सकारात्मक मनोविज्ञान के विशेषज्ञ खुद अपनी सलाह का पालन नहीं करते

सकारात्मक मनोविज्ञान के विशेषज्ञ खुद अपनी सलाह का पालन नहीं करते

सकारात्मक मनोविज्ञान के विशेषज्ञ खुद अपनी सलाह का पालन नहीं करते
Modified Date: December 21, 2025 / 05:28 pm IST
Published Date: December 21, 2025 5:28 pm IST

(जोलांटा बर्क द्वारा, आरसीएसआई यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिसिन एंड हेल्थ साइंसेज)

डबलिन, 21 दिसंबर (द कन्वरसेशन) सकारात्मक मनोविज्ञान विश्वभर में कल्याण कार्यक्रमों की रीढ़ की हड्डी है। मानसिक स्वास्थ्य में सुधार लाने और सुखी जीवन जीने की चाह रखने वाले कई लोगों को ऐसी गतिविधियों के कार्यक्रम का पालन करने की सलाह दी जाती है जो उनके कल्याण को बेहतर बनाने के लिए प्रयास करने पर केंद्रित हों।

लेकिन हाल में मैंने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर जो शोध किया, उससे पता चलता है कि जहां कल्याण कार्यक्रमों से जुड़े विशेषज्ञ अक्सर दूसरों को इन गतिविधियों की सलाह देते हैं, वहीं वास्तविक जीवन में वे स्वयं इन्हें बहुत कम अपनाते हैं। यह अंतर हमें इस बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी दे सकता है कि वास्तव में लंबे समय तक कल्याण कार्यक्रमों को कैसे बनाया रखा जा सकता है।

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मैंने सकारात्मक मनोविज्ञान के 22 विशेषज्ञों और लोगों का साक्षात्कार लिया – जिनमें से कुछ को एक दशक से अधिक का अनुभव था। उन सभी ने नियमित रूप से अपने ग्राहकों, मित्रों और परिवार के सदस्यों को स्वास्थ्य संबंधी गतिविधियों की सलाह दी और बताया कि वे प्रत्येक गतिविधि को व्यक्ति की आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूलित करेंगे।

लेकिन जब मैंने उनसे सकारात्मक मनोविज्ञान के अभ्यासों के अपने स्वयं के प्रयोग के बारे में पूछा, तो यह स्पष्ट हो गया कि वे इन गतिविधियों में नियमित रूप से शामिल नहीं होते थे। वे इनका उपयोग केवल कठिन समय के दौरान तब ही करते थे, जब उन्हें अपने स्वास्थ्य को बेहतर बनाने की आवश्यकता महसूस होती थी।

हमारे अध्ययन से पता चला कि विशेषज्ञ कल्याण कार्यक्रमों का उपयोग उस तरह से नहीं करते जिस तरह से कई सकारात्मक मनोविज्ञान कार्यक्रम इसे सिखाते हैं। गतिविधियों की एक निर्धारित अनुसूची का पालन करने के बजाय, उनका कल्याण एक लचीली, कल्याण-उन्मुख मानसिकता से आता है।

हमारे प्रतिभागियों ने अपने जीवन में उस तरह के बड़े और जानबूझकर बदलाव नहीं किये, जैसे वे रोगियों को बेहतर स्वास्थ्य के लिए करने की सलाह देते।

वे पहले से ही अपने दैनिक जीवन में नियमित रूप से ऐसी चीजें करते थे जो उनके जीवन को अधिक सार्थक बनाती थीं – उदाहरण के लिए, प्रतिदिन एक किताब पढ़ने के लिए समय निकालना, स्थानीय दान संस्था के लिए स्वयंसेवा करना, अपना पसंदीदा भोजन पकाना या यहां तक ​​कि योग का अभ्यास करना।

हालांकि इस तरह की गतिविधियों को सकारात्मक मनोविज्ञान कार्यक्रम के हिस्से के रूप में अनुशंसित किया जा सकता है, लेकिन यहां अंतर यह है कि विशेषज्ञों ने इन गतिविधियों को इसलिए किया क्योंकि वे उनकी पहचान का हिस्सा थीं या क्योंकि उन्होंने उन्हें संतुलन बनाने में मदद की, न कि केवल इसलिए कि उन्हें ऐसा करने की सलाह दी गई थी।

वे अपने शरीर के प्रति भी सजग थे और नींद, पौष्टिक भोजन और नियमित व्यायाम को प्राथमिकता देकर अपने शरीर की देखभाल उतनी ही सावधानी से करते थे जितनी कि अपने मस्तिष्क की। उदाहरण के लिए, यदि उनका काम उन्हें नाखुश करता था, या उनके सामाजिक दायरे में कोई व्यक्ति लगातार उनकी ऊर्जा को खत्म कर रहा था, तो वे विकल्प तलाशने या संपर्क सीमित करने में संकोच नहीं करते थे।

इसके अलावा, वे उन अवसरों के लिए खुले थे जिनसे उन्हें जीवन को खुलकर जीने का मौका मिलता था। एक प्रतिभागी ने अपने बच्चे को लेने के लिए स्कूल के बाहर इंतजार करने का वर्णन किया। मौसम इतना सुहावना था कि उसने अपने जूते उतार दिए और नंगे पैर घास पर चली – एक साधारण सा काम जिसने उसके मन को प्रसन्न कर दिया।

हर साल, नये ‘वेलबीइंग ऐप’ सामने आते हैं, स्कूल अपने पाठ्यक्रम में कल्याण कार्यक्रमों को शामिल करते हैं, और संगठन कार्यस्थल कल्याण कार्यक्रमों में भारी निवेश करते हैं। फिर भी, इन कार्यक्रमों का प्रभाव सीमित ही रहता है। और कुछ रिपोर्टों से पता चलता है कि कल्याण कार्यक्रमों का नकारात्मक प्रभाव भी हो सकता है।

हमारे अध्ययन के निष्कर्ष यह समझाने में मदद कर सकते हैं कि इन कार्यक्रमों का प्रभाव इतना भिन्न क्यों है और यह दर्शाता है कि ये सकारात्मक गतिविधियां उन लोगों के लिए उतनी प्रभावी नहीं हो सकती हैं जिन्होंने अपने जीवन में कल्याणकारी योजनाओं को बड़े पैमाने पर अपनाया है।

(द कन्वरसेशन)

देवेंद्र रंजन

रंजन


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