढ़ाया। उनमें से कई पहले सप्ताह में नयी साझेदारियों और गठबंधनों की एक श्रृंखला में शामिल हो गए।

उन्होंने कहा कि अंतिम सीओपी26 समझौते की कोशिश करने और उसे जमीन पर उतारने के लिए वार्ताकारों की बातचीत तनावपूर्ण स्तर पर पहुंच गई है। सीओपी26 को सिर्फ ऐसे कार्यक्रम के रूप में नहीं देखना चाहिए कि जो आखिरी हो बल्कि इसे वास्तव में एक परिवर्तनकारी दशक की दिशा में शुरुआत के तौर पर देखा जाना चाहिए।

सिर्फ आगामी वर्षों में ही हम जान पाएंगे कि यह कार्यक्रम वास्तव में धरती के लिए तस्वीर बदलने वाला था या सिर्फ खोखले वादों का जमावड़ा। कार्यक्रम के मेजबान के रूप में ब्रिटेन सरकार पहले से इस बात से अवगत थी कि कई देश नए-नए संकल्प पेश करेंगे। लेकिन यह भी कि सिर्फ संकल्प कभी पर्याप्त नहीं होंगे।

संकल्पों की श्रृंखला में सबसे पहले अत्यधिक शक्तिशाली ग्रीन हाउस गैस मीथेन के उत्सर्जन को कम करने के लिए एक नयी वैश्विक प्रतिज्ञा के रूप में आया। साथ ही कोयला से उत्सर्जन को चरणबद्ध तरीके से घटाने, वनों की कटाई, जलवायु, वित्त और अन्य मुद्दे सामने आए।

दूसरा, आने वाले वर्षों में देशों को अपनी प्रतिबद्धताओं को और मजबूत करना होगा। ग्लासगो में अंतिम समझौते के पहले मसौदे में देशों से एक नयी और मजबूत 2030 के लक्ष्य का आह्वान किया गया है।

वार्ताकारों ने अंतिम विषय की बारीकियों पर चर्चा करने में कई घंटे बिताए और अब भी कोई रास्ता निकलना बाकी है। अगर अंतिम समझौता बहुत कमजोर है, तो तापमान में इजाफे को 1.5 सेल्सियस तक सीमित करने का लक्ष्य पाना गंभीर जोखिम का कार्य है।

इस बार के मसौदे को पहले की तुलना में अधिक मजबूत माना जा रहा है जिसका कई पर्यवेक्षकों ने अनुमान किया था। सीओपी26 अभी खत्म नहीं हुआ है और बातचीत अब भी वित्तीय मदद जैसे अहम मुद्दे पर टिकी है जैसा पूर्व में पेरिस समझौते में अमीर देशों ने विकासशील और गरीब देशों को 100 अरब डॉलर के वित्तीय मदद पर सहमति जताई थी।

ऑस्ट्रेलिया ने सीओपी26 में दो समझौतों – मिथेन उत्सर्जन कम करने और कोयला आधारित ऊर्जा चरणबद्ध तरीको से घटाने के संकल्प से संबंधित समझौते पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। ग्लोबल वार्मिंग की दिशा में यह एक अहम संकल्प है। इस बार इस संकल्प पर हस्ताक्षर करने वालों में वियतनाम, इंडोनेशिया, पोलैंड, यूक्रेन और दक्षिण कोरिया जैसे देश शामिल हैं।

ऑस्ट्रेलिया से तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) खरीदने वाले दो सबसे बड़े खरीदार देश जापान और दक्षिण कोरिया ने हाइड्रोजन और नवीनीकृत ऊर्जा की दिशा में बढ़ने की इच्छा व्यक्त की है।

शिखर सम्मेलन का अंतिम परिणाम आना अभी शेष है जिसकी विज्ञान मांग करता रहा है। सीओपी26 की असली परीक्षा यही है कि क्या वादों को निभाया जाता है।

द कन्वरसेशन सुरभि शाहिद

शाहिद