पेरिस, 14 अप्रैल (एपी) फ्रांस भले ही पूर्वी यूक्रेन के युद्धक्षेत्र से हज़ारों किलोमीटर दूर है, लेकिन इस महीने फ्रांस में हो रहे चुनाव का असर वहां तक होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
दक्षिणपंथी नेता और राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार मरीन ले पेन के रूस के साथ घनिष्ठ संबंध हैं और वह यूरोपीय संघ तथा नाटो को कमजोर बनाने के पक्ष में हैं। इससे यूक्रेन में युद्ध को रोकने के पश्चिमी प्रयास प्रभावित हो सकते हैं। इसके साथ ही वह फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों को सत्ता से हटाने की कोशिश कर रही हैं। दोनों उम्मीदवारों के बीच 24 अप्रैल को दूसरे और निर्णायक दौर का मतदान होगा।
मैक्रों सरकार ने हाल में यूक्रेन को 10 करोड़ यूरो मूल्य के हथियार भेजे हैं। इसके साथ ही उसने बुधवार को कहा कि वह पश्चिमी सैन्य सहायता प्रयास के तहत और हथियार भेजेगी। फ्रांस 2014 से ही यूक्रेन के लिए सैन्य समर्थन का प्रमुख स्रोत रहा है, जब रूस ने 2014 में क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था और पूर्वी यूक्रेन में अलगाववादी लड़ाकों का समर्थन किया था।
ले पेन ने यूक्रेन को अतिरिक्त हथियारों की आपूर्ति पर बुधवार को आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति के रूप में, वह रक्षा और खुफिया सहायता जारी रखेंगी लेकिन हथियार भेजने के बारे में ‘विवेकपूर्ण’ तरीके से फैसला किया जाएगा क्योंकि उन्हें लगता है कि हथियार दिए जाने से रूस के साथ संघर्ष में अन्य देश शामिल हो सकते हैं।
ले पेन के अभियान में मुद्रास्फीति को लेकर मतदाताओं की हताशा को सफलतापूर्वक रेखांकित किया गया है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण करने और रूस के खिलाफ प्रतिबंधों से भी मुद्रास्फीति प्रभावित हुयी है। फ्रांस और यूरोप के लिए रूस एक प्रमुख गैस आपूर्तिकर्ता और व्यापार भागीदार है।
यूरोपीय संघ सख्त प्रतिबंधों को लेकर सहमत होने में एकमत रहा है। राष्ट्रपति के रूप में, ले पेन यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों को विफल करने या उन्हें सीमित करने का प्रयास कर सकती हैं क्योंकि आगे की कार्रवाई के लिए संगठन के 27 सदस्य देशों के बीच सर्वसम्मति की आवश्यकता है।
मैक्रों यूरोपीय संघ के मुखक समर्थक रहे हैं और हाल ही में पूर्वी यूरोप में नाटो के परिचालन में फ्रांस की भागीदारी को उन्होंने मजबूत किया है। वहीं ले पेन का कहना है कि फ्रांस को अंतरराष्ट्रीय गठबंधनों से दूरी बनाए रखनी चाहिए और अपना रास्ता खुद बनाना चाहिए।
ले पेन फ्रांस को नाटो की सैन्य कमान से बाहर निकालने की पक्षधर हैं। फ्रांस 1966 में नाटो की कमान संरचना से हट गया था, जब राष्ट्रपति चार्ल्स डी गॉल अपने देश को अमेरिकी प्रभुत्व वाले संगठन से हटाना चाहते थे। राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी के कार्यकाल में 2009 में फांस फिर से इससे जुड़ गया।
एपी अविनाश मनीषा
मनीषा