काबुल की झंडों की दुकान में अफगानिस्तान का इतिहास दर्ज

काबुल की झंडों की दुकान में अफगानिस्तान का इतिहास दर्ज

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  • Publish Date - September 12, 2021 / 09:10 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:56 PM IST

काबुल, 12 सितंबर (भाषा) काबुल में एक बाजार के कोने में झंडों की छोटी सी दुकान में अफगानिस्तान के दशकों का उथल-पुथल भरा इतिहास वहां बेचे जाने वाले अनेक उत्पादों में दर्ज है।

अब दुकान सफेद तालिबानी झंडों से भरी हुई है जिसमें काले रंग में अरबी भाषा में कुरान की आयतें लिखी हैं। रविवार को चार किशोर फ्लोरेसेंट रोशनी से चमकती मेज पर रखे सफेद कपड़े पर लिखी कुरान की आयातों के खांचे में काली स्याही भरकर उसे सूखने के लिए बालकनी की रेलिंग पर डालते नजर आए।

दुकान के मालिक 58 वर्षीय वहीदुल्ला होनारवर ने बताया कि तालिबान के काबुल पर संभावित कब्जे को देखते हुए 15 अगस्त को राष्ट्रपति अशरफ गनी ने देश छोड़ दिया था। इससे पहले वह सभी देशों के झंडे बनाते थे जिनके अफगानिस्तान के साथ राजनयिक संबंध रहे हैं। होनारवर के पास अब भी उन झंडों का भंडार है।

दुकान में कंप्यूटर के सामने बैठे होनारवर ने बताया,‘‘ तालिबान लड़ाके यहां आए और उन झंडों को देखने के बाद कुछ नहीं कहा।’’ उन्होंने बताया कि तालिबान ने कहा कि उन झंडों को स्थिति सामान्य होने तक रख लें।

होनारवर ने बताया कि उन्होंने अपना कारोबार तब शुरू किया था जब वर्ष 1980 में सोवियत समर्थित सरकार थी। सोवियत ने 1989 में वापसी की और उनके कम्युनिस्ट साझेदार वर्ष 1992 में गए। इसके बाद देश में गृहयुद्ध छिड़ गया। तालिबान का 1996 से 2001 तक सत्ता पर कब्जा रहा और उसे अमेरिका नीत सेना ने सत्ता से बाहर किया। अगस्त के आखिर में अमेरिका और नाटो के जाने के बाद तालिबान की वापसी हुई।

उन्होंने कहा कि वह अफगानिस्तान में रहेंगे भले किसी का भी शासन आए। होनारवर ने कहा,‘‘ मैं अफगानिस्तान से प्यार करता हूं और यहीं रहना चाहता हूं। चाहे किसी की भी सत्ता आए, मेरा कारोबार चल रहा है और आगे भी जारी रहेगा।’’

एपी धीरज वैभव

वैभव